जैसे ही वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपना बजट भाषण खत्म किया, लोग इस पर विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन हो उठे। मगर काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें कुछ खास हाथ नहीं लगा। ऐसा नहीं है कि बजट पर विचार देने वालों की कोई कमी थी, लेकिन उनके विचारों से कुछ खास निकलकर नहीं आया और इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं है। सभी ने सोचा था कि वित्त मंत्री भ्रष्टाचार और महंगाई को लेकर बजट में कुछ आक्रामक कदम उठाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मीडिया की लाख कोशिशों के बावजूद बजट वाला दिन खबरों के लिहाज से फीका ही रहा। हकीकत में इस बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदें भी नहीं थीं और यह इस पर पूरी तरह खरा भी उतरा। जहां तक पर्सनल फाइनेंस की बात है तो उसमें जरूर कुछ बदलाव किए गए हैं। न्यूनतम आयकर छूट की सीमा 1.6 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.8 लाख रुपये कर दी गई है। हालांकि लोगों को इसे दो लाख रुपये तक किए जाने की उम्मीद थी। आयकर छूट में इस 12.5 फीसदी की बढ़त से आम नौकरीपेशा लोगों का कुछ भला नहीं होने वाला, क्योंकि आसमान छूती महंगाई से जूझ रहे लोगों के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। मेरे हिसाब से न्यूनतम आयकर छूट की सीमा और इसे तय करने के तरीके पर गहन विचार-विमर्श करने की जरूरत है। कर छूट की सीमा का आकलन कभी भी वास्तविक महंगाई की रफ्तार से नहीं किया। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि न्यूनतम आयकर छूट की सीमा को महंगाई के साथ खुद ब खुद बदलने वाली प्रणाली में बांध दिया जाए। हमारे लिए यह कोई नई बात नहीं है। दीर्घावधि के कैपिटल गेन पर पहले से ही यह व्यवस्था लागू है। वित्त मंत्री ने एक और सबसे बड़ा बदलाव वरिष्ठ नागरिकों के लिए किया है। इसके तहत वरिष्ठ नागरिक की आयु 65 वर्ष से कम करके 60 वर्ष कर दी गई है। 60 साल से ज्यादा की सेवानिवृत्ति आयु वाले नौकरीपेशा लोगों के लिए यह एक स्वागतयोग्य कदम है। यही नहीं बल्कि प्रणब मुखर्जी ने वेरी सीनियर सिटीजन की नई श्रेणी भी बना दी है। इसमें 80 वर्ष से अधिक आयु वाले लोग शामिल किए जाएंगे। जहां तक मेरा अनुमान है तो आगामी बजटों में इस तरह की और श्रेणियां भी बनाई जा सकती हैं, जिन्हें सुपर सीनियर सिटीजन और अल्ट्रा सीनियर सिटीजन का नाम दिया जा सकता है। इनकी आयु सीमा क्रमश: सौ और 120 वर्ष रखी जा सकती है। ऐसा करने से राजस्व पर भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा और वित्त मंत्री को थोड़ी सी वाहवाही लूटने का मौका भी मिल जाएगा। बजट में नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) को प्रोत्साहन देने के उपाय किए गए हैं। एनपीएस से जुड़ने वाले छोटे जमाकर्ताओं को सब्सिडी देने वाली स्वावलंबन स्कीम की समयसीमा और बढ़ा दी गई है। असंगठित क्षेत्र के लोगों को एनपीएस से जोड़ने के लिए लगातार प्रयास जारी रखने होंगे। एक अन्य बदलाव के तहत अब कंपनियां एनपीएस में किए गए योगदान को बिजनेस लागत की श्रेणी में दिखा सकेंगी, पहले ऐसा नहीं था। म्यूचुअल फंडों में खुदरा निवेशकों के लिए कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। कॉरपोरेट निवेशकों के लिए डेट फंडों में निवेश पर लाभांश वितरण टैक्स बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा विदेशी निवेशकों को म्यूचुअल फंड उद्योग में सीधे निवेश की मंजूरी दे दी गई है। इससे भारतीय शेयर बाजार में विदेशी पूंजी आने का एक और रास्ता खुलेगा। बाजार और म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए यह अच्छी खबर है।
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