Thursday, March 10, 2011

उपभोक्ता की जेब और राज्यों के अधिकार में सेंध


 बात सिर्फ होटल-रेस्टोरेंट में खाने के महंगा होने की ही नहीं है, सेवा कर लगाने की होड़ में केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश कर गई है। होटल-रेस्तरां पर राज्य सरकारें वैट या लक्जरी टैक्स लगाती हैं। सेवा कर लगने के बाद अब इन्हें लेकर केंद्र व राज्य के बीच खींचतान शुरू हो सकती है। अधिकारों की लड़ाई में रेस्टोरेंट में खाना और पीना दोनों महंगा होने वाला है, क्योंकि अब इन पर दोहरा-तिहरा टैक्स होगा। अधिकांश राज्यों में रेस्टोरेंट पर वैट या लक्जरी टैक्स 8 से 10 फीसदी के बीच है। दस फीसदी सेवा कर के बाद खाने पर कर की दर बीस फीसदी तक हो सकती है यानी कि सौ रुपये की थाली पर बीस रुपये टैक्स। इस कर को लगाने का जो दिलचस्प फार्मूला वित्त विधेयक में दिया गया है, उसके मुताबिक यह कर उन रेस्टोरेंटों पर लगेगा, जो एयरकंडीशंड हैं। यानी कि अगर सस्ता खाना चाहिए तो फिर ढाबे पर धूप सेंकते हुए दाल रोटी खाइए। शहरी रेस्टोरेंट से लेकर कस्बाई भोजनालय तक एयरकंडीशंड होना रेस्तरां उद्योग की बुनियादी जरूरत है। इसलिए इस कर के असर से सभी छोटे-बड़े रेस्तरां में खाना महंगा हो जाएगा। इसके साथ ही बार में बैठकर शाम सुहानी करना भी महंगा होगा, क्योंकि इस कर के दायरे में बार भी आते हैं। इस नए सेवा करको लगाने के तरीके का एक और रोचक पहलू यह भी है कि यदि कोई रेस्टोरेंट साल में किसी भी समय एयरकंडीशनिंग का इस्तेमाल करता है तो उस पर सेवा कर लग जाएगा। वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) को लेकर राज्यों को राजी करने में यह टैक्स बाधा बन सकता है, क्योंकि वित्त मंत्रालय ने उन सेवाओं को भी लपेटना शुरू कर दिया है, जिन पर टैक्स लगाना राज्य सरकारों का अधिकार है। वैसे आर्थिक अधिकारों के विकेंद्रीकरण की आदर्श प्रक्रिया (पंचायती राज) के मुताबिक तो इन छोटे प्रतिष्ठानों पर कर लगाने का अधिकार स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर परिषद वगैरह का है। सेवाओं पर टैक्स लगाने को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच पिछले तीन साल से पेंच फंसा है। इस बीच केंद्र सरकार ने नई-नई सेवाओं को कर दायरे में समेटना शुरू कर दिया है। कोचिंग इंस्टीट्यूट, ब्यूटीशियन, ऑटोमोबाइल वर्कशाप पर कर लगाने को लेकर राज्य सरकारें पहले ही आपत्ति कर चुकी हैं|

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