Monday, December 5, 2011

नुकसान की आशंका नहीं


रिटेल कारोबार में 51 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दिए जाने का विरोध हो रहा है, कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम से रिटेल कारोबारियों के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा लेकिन हमलोगों का अनुभव बताता है कि सरकार के इस कदम से भारतीय खुदरा व्यापारियों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इसकी बुनियादी वजह तो यही है कि भारत के अंदर छोटे-छोटे कारोबारियों और दुकानदारों की अपनी खासियत है। वे मांग के अनुरूप ही अपने यहां समान का स्टॉक रखते हैं। उनके पास स्टोरेज की बहुत ज्यादा जगह नहीं होती। लिहाजा वे अपने कारोबार में ज्यादा पूंजी भी नहीं लगाते हैं। इसके अलावा उनके अपने ग्राहकों से एक रिश्ता बन जाता है। वे अपने ग्राहकों को अच्छी तरह से पहचानते हैं और उन्हें यह मालूम होता है कि किस घर में कब किस सामान की जरूरत होगी। इतना ही नहीं वे क्रेडिट पर भी सामान देते हैं। इसके लिए किसी क्रेडिट कार्ड की जरूरत नहीं होती। अपने यहां बहुत सारे ग्राहक भी ऐसे हैं, जो अपने घर के लिए रोजाना का सामान खरीदते हैं। ऐसे ग्राहक हर रोज तो मल्टी ब्रांड के स्टोर में नहीं जाएंगे। इस लिहाज से मुझे लगता है कि भारत के खुदरा रिटेलरों पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पिछले पांच छह सालों से देश के अंदर बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने अपने रिटेल शॉप स्थापित किए हैं। बावजूद इसके रिटेल कारोबारी भी अपना काम कर रहे हैं। इसके अलावा एक और अहम बात है। भारत में हर सौ किलोमीटर की दूरी पर खान-पान और पहनने-ओढ़ने का तरीका बदल जाता है। स्थानीयता का जुड़ाव और लगाव भारतीय में खूब होता है। इस जुड़ाव को हमारे स्थानीय कारोबारी बखूबी समझते हैं और इसके चलते ही पीढ़ियों से कारोबार की दुनिया में बने हुए हैं। ऐसे में किसी इंटरनेशनल रिटेलर के लिए आम भारतीयों के लिए हर सामान मुहैया करा देना संभव नहीं होगा। विदेशी निवेश से जितने नुकसान की बात की जा रही है, उसके मुकाबले हमें फायदा ज्यादा दिख रहा है। मसलन, सबसे बड़ा फायदा ग्राहकों को होने वाला है। उनके सामने एक उत्पाद के कई विकल्प मौजूद होंगे, तब वह अपनी पसंद और अपनी जेब के मुताबिक सामान खरीद पाएगा। इसके अलावा उत्पादों की कीमतें भी अपेक्षाकृत कम होंगी। अभी कई ऐसे उत्पाद हैं, जहां उत्पादकों से ग्राहकों तक पहुंचने पर उसे कम से कम 6-7 मिडिल मैन से गुजरना होता है। इससे हर जगह के मार्जिन को देखते हुए कहा जा सकता है कि ग्राहकों को कहीं महंगा सामान खरीदना पड़ता है। मल्टी स्टोर में मिडिल मैन की संख्या कम हो जाएगी। इसका असर उत्पाद की कीमतों पर पड़ेगा। बाजार में मल्टी ब्रांड स्टोर की कई चेन होंगी। लिहाजा बाजार पर एकाधिकार की बात भी सही नहीं लगती, आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते भी कीमतों पर अंकुश रहेगा। इसके अलावा देश में रोजगार के भारी भरकम अवसर सामने आएंगे। रिटेल के कारोबार में विदेशी पूंजी के आने का मतलब यही है कि अब ज्यादा मल्टी स्टोर खुलेंगे। हर मल्टी स्टोर खुलने का मतलब कुछ सौ बेरोजगारों को काम देना होगा। रिटेल के कारोबार में काम करने के लिए बहुत बड़ी डिग्री और शिक्षा की जरूरत नहीं होती। सामान्य युवक भी रिटेल के बिजनेस में रोजगार कर सकते हैं। इस लिहाज से काफी बड़ी संख्या में बेरोजगार बैठे युवकों को काम करने का मौका मिल सकता है। किसानों को भी फायदा होगा। अभी उनका उत्पाद भले ही जिस कीमत पर बेचा जा रहा हो लेकिन उनसे खरीदा कम कीमत पर ही जाता है। मल्टी स्टोर ब्रांड सीधे किसानों से खरीददारी करेंगे, इससे किसानों को अपने उत्पादों की बेहतर कीमत मिलेगी। जब किसानों की आमदनी बढ़ेगी तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। मौजूदा समय में अनाज, फल-फूल और सिब्जयों का बहुत बड़ा हिस्सा बेहतर भंडारण और परिवहन के अभाव में नष्ट हो जाता है। बड़े स्टोरों के खुलने से यह नहीं हो पाएगा। इतना ही नहीं सरकार को भी इससे काफी फायदा होगा। पहला फायदा तो यही होगा कि विदेशी निवेश के बहाने देश में विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ेगा। इसके अलावा सरकार इस तरह के मापदंड अपना रही है जिसके जरिए मल्टी ब्रांड और विदेशी निवेश वाले स्टोरों से हर साल वह टैक्स भी पारदर्शिता से वसूलने में कामयाब होगी। जब इस तरह के स्टोर खुलते हैं तो उनमें कर चोरी की आशंका बेहद कम होती है। ऐसे में निश्चित तौर पर सरकार के पास हर साल आने वाला राजस्व बढ़ेगा और उससे देश के अंदर विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। एक बड़ी हकीकत यह भी है देश के अंदर खुदरा कारोबार करने वालों कर चुराने वाले कारोबारियों की बड़ी संख्या मौजूद है। उनसे सरकार को नुकसान भी खूब हो रहा है। यह नुकसान कम से कम मल्टी ब्रांड स्टोरों से नहीं होगा।
प्रदीप कुमार की बातचीत पर आधारित

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