Monday, December 5, 2011

अपनों से भी छिपाया

कांग्रेस के भीतर भी बड़ा तबका ऐसा है जिसे रिटेल में एफडीआई का सरकारी फंडा समझ में नहीं आ रहा। समझ में आए भी तो कैसे! कभी सरकार में बैठे मंत्रियों ने पार्टी को रिटेल में एफडीआई का माजरा समझाने की जरूरत ही नहीं समझी। पार्टी में बड़ा वर्ग इस विषय पर कई तरह से सवाल कर रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जब कालेधन और महंगाई पर पहले से संसद नहीं चल रही हो तब सरकार को रिटेल में एफडीआई की सीमा बढ़ाने की क्या सूझी ? इसका जो जवाब वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने दिया है वह भी पार्टी में किसी के गले नहीं उतर रहा है। उनका कहना है कि सरकार पर फैसले नहीं लेने के जो आरोप लग रहे थे रिटेल में एफडीआई उसका माकूल जवाब है। कांग्रेस में सवाल ही सवाल हैं पार्टी के भीतर एक सवाल यह भी है कि अगर इससे किसानों को फसल का बेहतर दाम मिलने वाला है और उपभोक्ताओं को चीजें सस्ती मिलने लगेंगी तो फिर यह फैसला सबको बताकर क्यों नहीं लिया गया ?सरकार ने इस फैसले की जानकारी सहयोगी दलों को तो छोड़िए सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस में भी गिने-चुने नेताओं के सिवा किसी को नहीं दी। किसी को नहीं मालू म फायदे के बारे में पार्टी के सभी महासचिव और प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं जानते हैं कि जब पांच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं तब रिटेल में एफडीआई से कांग्रेस का क्या फायदा होने वाला है। कांग्रेस के प्रवक्ताओं का भी इस बारे में ज्ञान सीमित ही है। शायद यही वजह है कि सहयोगियों और विपक्ष के तमाम सवालों के जवाब कांग्रेस के नेताओं के पास नहीं है। इनमें से एक सवाल यह भी है कि बड़े विदेशी दुकानदारों की दुकानें खुल जाने के बाद छोटे दुकानदार क्या बेचेंगे और कहां बेचेंगे? बचाव में यह उत्तर कि विदेशी दुकानदार एक करोड़ व्यक्तियों के लिए रोजगार लेकर आ रहे हैं; दमदार नहीं है क्योंकि इससे मूल सवाल जस का तस ही बना रहता है। क्या छोटे दुकानदार अपनी दुकान बंद करके बड़े दुकानदारों के यहां नौकरी करेंगे ? क्या बड़ा दुकानदार उनको रखेगा,जिनमें से बहुत से छोटे दुकानदार कतई प्रोफेशनल नहीं हैं? इस मामले में सरकार की नीयत पर शक के और भी बहुत से कारण हैं। रिटेल के स्टोर जिन राज्यों में खुलने हैं, वहां के मुख्यमंत्रियों को भी सरकार ने तब जाकर पत्र भेजा जब विपक्षी और सहयोगी दल इस पर खुलकर विरोध में उतर आए। शॉप एक्ट के रजिस्ट्रेशन राज्य सरकार जारी करती है बिना उसकी अनुमति के देशी-विदेशी कोई दुकान नहीं खोली जा सकती। विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने तो विदेशी स्टोर नहीं खोलने देने का ऐलान कर दिया है पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री न तो हामी भर रहे हैं और न विरोध कर रहे हैं। दरअसल, उन्हें ठीक से पार्टी लाइन बताई ही नहीं गई है। केरल से विरोध के स्वर इसी वजह से उठे हैं। केरल की पूरी कांग्रेस विदेशी स्टोरों के खिलाफ है। वहां के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चेन्निथला ने इस बारे में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को पत्र भी लिखा है। केरल से आने वाले सभी केंद्रीय मंत्री भी यही कह रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सांसद संजय सिंह ने भी रिटेल में एफडीआई बढ़ाने का खुलकर विरोध किया है। भीतर से विरोध के स्वर उठने के बाद सरकार में बैठे कांग्रेस के मंत्री जागे हैं। उन्होंने संसदीय दल की बैठक में इसके फायदे बताने की कोशिश की है। हालांकि मामला इतना आसन नहीं है सो जल्दी समझ में आने वाला नहीं है। पार्टी ने अन्ना हजारे प्रकरण के वक्त यह फैसला लिया था कि नीतिगत फैसलों पर कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा होगी। पर रिटेल में एफडीआई को लेकर ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई। अगर पार्टी ने यह समझा है कि सांसदों को इस विषय की जानकारी दी जाए तो क्या पार्टी चलाने वाले नेताओं को यह विषय नहीं बताना चाहिए था ? सहमति से नहीं बहुमत से कांग्रेस में कहा जा रहा है कि एफडीआई का फैसला छह सदस्यों वाली कोर कमेटी के चार सदस्यों का है। प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह,कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की रिटेल में एफडीआई पर सहमति थी। पर रक्षा मंत्री एके एंटोनी और गृह मंत्री पी.चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कुछ सवाल खड़े किए। वहीं कैबिनेट की बैठक में भी इस पर सबकी सहमति नहीं थी। सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस से आने वाले रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के अलावा कांग्रेस से विमानन मंत्री वयालार रवि, ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और वीरभद्र सिंह ने इसे घाटे का सौदा बता डाला। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने भी स्वीकार किया है कि कैबिनेट में यह फैसला सहमति से नहीं बहुमत से लिया गया। कैबिनेट में बहुमत से फैसले की स्वीकारोक्ति बहुत कुछ बयान कर देती है। उन्होंने यह भी माना कि गृह मंत्री पी.चिदम्बरम को भी एक बिंदु पर अभी उन्हें समझाना है। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि चिदम्बरम समझ गए हैं अथवा नहीं। खुलकर विरोध कर रही तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को समझाने के लिए वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा कोलकाता तक गए। पर खाली हाथ ही लौटे। अगर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी तृणमूल नेता ममता बनर्जी से बात करते तो शायद बीच का कोई रास्ता निकलता। कम से कम तृणमूल कांग्रेस से आने वाले मंत्री संसद के भीतर लोकसभा अध्यक्ष के आसन के नजदीक जाकर तो विरोध कतई नहीं करते। आनंद शर्मा और ममता बनर्जी का तो युवक कांग्रेस के दिनों से ही छत्तीस का आंकड़ा है। तब से दोनों के बीच कभी बनी ही नहीं है तो आज क्या बननी थी। कांग्रेस के एक युवा मंत्री ने कहा कि यह फैसला पहले तो अभी लेना नहीं था और लेना भी था तो इसकी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल देनी चाहिए थी ताकि केंद्र के खाते अपयश नहीं जाता।

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