Friday, March 4, 2011

नि:स्वार्थ सेवा पर सेवाकर!


बीमार आदमी की सेवा तो कोई भी व्यक्ति नि:स्वार्थ मन से करता है। ऐसी सेवा जिसके लिए मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन लगा दिया उस सेवा पर कर लगाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। भारत जैसे विकासशील देश में स्वास्थ्य पर खर्च न कर पाने के कारण हर साल 24 लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं जिससे भारत ‘वि मानव विकास सूचकांक’ में 119वें नंबर पर खिसक गया जो काफी शर्म की बात है। देश में हर साल ढाई लाख लोग मलेरिया जैसी बीमारी के कारण दम तोड़ देते हैं और 45 हजार लोग डायरिया से अकाल मौत के मुंह में चले जाते हैं। जरूरत है देश में स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा बढ़ाने की, स्वास्थ्य पर अधिक रकम खर्च करने की, स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा देने की और मूलभूत सुविधाओं के विस्तार की, न कि स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च पर टैक्स लगाने की। आम आदमी को उचित मूल्य पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन इसके बाद भी देश की कुल जीडीपी में स्वास्थ्य सेवा पर सरकार का खर्च सिर्फ एक फीसद ही है। हालांकि वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी के दो से तीन प्रतिशत पर ले जाने की बात कही थी पर अब तक इस दिशा में सरकार आगे नहीं बढ़ सकी है उल्टे देश की जनता के सिर इलाज खर्च पर सेवाकर का बोझ लाद दिया गया। आज देश में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर अस्पतालों में सिर्फ 90 बिस्तर ही हैं। प्रति लाख आबादी पर सिर्फ 60 डाक्टर और 140 नर्से हैं। दूर दराज के क्षेत्रों में प्राथमिक चिकित्सा सुविधा के नाम पर ऐसे अस्पताल हैं जहां डाक्टर सप्ताह में सिर्फ एक ही दिन आते हैं। ऐसे में देश में विभिन्न बीमारियों से होने वाली मौतों में साल दर साल इजाफा होना स्वाभाविक है। हालांकि दुनिया में एड्स जैसी बीमारियों के उन्मूलन पर तो अरबों डालर खर्च किए जा रहे हैं लेकिन डायरिया और मलेरिया जैसी बीमारियों पर बहुत कम रकम खर्च की जा रही है। ऐसे में इन बीमारियों से होने वाली मौतों में इजाफा हो रहा है। आज जरूरत इस बात की है कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च जीडीपी का कम से कम तीन फीसद किया जाए, स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए ताकि डाक्टरों की संख्या में वृद्धि की जा सके। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में निजी-सार्वजनिक भागीदारी से अस्पताल खोले जाएं और निजी अस्पतालों में छोटी सी बीमारी के लिए भी भारी भरकम शुल्क वसूलने वाले निजी अस्पतालों के लिए शुल्क संबंधी नियमों में बदलाव किए जाएं। लेकिन इन जरूरतों को नजरंदाज करके इलाज खर्च पर सेवाकर लगाकर आम आदमी की ही जेब काटने का इंतजाम सरकार ने कर दिया है। आम बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा इलाज खर्च पर सेवाकर लगाए जाने का उद्योग संगठनों ने भी काफी विरोध किया और एक बैठक में इस मुद्दे पर पर उन्होंने वित्त मंत्री को घेरा तो वित्त मंत्री ने इस पर पुनर्विचार करने की बात कही। राजस्व सचिव सुनील मित्रा ने भी उद्योग संगठनों की आपत्ति का स्वागत किया है। सरकार को इस मुद्दे पर निश्चित तौर पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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