Friday, December 2, 2011

शुरू हो गई मंदी की उलटी गिनती


मंदी फिर दस्तक दे रही है। बेकाबू महंगाई, ऊंची ब्याज दरें और फैसले लेने की सुस्त रफ्तार ने अर्थव्यवस्था को मंदी की तरफ धकेल दिया है। वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की दर और नीचे चली गई है। खनन और मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग के बेहद खराब प्रदर्शन ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर को 6.9 प्रतिशत पर ला दिया है। पिछली नौ तिमाहियों में अर्थव्यवस्था की यह सबसे धीमी रफ्तार है। इस पर अक्टूबर महीने में आठ बुनियादी उद्योगों की रफ्तार भी शून्य के करीब पहुंच गई है। धीमी रफ्तार को देखते हुए सरकार ने वित्त वर्ष 2011-12 के लिए अर्थव्यवस्था की रफ्तार का अनुमान भी घटाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया है। दूसरी तिमाही में जीडीपी के अनुमानित आंकड़ों ने साफ कर दिया है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार कम हो रही है। सबसे ज्यादा झटका खनन और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र ने दिया है। पर्यावरणीय मुद्दों पर सरकार में एक राय नहीं हो पाने के चलते खनन उद्योग का उत्पादन दूसरी तिमाही में शून्य से भी 2.9 प्रतिशत नीचे चला गया। वहीं मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार भी बेकाबू महंगाई ऊंची ब्याज दरों के चलते 2.7 प्रतिशत पर सिमट गई है। रिजर्व बैंक अब तक मार्च 2010 के बाद नीतिगत ब्याज दरों में 13 बार वृद्धि कर चुका है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती का आलम इस साल की शुरुआत से ही दिखने लगा था। पहली तिमाही में खनन उद्योग की रफ्तार 1.8 प्रतिशत और मैन्यूफैक्चरिंग की 2.7 प्रतिशत रही थी। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन भी दूसरी तिमाही में उम्मीदों से परे रहा है। यह पहली तिमाही के 3.9 प्रतिशत से घटकर 3.2 प्रतिशत पर आ गया है। हालांकि, कृषि क्षेत्र की तस्वीर खरीफ और रबी के पूरे आंकड़े आने के बाद ही साफ होगी। अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार ने सरकार की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। इसे देखते हुए सरकार को भी अर्थव्यवस्था की वृद्धि के अपने पूर्व के 7.6 प्रतिशत के अनुमान को घटाने पर मजबूर होना पड़ा है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पिछली दो तिमाहियों के रुझान को देखते हुए वर्ष 2011-12 में जीडीपी वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने की अपेक्षा है। बीते वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 8.5 प्रतिशत रही थी। मुखर्जी ने कहा कि हमारे समक्ष कई तरह की समस्याएं हैं। यूरोप व अमेरिका में कमजोर वृद्धि, देश के भीतर और बाहर की समस्याएं। बुनियादी उद्योगों की अक्टूबर महीने की रफ्तार ने भविष्य की तस्वीर को और धुंधला कर दिया है। इस महीने आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर मात्र 0.1 प्रतिशत तक नीचे आ गई है। पिछले साल इसी महीने में यह 7.2 प्रतिशत थी। आठ में पांच उद्योगों की वृद्धि दर शून्य से भी नीचे चली गई है। अर्थव्यवस्था की खराब होती हालत ने अगले वित्त वर्ष के लिए भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। वैश्विक अर्थव्यस्था में बन रहे हालात को देखते हुए जानकार 2012-13 में स्थिति और खराब होती देख रहे हैं। इनका मानना है कि घरेलू खपत में वृद्धि के उपाय नहीं किए गए स्थितियों को संभालना मुश्किल होगा।

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