गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने अमेरिकी राजनयिक के समक्ष देश के सुस्त आर्थिक विकास के लिए उत्तरी राज्यों को जिम्मेदार माना था या नहीं, यह तो शायद ही पता चले। मगर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक व सामाजिक विकास के मामले में उत्तरी क्षेत्र के राज्य अब दक्षिण भारतीय राज्यों से बहुत पीछे नहीं हैं। चाहे राज्यों की सकल घरेलू आर्थिक विकास दर की बात हो या सामाजिक विकास पर खर्च की जाने वाली राशि का मामला। बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल से बहुत पीछे नहीं हैं। वित्तीय प्रबंधन के मामले में भी इन राज्यों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। रिजर्व बैंक और केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की सालाना रिपोर्ट इस बात की तसदीक करती है कि उत्तर भारत के राज्यों को अब बीमारू राज्य नहीं कहा जाना चाहिए। सीएसओ की सबसे ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2008-09 में सबसे तेज 11.44 फीसदी आर्थिक विकास दर बिहार ने हासिल की थी। इससे पिछले वर्ष यह दर 22.7 फीसदी थी। पंजाब में 7.12 फीसदी, राजस्थान में आठ फीसदी, हरियाणा में 8.02 फीसदी की विकास दर रही थी। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश की विकास दर 5.53 फीसदी और कर्नाटक की 5.08 फीसदी रही थी। तेज आर्थिक प्रगति के साथ ही राजकोषीय घाटे को काबू में करने को लेकर भी उत्तर भारत के राज्यों का प्रदर्शन दक्षिण भारतीय राज्यों के मुकाबले बहुत फिसड्डी नहीं रहा है। वर्ष 2009-10 के दौरान अपने राजकोषीय घाटे को तीन फीसदी की सीमा के भीतर रखने में जिन राज्यों ने सफलता प्राप्त की है, उनमें गुजरात और तमिलनाडु जैसे विकसित राज्यों के साथ बिहार, छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं। जिन राज्यों का राजकोषीय घाटा इस दौरान तीन फीसदी से ज्यादा रहा है, उनमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, झारखंड के साथ आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे दक्षिणी राज्य भी हैं। बात सिर्फ विकास दर की नहीं है। बल्कि राज्य अपने संसाधन का इस्तेमाल किस तरह से कर रहे हैं, इस बारे में भी उत्तर भारत के राज्यों के प्रदर्शन में काफी सुधार देखने को मिला है। इस बारे में आरबीआइ की रिपोर्ट का कहना है विकास कार्यो में राशि खर्च करने के मामले में भी उत्तर भारत के राज्यों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। मसलन, बिहार ने वर्ष 2008-09 के दौरान अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 56.7 फीसदी विकास कार्यो में खर्च किया था। इस मानक पर उत्तर प्रदेश (37.2 फीसदी), उड़ीसा (47.8 फीसदी), पश्चिम बंगाल (62.9 फीसदी) और पंजाब (37.4 फीसदी) का प्रदर्शन भी खराब नहीं था। दूसरी तरफ दक्षिण भारत के राज्यों का विकासात्मक खर्च को लेकर प्रदर्शन कुछ यूं रहा है : आंध्र प्रदेश (27.9 फीसदी), कर्नाटक (6.1 फीसदी), तमिलनाडु (30.3 फीसदी) और केरल (25.9 फीसदी)। दूसरे शब्दों में कहें तो उत्तर भारत के राज्यों ने यहां दक्षिण भारत के राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है। अब सामाजिक क्षेत्र में राज्यों के खर्चे का लेखा-जोखा देखते हैं। वर्ष 2005-10 में बिहार ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद के मुकाबले सामाजिक क्षेत्र पर होने वाले खर्चे में 13.6 फीसदी की वृद्धि की है। उत्तर प्रदेश ने नौ फीसदी, राजस्थान ने 9.3 फीसदी तो आंध्र प्रदेश ने 7.9 फीसदी की वृद्धि की। जबकि कर्नाटक ने 7.4 फीसदी की और तमिलनाडु ने 6.7 फीसदी की वृद्धि की है। यही वजह है कि आरबीआइ ने वर्ष 2008-09 के मंदी के दौर में उत्तर भारत के राज्यों के वित्तीय प्रबंधन की सराहना की है।
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