सदी के सबसे बड़े जलजले के बाद जापान फिर खड़े होने की कोशिशों में जुटा है। दुनिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में कंस्ट्रक्शन से संबंधित वस्तुओं की भारी मांग होने की संभावना है। इससे भारतीय कंपनियों को भी बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। जापान खाने पीने की चीजों का भी बड़े पैमाने पर आयात कर सकता है और बंपर पैदावार होने की वजह से भारत जापान को खाद्यान्न निर्यात करने की भी बेहतर स्थिति में है। जापान में निर्यात की संभावनाओं को बढ़ता देख सरकार से इस बारे में उपयुक्त कदम उठाने की भी मांग उठने लगी है। निर्यातकों के शीर्ष संगठन फियो के महासचिव ज्ञान प्रकाश उपाध्याय ने बताया कि जापान ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद लंबे समय तक निर्माण कार्य किया था। भूकंप के बाद ऐसे ही आसार बने हैं। भारतीय कंपनियों ने स्टील और सीमेंट सहित अन्य बिल्डिंग मटीरियल उत्पादों में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना ली है। जापान इन सभी उत्पादों का अब आयात शुरू कर सकता है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह घरेलू कंपनियों को निर्यात बढ़ाने में सहयोग करे। सबसे ज्यादा संभावना अनाज निर्यात बढ़ने की है। भारत में इस साल अनाज की पैदावार जबरदस्त होने की संभावना है। गेहूं, चीनी व चावल के बंपर उत्पादन से घरेलू बाजार में भंडारण की समस्या और गंभीर हो सकती है। वैश्विक बाजार में फिलहाल जिंसों की कीमतें भी काफी तेज हैं। सरकार को इस स्थिति को समझते हुए घरेलू जरूरतों को पूरा करने का इंतजाम करने के बाद खाद्यान्न निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा लेना चाहिए। इससे जापान को भी मदद मिलेगी क्योंकि वह एक जगह से बड़ी आपूर्ति ले सकेगा। हाल ही में भारत और जापान के बीच आर्थिक साझेदारी समझौता (सीपा) हुआ है। इससे आपसी कारोबार और तेज हो सकता है। भारत पहले से ही जापान को दालों, गेहूं, अनाज, चीनी व मसालों, सब्जियों, फलों, चाय, काफी, तंबाकू जैसे खाद्य उत्पादों का निर्यात करता रहा है। जापान के बाजार में इन भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा है। ऐसे में जापान की मदद करते हुए भारत अपने निर्यात को बढ़ा सकता है। वित्त वर्ष 2009-10 में भारत और जापान का द्विपक्षीय कारोबार करीब 10.3 अरब डॉलर का था। जापान को 3.63 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था, जबकि आयात 6.73 अरब डॉलर का रहा था। फियो का कहना है कि भूकंप के बाद निर्यात मांग बढ़ने की संभावना से भारत और जापान का द्विपक्षीय कारोबार वर्ष 2012-13 तक 25 अरब डॉलर हो सकता है। वैसे दोनों देशों ने सीपा के तहत वर्ष 2014 तक इसके हासिल होने का लक्ष्य रखा है|
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