Monday, March 21, 2011

रोजगार सृजन में अहम हो सकती हैं डायरेक्ट सेलिंग कंपनियां


सरकार ने कहा है कि वर्ष 2022 तक देश में रोजगार के 50 करोड़ नए अवसर पैदा करने के लक्ष्य में डायरेक्ट सेलिंग कंपनियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। फिलहाल इस क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों में 70 फीसदी महिलाएं हैं। यह उद्योग इस समय 49,400 करोड़ रुपये का है। वर्ष 2013 तक इसके 71,500 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। योजना और संसदीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने भारत में डायरेक्ट सेलिंग उद्योग पर शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की। इसे इक्रियर (आइसीआरआइईआर) और इंडियन सेलिंग एसोसिएशन द्वारा तैयार किया गया है। सीधी बिक्री का समाजिक और आर्थिक प्रभाव :एक प्रोत्साहन नीति की जरूरत रिपोर्ट को जारी करते हुए कुमार ने कहा डायरेक्ट सेलिंग इस क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को सशक्त कर रहा है। यह क्षेत्र सरकार के लिए 50 करोड़ रोजगार के अवसरों के सृजन के राष्ट्रीय लक्ष्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में अधिक लोगों की जरूरत होती है। इसलिए यह समावेशी विकास और समृद्धि के ऊपर से नीचे की ओर जाने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में सीधी बिक्री का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2003 से 2010 के दौरान इसमें 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। ऐसे में इस उद्योग की वृद्धि दर को बरकरार रखने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है। इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाया जाना चाहिए और कानून के जरिए इसकी निगरानी की जानी चाहिए। वर्ष 2001-02 में इस क्षेत्र में दस लाख लोग कार्यरत थे जो वर्ष 2009-10 में 30 लाख हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में डायरेक्ट सेलिंग का वर्गीकरण अभी भी अस्पष्ट है। इसकी परिभाषा स्पष्ट करने की जरूरत है ताकि इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह हो सके। रपट के मुताबिक इस क्षेत्र को 43 प्रतिशत आमदनी प्रथम श्रेणी के शहरों से होती है। मगर कंपनियां अब नए ग्राहकों की खोज में छोटे शहरों और गांवों की ओर रुख कर रही हैं। देश में इस समय एमवे इंडिया, ओरीफ्लेम, टप्परवेयर, एवन ब्यूटी प्रॉडक्ट्स, के-लिंक हेल्थकेयर, 4लाइफ ट्रेडिंग इंडिया, मैक्स न्यूयार्क लाइफ इंश्योरेंस, मोदीकेयर जैसी कंपनियां डायरेक्ट सेलिंग कारोबार में सक्रिय हैं। विश्व स्तर पर सीधी बिक्री क्षेत्र का उदय 20वीं सदी की शुरुआत में हुई लेकिन इसने 1980 के दशक में रफ्तार पकड़ी। वहीं भारत में यह क्षेत्र 1980 के दशक में शुरू हुआ और 1990 में विदेशी कंपनियों के भारत में प्रवेश के साथ इस क्षेत्र में गति आई|

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