Wednesday, December 14, 2011

आर्थिक सुस्ती के आगे लाचार सरकार


सरकार को आर्थिक सुस्ती से निपटने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। कोरे वादों और उम्मीदों के सिवाय उसके पास मंदी की तरफ जाती अर्थव्यवस्था को बचाने का कोई ठोस उपाय नहीं है। अंधेरे में हाथ-पैर मार रही सरकार आम आदमी और निवेशकों को भरोसा देने में नाकाम है। यही वजह है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सुधारों की रफ्तार बढ़ाने के लिए संसद को सुचारु रूप से चलाने की पुरजोर पैरवी तो की, लेकिन खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कोई नुस्खा नहीं पेश कर पाए। इस बीच रुपये में ऐतिहासिक गिरावट से सरकार की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे की धीमी रफ्तार के साथ रुपये की कीमत भी सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत अब तक के सबसे निचले स्तर 53.24 रुपये पर पहुंच गई है। महंगाई और ऊंची ब्याज दरों के चलते उद्योगों में उत्पादन की रफ्तार थम गई है। निर्यात की हालत बुरी है। आर्थिक सुधारों का पहिया भी रूका हुआ है। ऐसे में राज्यसभा में विनियोग विधेयक पर जवाब देने के समय वित्त मंत्री से उम्मीद थी कि वो सरकार के भावी उपायों के बारे में बताएंगे। उन्होंने माना कि अर्थव्यवस्था मंदी में है। हालांकि उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि इस मंदी से पार पाने की क्षमता भारतीय अर्थव्यवस्था में है। मगर वित्त मंत्री का यह आशावाद मुद्रा बाजार में रुपये के अवमूल्यन को नहीं रोक पाया। डॉलर के मुकाबले रुपया 53.52 के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि बाद में कुछ सुधर कर यह 39 पैसे की गिरावट के साथ 53.24 रुपये पर बंद हुआ। पिछले दो दिनों में डॉलर 1.19 रुपये मजबूत हुआ है। रुपये की कीमत में उतार-चढ़ाव अभी बने रहने की उम्मीद है। डॉलर के लगातार मजबूत होते जाने से कमजोर हुआ रुपया सरकार के खजाने में और सेंध लगाएगा। सरकार का कहना है कि आरबीआइ के पास विदेशी मुद्रा का भंडार इतना नहीं है कि वह हस्तक्षेप कर रुपये को स्थिर करे। उधर अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत देख प्रमुख अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी व वित्तीय सलाहकार संस्था फिच ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर के अनुमान को 7.5 फीसदी से घटा कर 7 फीसदी कर दिया है। फिच ने इसके लिए घरेलू स्तर पर ब्याज की दर व महंगाई की स्थिति को प्रमुख कारक बताया है। देश के सभी प्रमुख चैंबरों ने सरकार को त्राहिमाम संदेश भेजते हुए कहा है कि अगर हालात से निबटने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो अब नौकरियों में छंटनी का सिलसिला शुरू हो सकता है। एचडीएफसी बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री अभीक बरुआ के मुताबिक अक्टूबर में त्योहारी सीजन होने के बावजूद उपभोक्ता सामान उद्योग में 0.3 फीसदी की गिरावट से साफ है कि स्थिति कितनी गंभीर है।

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