Monday, December 5, 2011

देसी रिटेल पर खतरा नहीं


भारत में खुदरा व्यापार क्षेत्र को विदेशी खुदरा व्यापारियों के लिए खोला जाना बहुत बड़ा कदम है। भारतीय अर्थव्यवस्था के व्यापक उदारीकरण के साथ इसकी शुरुआत 1991 में ही हो गई थी। भारत के मौजूदा फैसले का वि व्यापार संगठन और व्यापक वैिक अर्थव्यवस्था के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के लिहाज से भी महत्व है कि भारत विदेश निवेश के लिए सावधानीपूर्वक अपने खुदरा क्षेत्र को खोल सकता है। खुदरा कारोबार क्षेत्र सरकार के लिए हमेशा से एक बेहद नाजुक मसला रहा है। इसलिए कि कितनी ही अर्थव्यवस्थाएं इस क्षेत्र में सांस लेती हैं। यह क्षेत्र पूरे देश के लिए रोजगार देने का बड़ा स्रेत और संसाधन रहा है। खुदरा कारोबार इस अर्थ में भी अहम है कि यह देश के हर नुक्कड़ तक, चाहे वह क्षेत्र अमीर हो या गरीब, भौगोलिक रूप से आसान हो या नजदीक अथवा दूर-दराज का दुर्गम कोई इलाका, सभी की आवश्यकता की वस्तुएं और अपनी सेवाएं पहुंचाता रहा है। परंपरागत रूप से, खुदरा क्षेत्र पर छोटे-छोटे पंसारियों-किराना दुकानदारों का प्रभुत्व रहा है, जिनकी दुकानें पास-पड़ोस के हर नुक्कड़ पर होती हैं। इस क्षेत्र में ज्यादा पूंजीवाली कुछ बड़ी दुकानें भी हैं, पर वह अधिकतर बड़े शहरों में होती हैं। गांवों में ऐसे स्टोरों की तादाद लगभग शून्य है। हालांकि, मेट्रो में भी बड़ी श्रृंखला वाले किराना दुकानों की कोई अवधारणा नहीं है और वह किराना से लेकर इलेक्ट्रानिक सामानों को एक साथ बेचते हैं। लेकिन पिछले 10 साल में, कम से कम बड़े शहरों/नगरों में भारी-भरकम दुकानों के लिहाज से काफी बदलाव आया है। अब तो हरेक बड़े व्यावसायिक घराने खुदरा क्षेत्र में उतरने का जोखिम लिया है। उनकी प्रेरणा बढ़ती आमदनी से बने नव धनाढ्य मध्य वर्ग को अपनी जद में लेना है।
दो साल में बदल गई परिस्थिति
विगत दो वर्षो में भारत के दूसरी श्रेणी के उन नगरों और छोटे शहरों तक में रिटेल स्टोर्स सफलतापूर्वक स्थापित हो गए हैं और धड़ल्ले से चल रहे हैं; जहां खुदरा व्यापारियों ने लोगों की खरीद क्षमता की नई लहर देखी है। ऐसे तथ्यों पर आधारित तरीकों ने हमें यह सोचने पर विवश किया है कि क्या बड़े शहरों में सचमुच कड़ी प्रतिस्पर्धा है और वहां इस क्षेत्र के दूसरे बड़े खिलाड़ियों के लिए कारोबार की पर्याप्त गुंजाइश है? इसका जवाब है- हां। भारत में खुदरा व्यापार, कम से कम, बड़े नगरों/शहरों में इस स्थिति तक पहुंच गया है कि उसे परिपक्वता और स्थायित्व के लिए अन्यत्र देखना आवश्यक हो गया है। विदेशों में खुदरा व्यवसाय के सफल मॉडल भारत को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी और अनुभव दे सकते हैं।
डर निराधार
इस संदर्भ में यह डर निराधार है कि भारत के खुदरा क्षेत्र में वॉल मार्ट की श्रृंखला देश के व्यवसाय पर कब्जा जमा लेगी। भारत आकर कारोबार करने वाली किसी भी कंपनी या इकाई को यहां के नियम-कायदों के मुताबिक ही चलना होता है। यह बात इस क्षेत्र में भी लागू होती है। इस बात को अन्य देशों के अनुभवों के प्रसंग में भी समझा जा सकता है। चीन में कारोबारी वॉल मार्ट के व्यावसायिक तौर-तरीके स्थानीय खुदरा चीनी व्यापारियों के मानक से सर्वथा अलग नहीं हैं। इसलिए वॉल मार्ट या पश्चिमी देशों की खुदरा चेन दुनिया के जिस किसी हिस्से में गई हो, उन्होंने अपने को वहां के वातावरण में ढाल लिया है।
रोजगार पर दुविधा
इसलिए यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि भारत में कॉरपोरेट खुदरा स्टोर्स का चलन पहले से ही जोर पकड़ रहा है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी दिग्गज कंपनियों के आने से यहां के उद्योगों के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण बनेगा। जहां तक रोजगार पर इसके प्रतिकूल असर की बात है तो यह निश्चित रूप से दुविधा की स्थिति है। लेकिन लोगों को व्यापारियों को उनके बीच से बिचौलियों या कमीशन एजेंट से गायब होते पाएंगे। इसके बदले में फायदा यह होगा कि इससे उपभोक्ताओं को कम कीमतों पर सामान मिलेंगे, उत्पादों को अपने उत्पाद के बदले उचित दाम मिलेंगे और किसानों की पैदावार की बिक्री में भी कोई घाटा नहीं होगा।
सरकार की भूमिका सशक्त नियामक की
खुदरा क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने का मतलब सरकार का अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना नहीं है। उसे अलग रह कर यह सुनिश्चित करना है कि कारोबार नियम के मुताबिक हो रहा है या नहीं। हम इसे आर्थिक शब्दावली में कह सकते हैं कि सरकार को एक स्ट्रांग रेगुलेटर
(सशक्त नियामक) की भूमिका निभानी होगी। किसी के रोजगार से वंचित होने की स्थिति में एक सुरक्षात्मक पण्राली बनाई जानी चाहिए या उसे इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वह दूसरे क्षेत्र में रोजगार पाने के काबिल हो सके। सरकार की नीतियां इस दिशा में काम कर सकती हैं और वह हरेक के लिए लाभदायक होंगी।

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