Thursday, March 3, 2011

दुनिया भर में दबदबा कायम करने वाली भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की उपेक्षा


आयुव्रेदिक, यूनानी, सिद्धा और औषधीय संस्थाओं के बजट में कटौती की सिफारिश जयपुर में संचालित राष्ट्रीय आयुव्रेद संस्थान के बजट पर भी चली कैंची
नई दिल्ली। योग व आयुव्रेदको घर-घर पहुंचाने वाले बाबा रामदेव के कथित कालेधन पर नजर गड़ाए बैठे कांग्रेस नेता बजट में योग एवं आयुव्रेदको धन दिला पाने में कामयाब नहीं हो पाए है। यहां तक कि मोरार जी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के बजट में कटौती करने की सिफारिश की गई है। प्राचीनतम भारतीय चिकित्सा पद्धति भले ही दुनियाभर में अपना दबदबा बना रही हो मगर हमारे देश में आज भी उसे कितना महत्व दिया जा रहा है उसका अंदाजा केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट से लगाया जा सकता है। जिसमें कई आयुव्रेदिक, यूनानी, सिद्धा और औषधीय संस्थाओं के बजट में कटौती की सिफारिश की गई है। हालाकि स्वास्थ्य मंत्रालय के बजट में 20 प्रतिशत की वृद्धि का दावा किया गया है लेकिन देशी पद्धतियों के बजट में डेढ़ फीसद से भी कम बढ़ोत्तरी की गई जिसके चलते इस क्षेत्र की तमाम परियोजनाएं और अनुसंधान फाइलों में दबे पड़े रहेंगे। बजट में उन चिकित्सा पद्धतियों को दरकिनार किया गया है जिनके पीछे लोग भाग रहे है। जब देशी पद्धतियों पर भारत से ज्यादा दुनिया के तमाम विकसित देशों के लोग यकीन करने लगे तो यहां के लोगों की मांग पर इस पद्धति को और विकसित करने की मांग की गई और आरोप लगाया गया कि सरकार अंग्रेजी पद्धति पर ही पूरा जोर देती है जबकि मांग देशी पद्धति की बढ़ रही है। कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जिसमें कहा गया कि देशी पद्धतियों में आज भी उन रोगों का इलाज है जिनके लिए अंग्रेजी पद्धति में कोई दवा तक नहीं है। यहां तक कि देशी पद्धति का कोई अन्य नुकसान नहीं होता। इस तरह के तर्क आने के बाद केंद्र सरकार ने आयुव्रेद, योग, यूनानी, सिद्धा एवं होम्योपैथिक को मिलाकर आयूष नामक एक अलग से विभाग बना दिया और उसमें मंत्रालय ने अलग से एक स्वास्थ्य सचिव की नियुक्ती कर दी ताकि अनुसंधान और शिक्षा पर जोर देने के लिए देश भर में फैले इस क्षेत्र को समेटा जा सके। लेकिन सरकार द्वारा बनाए गए इस नए विभाग को हर बार या तो पर्याप्त बजट मिलता ही नहीं है और यदि दिया भी जाता है तो वह इतना कम होता है कि कोई भी नया काम शुरू नहीं हो पता। यही वजह है कि इस दिशा में निजी क्षेत्र के लोग यदि कोई काम कर रहे है तो काफी आगे निकल रहे है। उल्लेखनीय है कि आम जनता में इन पद्धतियों की मांग है जबकि सरकारी संस्थाओं में आर्थिक तंगी की वजह से सन्नाटा छाया हुआ है। आयूष का चालू वर्ष का बजट 888 करोड़ रुपये था जिसे 900 करोड़ करने का प्रस्ताव किया गया है। गौरतलब है कि एक तरफ पूरे देश में योग ने क्रांति मचा दी है मगर केंद्र सरकार द्वारा संचालित मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के बजट में कटौती कर दी गई है। जबकि इस संस्थान को और महत्वपूर्ण बनाने के लिए बजट को बढ़ाने की मांग हो रही थी। पेश बजट में इस संस्थान को अब पूरे साल के लिए मात्र 5.5 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्रीय आयुव्रेदिक विज्ञान एवं सिद्धा परिषद के बजट को भी बढ़ाने की सिफारिश की गई थी मगर उसमें भी कटौती कर 51 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह परिषद देशभर के आयुव्रेदाचायरे व साधन सिद्धकों द्वारा हो रहे कामों का संरक्षण कर उसका प्रचार प्रसार करती है। इसमें काफी काम की गुंजाइश थी मगर अब इस परिषद में जो जैसे होता आ रहा था अब वही होगा। पैसे के आभाव में कोई नया काम नहीं होगा। जयपुर में संचालित राष्ट्रीय आयुव्रेद संस्थान के बजट में भी कटौती गई है। आयुव्रेद के क्षेत्र में चल रही तमाम योजनाओं पर कटौती करते हुे इसकी धनराशि को 16.50 करोड़ में समेट दिया गया है। युनानी दवाओं पर चल रहे तमाम शोध और यहां के विशेषज्ञों के लिए काम करने वाली केंद्रीय युनानी औषधि अनुसंधान परिषद के बजट में भी 5.39 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। पूर्वोत्तर में चलने वाले आयुष देशी औषधि संस्थान के बजट में 3 करोड़ की कटौती का प्रस्ताव किया गया है। जहां एक तरफ किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए वेजिटेबल पाकरे के लिए उदारता बरती गई है वहीं औषधीय वनस्पती व पौधों के राष्ट्रीय मिशन की उपेक्षा की गई है। गत वर्ष इसे 7.70 करोड़ मिले थे जबकि इस बार 6 करोड़ का प्रस्ताव किया गया है।


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