Friday, December 9, 2011

अब बीमा एफडीआई में सरकार को लगा झटका


खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर झटका खाने के बाद सरकार को और एक झटका लग सकता है। एक संसदीय समिति ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा मौजूदा 26 फीसद से बढ़ाकर 49 फीसद करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया है। संसद की स्थायी समिति ने सरकार से बीमा विधेयक के विभिन्न पहलुओं के अलावा भारत के लिए एक एकीकृत आधुनिक बैंकिंग कानून लाने को कहा है। बीमा कानून (संशोधन) विधेयक, 2008 पर अपनी रपट सौंपने वाली समिति ने बृहस्पतिवार को कहा कि मौजूदा वैिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए विदेशी निवेश की सीमा में किसी तरह की वृद्धि भारतीय कंपनियों के हित में नहीं होगी। समिति ने यह भी याद दिलाया कि संसद को यह आासन दिया गया है कि 26 फीसद की मौजूदा सीमा भविष्य में तोड़ी नहीं जाएगी। समिति ने यह सिफारिश भी की है कि विधेयक के उद्देश्यों की मौजूदा व्याख्या फिर से बदली नहीं जानी चाहिए क्योंकि इससे यह भ्रामक धारणाबनेगी कि भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशी भागीदारी का मुद्दा एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर तय किया गया, जो सही नहीं है। इसने यह भी कहा कि स्वास्थ्य बीमा कारोबार में न्यूनतम 100 करोड़ रुपए की पूंजी के साथ एक कंपनी को कारोबार शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए और इस तरह से 50 करोड़ रुपए की मौजूदा जरूरत को बढ़ाया जाना चाहिए। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में कारोबार करने की योजना बना रही विदेशी कंपनियों के मुद्दे पर समिति ने सिफारिश की है कि सेज कानून, 2005 द्वारा प्रशासित क्षेत्रों में किसी भी गैर पंजीकृत विदेशी कंपनियों को परिचालन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2011 पर समिति ने कहा कि निगमित लोकतंत्रको बढ़ावा देने के लिए शेयरधारिता के अनुपात के लिहाज से मताधिकार 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत की जानी चाहिए। विधेयक में प्रस्ताव है कि निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए 10 प्रतिशत की मताधिकार सीमा खत्म की जानी चाहिए।

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