Thursday, December 8, 2011

महंगाई-सब्सिडी से बिगड़ा बजट


अर्थव्यवस्था काफी मुश्किल हालात से गुजर रही है। केंद्र सरकार अब खुल कर यह बात मानने लगी है। महंगाई के जख्म पर बेलगाम सब्सिडी नमक रगड़ रही है। वित्तीय घाटा लक्ष्य से कितना ज्यादा होगा, इसका अंदाजा अभी तक नहीं निकल पा रहा है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को लोकसभा में सरकार के व्यय के लिए अनुपूरक मांगों पर चर्चा के दौरान अर्थव्यवस्था की बेहद गंभीर तस्वीर पेश की। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था के आधारभूत कारक अब भी मजबूत हैं। वित्त मंत्री ने पहली बार स्वीकार किया कि यूरोपीय संकट का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर का आकलन करने में सरकार से गलती हुई है। सनद रहे कि फरवरी 2011 में बजट पेश करते हुए उन्होंने अर्थव्यवस्था में नौ फीसदी वृद्धि होने की बात कही थी। जबकि अब वे यह कह रहे हैं कि वृद्धि दर 7.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होगी। वित्त मंत्री ने कहा कि महंगाई की दर आठ फीसदी पर आ गई है। मगर भारतीय संदर्भ में इसके पांच से छह फीसदी से ज्यादा स्तर को स्वीकार नहीं किया जा सकता। लोकसभा ने ध्वनिमत से 56.8 हजार करोड़ रुपये की अनुपूरक मांगों के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। प्रणब ने स्वीकार किया कि बढ़ती सब्सिडी सरकार के लिए सबसे बड़ी सरदर्द बनी हुई है। वित्तीय घाटे की स्थिति भी बद से बदतर हो रही है। वर्ष 2011-12 के बजट में फर्टिलाइजर, खाद्य और पेट्रोलियम के लिए 1,20,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी के प्रावधान किए गए थे। मगर अब इसमें एक लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होने की संभावना है। उर्वरक सब्सिडी ही 90 हजार करोड़ रुपये हो सकती है, जबकि प्रावधान सिर्फ 40 हजार करोड़ रुपये का था। इसी तरह से पेट्रोलियम सब्सिडी भी काफी बढ़ सकती है क्योंकि तेल कंपनियों को पूरे वित्त वर्ष के दौरान 1,32,000 करोड़ रुपये की संभावित हानि होने की संभावना है। खाद्य सब्सिडी भी उम्मीद से काफी ज्यादा रहेगी। खाद्य उत्पादों की महंगाई दर पर प्रणब ने कहा कि फरवरी 2010 में यह 22 फीसदी थी जो अब घट कर आठ फीसदी रह गई है। यह भी स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने इसके लिए किसानों को दिए जा रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को भी परोक्ष तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। पिछले छह वर्षो में धान का एमएसपी 600 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ कर 1100 रुपये हो जाने का उदाहरण देते हुए प्रणब ने सवाल पूछा कि क्या ऐसे में चावल छह वर्ष पहले की कीमत पर बेचा जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि बचत दर में 33 फीसदी की वृद्धि और निवेश में 34-35 फीसदी की वृद्धि दर यह संकेत देता है कि अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्व मजबूत हैं। संसद से सहयोग मिले तो मुश्किल हालात से निबट लेंगे देश के समक्ष उत्पन्न आर्थिक संकट से निकलने के लिए वित्त मंत्री ने संसद और सभी राजनीतिक दलों का सहयोग मांगा। उन्होंने कहा कि अगर संसद सामान्य तौर पर चलती रहे, यहां काम काज होता रहे, अन्य वैधानिक संस्थानों का काम भी निर्बाध गति से होता रहे और हम चर्चा के बाद फैसले करते रहें तो अर्थव्यवस्था के हालात को भी बदला जा सकता है।

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