Monday, December 5, 2011

समय पर उपचार


भारतीय राजनीति पिछले साल से ही एक से एक घोटालों के कारण लुंज-पुंज हो गई है। गतिरोध अब मुठभेड़ में बदल गया है। संसद में हंगामे और राज्यों के नेताओं के विरोध से घेराव में पड़ी मनमोहन सिंह सरकार सरकार ने भारत के 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर के खुदरा व्यापार को विदेशी निवेशकों के लिए खोल दिया है। बढ़ती महंगाई और घटती आर्थिक वृद्धि पर लगाम लगाने के मकसद से उदारीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समय पर किया गया उपचार साबित हो सकता है लेकिन ऐसे देश में जहां अतिरिक्त श्रमबल है, वहां यह जोखिम ला सकता है। खुदरा में विदेश निवेश के समर्थकों को उम्मीद है कि यह पैकेज महंगाई पर काबू लगाएगा और संरचनागत क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देगा। ये कुछ अत्यावश्यक लक्ष्य हैं। एक देश जहां व्यापक स्तर पर गरीबी है, मुद्रास्फीति बेहद अस्थिरकारी है। भारत का जर्जर संरचनागत ढांचा, सामान्यतया आम व्यवसाय और विशेषकर खाद्यान्न विक्रेताओं की लागत बढ़ा देता है : शीतगृहों की खस्ताहालत और खराब वितरण पण्राली के चलते आधी से ज्यादा चीजें अपनी ठौर पर पहुंचने के पहले नष्ट हो जाती हैं। उदारीकरण सही रास्ते पर सही तरीके से चले इसके लिए सरकार को आगे अपने कामकाज में बदलाव करना होगा। भारत को अपने नैराश्यकारी और बेतरतीब परिसम्पत्ति कानून में आमूलचूल बदलाव लाना होगा : अगर सुपर बाजार की श्रृंखला के लिए जमीन खरीदना मुफीद नहीं हो सकता तो वह इससे दूर ही रहेंगे। साथ ही राज्य स्तर पर होने वाले प्रचंड राजनीतिक विरोध का शमन करना होगा, जो आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को विफल कर सकते हैं। सबसे बड़ा तकाजा भारत के आंतरिक बाजार को एकीकृत करना है। अभी तो हाल है कि देश के 28 राज्यों के बीच मालों की आवाजाही पर कर चुकाना पड़ता है-यह भारतीय खुदरा विक्रेताओं के संगठित होने की विफलता का स्पष्ट कारण है। ऐसे में जब आंतरिक बाजार लुंज-पुंज बना हुआ है, भारत में सुपर बाजार लाने के अहम फायदे-वस्तुओं की व्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला और लाभकारी उत्पादकता के साथ अर्थव्यवस्था को ऊंचाई देना-दुष्प्राप्य ही रहेगा। अगर सरकार ने सुधार को लागू करने का जुगाड़ बना लिया तो उसके सामने प्रारंभिक चुनौती सबसे बड़ी होगी। एक समेकित खुदरा क्षेत्र के लिए समेकित आपूर्तिकत्र्ता कृषि क्षेत्र की जरूरत होगी। भारतीयों को इस बदलाव के लिए अपनी आजीविका के करोड़ों रुपये चुकाने होंगे। सक्षम कल्याणकारी पण्राली के न होने के चलते यह गंभीर चिंता का विषय है। सरकार को अब इस अतिरिक्त श्रम को खपाने के लिए अवश्य ही उपाय करना चाहिए, अन्यथा खुदरा क्षेत्र की जीती राजनीतिक लड़ाई उन्हीं लोगों को नुकसान पहुंचाने में दम तोड़ दे सकती है, जो सबसे ज्यादा जरूरतमंद हैं।
फिनांसिएल टाइम्स की राय

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