Monday, December 5, 2011

छोटे दुकानदारों की चिंता हमें भी है


क्या एनसीपी का भी मानना है कि खुदरा में एफडीआई से महंगाई कम होगी ? -हां,महंगाई पर सकारात्मक असर जरूर पड़ेगा। बड़ी कम्पनियों के बीच प्रतियोगिता की वजह से उपभोक्ताओं को बस्तुएं कम दामों में मिलेंगी। उपभोक्ता को रिटेल में एफडीआई बढ़ाने से कोई नुकसान नहीं होने वाला। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार किसानों के नेता हैं, इसलिए पार्टी को कम से कम इस पर तो अपनी राय साफ करनी ही चाहिए कि इस कदम से किसानों को क्या वास्तव में फायदा होगा ? -किसानों को बड़ा बाजार मिलेगा। इससे किसानों को निश्चित तौर पर फायदा होगा। हमेशा इस पर बहस रही है कि किसानों को फसल का उचित दाम कभी नहीं मिला है पर अब यह समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी क्योंकि किसानों को अपनी फसल बेचने और उसका सही दाम हासिल करने की समस्या नहीं रहने वाली। इससे फसल का पूरा पैटर्न प्रभावित होने का खतरा भी तो है। पंजाब में चिप्स के लिए आलू उगाने वाले किसान अब परेशान हैं क्योंकि वहां दूसरी फसल की पैदावार में मुश्किल हो रही है ? -हां ऐसा है। फसल का उचित दाम नहीं मिलने पर किसान वाणिज्यिक फसलों की तरफ अग्रसर होते हैं। इसलिए किसानों के दर्द को समझने की जरूरत है। अगर हम किसानों के हितों का ध्यान रखेंगे तो ऐसी नौबत नहीं आएगी। किसान बस यही चाहता है कि उसकी फसल पड़ी-पड़ी बेकार न जाए और दूसरा उसे फसल का सही दाम दिया जाए। यह बात देसी दुकानदार समझे या विदेशी, किसान का इससे क्या लेना-देना है। छोटे दुकानदारों को बड़े विदेशी दुकानदारों के आने से जो नुकसान पहुंचेगा उसकी भरपाई कैसे होगी ? -इसकी चिंता एनसीपी को भी है। एनसीपी का साफ कहना है कि छोटे दुकानदारों की रोजी-रोटी नहीं छीननी चाहिए। सरकार को इस बात को समझाना चाहिए कि इसमें छोटे दुकानदारों के हितों पर कोई कुठराघात नहीं होने जा रहा है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सरकार कह रही है कि रिटेल में एफडीआई बढ़ाने से बड़ी तादाद में व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा। ऐसा तो नहीं हो सकता कि नए रोजगार तलाशने के लिए अभी जो लोग काम-धंधे से लगे हैं उनके मुंह से निवाला छीन लिया जाए। यही वजह है कि छोटे दुकानदारों को लेकर एनसीपी भी सरकार से कह रही है कि उनके विषय में स्थिति को स्पष्ट किया जाए। क्या भाजपा को इसलिए एफडीआई के मुद्दे पर बोलने का अधिकार नहीं है कि एनडीए की सरकार में वह भी इसकी पक्षधर थी ? -अकेली भाजपा क्या पूरे एनडीए को बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। एनडीए की सरकार के मंत्री मुरोसोली मारन ने तो रिटेल में सौ फीसद विदेशी निवेश की वकालत की थी। भाजपा और उसके सहयोगियों को बताना चाहिए कि तब उन्होंने इसे सिरे से खारिज क्यों नहीं किया था? भाजपा की कथनी-करनी में हमेशा अंतर रहता है और रिटेल में एफडीआई के मसले पर भी उसका यही रवैया है। क्या रिटेल में एफडीआई बढ़ाने का यह समय ठीक है, जब सरकार पहले ही तमाम सारे मुद्दों पर घिरी हुई है? - यह निर्णय और पहले भी लिया जा सकता था। बड़े फैसले जब भी लिए जाते हैं तो ऐसी स्थिति निर्मित हो ही जाती है। क्या इतना बड़ा फैसला लेने से पहले सहयोगी दलों से सलाह- मशविरा नहीं किया जाना चाहिए था? -ऐसा होता तो अच्छा होता। सलाह-मशविरा से मुश्किल से बाहर आने का रास्ता निकलता है। बैसे कैबिनेट में इस पर चर्चा हुई थी, जिसमें यूपीए के सभी घटकों के मंत्री शामिल थे।

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