Friday, December 9, 2011

बढ़ेंगी भारत की भी मुश्किलें


यूरोपीय देशों की मुद्रा (यूरो) संकट का नया दौर शुरू होने से भारत सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। सरकार मानती है कि यूरोपीय देशों ने अब स्थिति नहीं संभाली तो इससे सुस्त होती भारत की अर्थव्यवस्था को और ज्यादा झटके लग सकते हैं। सरकार को सबसे ज्यादा चिंता निर्यात में तेजी से गिरावट आने और रुपये की कीमत में तेज अस्थिरता आने को लेकर है। यही वजह है कि वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के आला अधिकारियों का दल पूरे हालात पर पैनी नजर रख रहा है। बताते चलें कि यूरोपीयन सेंट्रल बैंक ने गुरुवार को जारी अपनी रिपोर्ट में यूरो प्रसार वाले देशों की अर्थव्यवस्था की स्थिति और खराब होने की बात कही है। बैंक ने यह भी कहा है कि यूरोप के जिन 17 देशों में यूरो का प्रचलन है वहां महंगाई की स्थिति और बिगड़ेगी। बैंक ने इन देशों की आर्थिक विकास दर के अनुमान को मौजूदा 1.3 फीसदी से घटा कर महज 0.3 फीसदी कर दिया है। जबकि महंगाई की दर के अनुमान को दो फीसदी से बढ़ा कर 2.7 फीसदी कर दिया है। साथ ही बैंक ने ब्याज दरों को भी घटा दिया है। इसका असर यूरोप से लेकर अमेरिका तक में हुआ है। सबकी निगाहें इन देशों के प्रमुखों की 8-9 दिसंबर की बैठक के नतीजों पर टिकी हुई है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यूरोपीयन सेंट्रल बैंक की नई रिपोर्ट से साफ है कि आगामी वित्त वर्ष के दौरान भी यूरोप की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आएगी। यह अपने आप में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है। घरेलू अर्थव्यवस्था इससे बुरी तरह प्रभावित होगी निर्यात में होगी गिरावट पिछले दो तीन वर्षो के दौरान देश के कुल निर्यात में यूरोप की हिस्सेदारी घटी है। इसके बावजूद अभी देश से 19 फीसदी निर्यात यूरोपीय देशों को होता है। खास तौर पर भारतीय चमड़े व कपड़े का सबसे बड़ा आयातक यूरोपीय देश ही हैं। मंदी में यूरोपीय जनता इनका इस्तेमाल और कम करेगी। रुपया होगा और अस्थिर ऐसे समय जब डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये की कीमत में पिछले कुछ हफ्तों में 18 फीसदी की गिरावट हो चुकी, यूरोपीय संकट का बढ़ना इसके समक्ष नई चुनौतियां पेश कर देगा। जानकारों का कहना है कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था की मंदी की खबर के बाद रुपये के सापेक्ष इसकी कीमत क्या होगी, इसे लेकर अभी कयास ही लगाया जा सकता है। डॉलर के मुकाबले यूरो भी गिरा है। हाल के महीनों में रुपये के मुकाबले यूरो मजबूत हुआ है। इसका असर सबसे ज्यादा देश की सॉफ्टवेयर कंपनियों के राजस्व पर पड़ा है। एफआइआइ निकालेंगे निवेश वैसे ही विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार से निवेश समेटना शुरू कर चुके हैं। यूरोपीयन सेंट्रल बैंक की नई रिपोर्ट इस प्रक्रिया को और तेज कर सकती है। अमेरिका के प्रमुख एफआइआइ अपनी पूंजी ज्यादा सुरक्षित तरीके से रखने की प्रक्रिया शुरू भी कर चुके हैं। विमानन कंपनियों पर भी पड़ेगा असर एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर की नागरिक उड्डयन कंपनियों के लिए बुरा दौर शुरू हो सकता है। सबसे ज्यादा एशिया-प्रशांत क्षेत्र की एविएशन कंपनियों पर बुरा असर पड़ने की बात अंतरराष्ट्रीय हवाई ट्रांसपोर्ट संघ (आइएटीए) ने कही है। एयर इंडिया, किंगफिशर और जेट एयरवेज की बदहाल स्थिति और खराब हो सकती है।

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