Friday, December 2, 2011

अर्थव्यवस्था की रफ्तार


अर्थव्यवस्था की रफ्तार में गिरावट से परेशान उद्योग जगत ने सरकार को त्राहिमाम संदेश भेजा है। इंडिया इंक ने सरकार को याद दिलाया है कि सुस्ती के लिए बहुत हद तक घरेलू वजहें ही जिम्मेदार रही हैं। इसलिए इनका इलाज भी घरेलू स्तर पर ही होनी चाहिए। इंडिया इंक ने सरकार से आग्रह किया है कि मंदी से बाहर निकालने के लिए ब्याज दरों को घटाए और फैसले लेने में देरी नहीं करे। उद्योग चैंबर सीआइआइ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में नए निवेश का आना बंद हो चुका है। अगर सरकार की तरफ से निवेश बढ़ाने के उपाय नहीं किए गए, तो अर्थव्यवस्था पर सुस्ती के बादल और गहरा सकते हैं। इस मंदी को खत्म करने का काम घरेलू नीति निर्माता ही कर सकते हैं। हाल ही में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण फैसले किए हैं और यह रफ्तार बनी रहनी चाहिए। उद्योग संगठन एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने मांग की है कि रिजर्व बैंक को बगैर किसी देरी के अब ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू कर देना चाहिए। अगर अभी भी नई मैन्यूफैक्चरिंग नीति को तेजी से लागू किया जाए, तो चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान 7.5 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल की जा सकती है। उद्योग चैंबर फिक्की के महासचिव राजीव कुमार को आशंका है कि दूसरी छमाही और आगामी वित्त वर्ष 2012-13 में भी हालात बहुत नहीं सुधरेंगे। उन्होंने कहा कि इस बात के ठोस संकेत हैं कि चालू वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर 7.3 फीसदी या इससे भी कम रहेगी। मौजूदा हालात से निकलने के लिए सरकार के साथ ही रिजर्व बैंक को भी तत्काल कदम उठाने होंगे। कुमार का आकलन है कि अर्थव्यवस्था में स्थायी पूंजी का निर्माण बिलकुल थम गया है। यह काफी खतरनाक संकेत है। जाहिर है कि पूरा उद्योग जगत परोक्ष या प्रत्यक्ष तौर पर मौजूदा मंदी के लिए रिजर्व बैंक की कठोर मौद्रिक नीति को जिम्मेदार ठहरा रहा है। 

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