Monday, March 21, 2011

यूनुस का गुनाह


ग्रामीण बैंक हो या कोई और, उसे कायदे-कानून से ही चलना होगा
बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक से उसके संस्थापक मुहम्मद यूनुस की विवादास्पद विदाई पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में तो थी ही, इसने हमारे इस पड़ोसी देश की छवि को भी नुकसान पहुंचाया है। यूनुस ने तीन दशक पहले ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी। वह एक ऐसे मुल्क में नोबल पुरस्कार प्राप्त इकलौती शख्सीयत हैं, जिसे ज्यादातर प्राकृतिक दुर्योगों और गरीबी के कारण रेखांकित किया जाता है। फिर ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब महिलाओं तक बैंक के जरियेऋण के रूप में छोटी-मोटी राशि पहुंचाने की अवधारणा भी अनूठी है। इसकी जड़ दरअसल एक और नोबेलजयी रवींद्रनाथ ठाकुर से जुड़ी है, जिन्होंने अपनी जमींदारी वाले इलाके में गरीबों को कर्ज मुहैया कराने का सफल प्रयोग किया था-यह एक ऐसा तथ्य है, जिसे कम लोग जानते हैं।
ग्रामीण बैंक अब कई देशों में सफलता के साथ चलाए जा रहे हैं, जिसका श्रेय यूनुस और उनके उन सहयोगियों को जाता है, जिन्हें उन्होंने प्रशिक्षित किया। विश्व समुदाय और विशेषज्ञों ने इस उपलब्धि के लिए यूनुस की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। यूनुस के भारतीय प्रशंसकों में राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा भी शामिल हैं, जो बांग्लादेश में उनकी इस उपलब्धि को देख चुके हैं।
इन मूल बातों को स्वीकारते हुए अब विवाद के कुछ अन्य पहलुओं का परीक्षण करते हैं। अपने अच्छे काम के बावजूद ग्रामीण बैंक 24 से 36 प्रतिशत तक ब्याज वसूलते हैं। वैश्विक सहानुभूति और मीडिया के हंगामे के कारण यह सचाई सही ढंग से लोगों की जानकारी में नहीं आ पाती। ग्रामीण बैंक की ऊंची ब्याज दर का तथ्य सामने लाते ही लोग इसे निहित स्वार्थ बताकर खारिज कर देते हैं।
बांग्लादेश के पड़ोसी पश्चिम बंगाल में तुलनात्मक रूप से ब्याज दर काफी कम है। यहां तक कि बनिया और मारवाड़ी साहूकार भी 24 से 30 प्रतिशत ब्याज लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए भारत के सार्वजनिक बैंक मात्र सात प्रतिशत ब्याज वसूलते हैं, हालांकि उनका प्रसार बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक जितना नहीं है। ताजा बजट प्रस्ताव में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सात प्रतिशत ब्याज वाली ऋण योजना का विस्तार करते हुए इसके दायरे में किसानों के साथ मछुआरों को भी शामिल कर लिया है।
दूसरी बात यह कि यूनुस ने बैंक का नियंत्रण अपने और अपने परिवार तक ही सीमित रखा। वह इसके प्रबंध निदेशक थे। ग्रामीण बैंक के बाद उन्होंने दूरसंचार के क्षेत्र में अपने पांव फैलाए-आज ग्रामीण फोन देश का सबसे बड़ा दूरसंचार उपक्रम है। इसके बाद वह बहुराष्ट्रीय ब्रांडों के जूते के व्यापार में कूदने की भी योजना बना रहे थे। हालांकि यह रोजगार सृजन के कारण बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होता, लेकिन यूनुस की इस योजना पर यूरोपीय दानदाता देशों की त्योरियां चढ़ गईं।
नॉर्वे की सरकार के साथ इस मामले में यूनुस का एक विवाद भी हुआ, हालांकि बाद में उसे सुलझा लिया गया था। अलबत्ता पिछले साल नॉर्वे में बनी एक डॉक्यूमेंटरी के बाद यह विवाद फिर भड़क उठा। यूनुस ने इससे इनकार किया कि नॉर्वे से आए किसी फंड से उन्होंने अवैध तरीके से धन निकाले थे। पर मामला उनके पक्ष में गया और नॉर्वे की सरकार भी उनके पक्ष में थी।
लेकिन यहीं से यूनुस के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनका और ग्रामीण बैंक का नाम लिए बिना ही उन्हें खून चूसनेवालाकहा। वित्त मंत्री ने औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों तरह से यूनुस को बैंक छोड़ने के लिए कहा। कहते हैं कि यूनुस ने यह तर्क दिया कि उनके हटने से ग्रामीण बैंक खत्म हो जाएगा। कागजी तौर पर वह जाने के लिए सहमत हो गए और अपने उत्तराधिकारी की तलाश में भी जुट गए थे, लेकिन वस्तुत: वह अपने पद से चिपके रहे और अपने पक्ष में अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने में लग गए। यह सवाल उठ सकता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खासकर अमेरिका के समर्थन के बिना, जहां उन्होंने पढ़ाई की थी, यूनुस इस हद तक जा भी सकते थे।
ढाका हाई कोर्ट द्वारा बर्खास्तगी को चुनौती देनेवाली उनकी याचिका खारिज कर देने के अगले दिन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने उनका समर्थन करने की बात कही। अलबत्ता बांग्लादेश के बारे में पश्चिमी शक्तियों द्वारा इस तरह सार्वजनिक राय जाहिर करना नया नहीं है। पिछले साल वहां हुए आम चुनाव के संचालन का श्रेय भी विदेशी सरकारों को ही जाता है। बहरहाल, बांग्लादेश सरकार के अत्याचारके विरोध में आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिनसन के नेतृत्व में फ्रैंड्स ऑफ ग्रामीण का गठन हुआ, जिसमें भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा भी हैं।
लेकिन मौजूदा विवाद में इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि किसी भी देश में बैंक नियम-कानूनों से ही चलते हैं। अपने पड़ोसी देश के तमाम बैंक बांग्लादेश बैंक के अधीन हैं। इस बात का कोई मतलब नहीं कि ग्रामीण बैंक कितना धन विदेशों से उगाहता है या कितने बढ़िया तरीके से काम करता है। महत्व केवल इस बात का है कि वह बांग्लादेश में स्थापित है, लिहाजा उसे उसी देश के नियम-कानूनों के अनुसार चलना चाहिए। वर्तमान विवाद इस बात को लेकर है कि ग्रामीण बैंक में सरकार की हिस्सेदारी कम है। लेकिन कम हिस्सेदारी के बावजूद सरकार को उसकी निगरानी और उस पर नियंत्रण का अधिकार है। नियुक्ति रद्द होने के बावजूद यूनुस का लगातार ऑफिस जाना किसी की समझ में नहीं आता। किसी भी देश में इसे अदालत की अवमानना ही माना जाएगा। मीडिया प्रचार और भावनात्मक उबाल में तथ्यों और कानून की अनदेखी की जा रही है। उम्मीद करनी चाहिए कि इस विवाद से ग्रामीण बैंक के लाभार्थियों का अहित नहीं होगा।

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