Friday, December 9, 2011

महंगाई के जख्म पर फिर से नमक


आवश्यक वस्तुओं की बेतहाशा महंगाई से आम जनता भले ही बिलबिला रही हो, लेकिन सरकार की नजर में खाद्य वस्तुओं के दाम घटे हैं। कीमतों पर काबू पाने की नाकामी के आरोपों को खारिज करते हुए केंद्र सरकार ने महंगाई का ठीकरा राज्यों के सिर फोड़ा है। महंगाई घटे न घटे, पर सदन में विपक्ष की ओर से इस बार भी सवाल दागे गए। सरकार ने जवाब भी उसी अंदाज में आंकड़ों सहित देकर छुट्टी पा ली है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी गुरुवार को राज्यसभा में महंगाई पर हुई चर्चा का जवाब दे रहे थे। वित्त मंत्री ने चावल, गेहूं और कुछ दालों के दो साल पहले के मूल्यों से तुलना करते हुए मंहगाई के कम होने का दावा किया। खाद्य उत्पादों के थोक मूल्यों का ताजा आंकड़ा पेश करते हुए मुखर्जी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 29 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में खाद्य महंगाई दर 11.8 फीसदी थी। यह दर 26 नवंबर को समाप्त सप्ताह में घटकर 6.6 फीसदी पर पहुंच गई है। उनके मुताबिक, 8-9 फीसदी से अधिक की महंगाई देश झेल नहीं सकता है। वित्त मंत्री के जवाब से असंतुष्ट भाजपा, माकपा, अन्नाद्रमुक और सपा ने सदन से वाकआउट किया। महंगाई की वजह गिनाते हुए उन्होंने कहा कि फसलों के समर्थन मूल्य में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। पूर्ववर्ती सरकारों ने गेहूं का समर्थन मूल्य 440 से 500 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ाया था। यह अब बढ़कर 1080 रुपये तक पहुंच गया है। भारतीय खाद्य निगम गेहूं के कुल उत्पादन का एक तिहाई खरीद करता है। राशन प्रणाली में रियायती दरों पर इसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का प्रावधान है। यह काम कृषि भवन (कृषि मंत्रालय) और नार्थ ब्लॉक (वित्त मंत्रालय) नहीं कर सकता है। इसके वितरण तंत्र की व्यवस्था राज्य सरकारें ही कर सकती हैं। भाजपा के वेंकैया नायडू के उठाए सवालों के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्रियों की सिफारिशों को लागू करने का दायित्व राज्य सरकारों का है। मंडी कानून और थोक व खुदरा मूल्यों में बढ़ते अंतर को कम करने का जिम्मा राज्यों का ज्यादा है। बिचौलियों के माध्यम से ही 86 फीसदी खाद्य उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं। बहुत कम राज्यों में राशन प्रणाली ठीक से काम कर रही है। सब्सिडी वाला चावल व गेहूं सभी को दिया जा रहा है। राज्य सरकारें आम उपभोक्ताओं के लिए आवंटित अनाज को उठाने में कोई रुचि नहीं दिखाती हैं। माकपा के पेट्रोलियम पदार्थो की महंगाई पर उठाए सवालों के जवाब में वित्त मंत्री ने विस्तृत आंकड़ा पेश करते हुए इसकी जिम्मेदारी भी राज्यों पर थोप दी। उन्होंने कहा कि केंद्र को मिलने वाले 1.36 लाख करोड़ रुपये के करों का 32 फीसदी राज्यों को मिलता है। इसके अलावा राज्यों के बिक्री कर से मूल्य बढ़े हैं। तेल कंपनियों के घाटे का जिक्र करते हुए कहा कि डीजल पर 10.62 रुपये और केरोसीन पर 25 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। रसोई गैस पर भी 260.50 रुपये प्रति सिलेंडर का घाटा हो रहा है। पूर्ववर्ती राजग सरकार पर वार करते हुए मुखर्जी ने कहा कि उसके कार्यकाल में पेट्रोलियम उत्पादों को नियंत्रण मुक्त करने की शुरुआत हुई थी। इनकी जरूरत का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है। घरेलू उत्पादन उस लिहाज से काफी कम है। भाजपा से कहा कि राजग सरकार खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के पक्ष में था। लिहाजा भाजपा को अब इसका विरोध नहीं करना चाहिए।

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