Wednesday, March 9, 2011

मिस्र जैसे हालात के आसार


खाद्यान्न को लेकर वैश्विक स्तर पर संकट की स्थिति पैदा होने जा रही है। विश्व खाद्य संगठन ने इस मामले में खतरे की घंटी बजा दी है। बताया जा रहा है कि इस वर्ष चीन में गेहूं की दो तिहाई फसल प्रभावित होगी। वहां इस शीत ऋतु में बारिश कम होने की वजह से गेहूं की पैदावार कम होने की संभावना है। उत्तरी चीन के मैदानी भाग में पिछले वर्ष सात करोड़ पचास लाख टन गेहूं की पैदावार हुई जबकि पूरे चीन में कुल गेहूं का उत्पादन 11 करोड़ 12 लाख टन था। अनुमान है कि चीन में फसल की पैदावार कम होगी क्योंकि उत्पादक क्षेत्र पानी की कमी से प्रभावित है। इसका सीधा असर दुनिया के खाद्यान्न भंडारों पर पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर पिछले छह महीनों में खाद्य पदार्थो के दाम बहुत तेजी से बढ़े हैं। हालांकि इसके बावजूद उत्पादन और खपत की स्थिति अब तक संतुलन में रही है लेकिन भविष्य में हल्के से अभाव का दबाव भी समस्या को उग्र रूप दे सकता है। और कीमतों के नियंतण्रमें परेशानी आ सकती है। वैसे भी खाद्यान्नों के भाव वैश्विक स्तर पर अपने चरम पर 2008 में ही पहुंच चुके थे। इस वक्त पश्चिम एशिया इस समस्या से बहुत प्रभावित है। मिस्र की जनक्रांति का एक बहुत बड़ा मुद्दा खाद्य पदार्थो की महंगाई भी रहा है। वहां खाद्यान्नों के दाम 18.5 प्रतिशत बढ़ने के विरोधस्वरूप जनता सड़कों पर उतर आई थी। टय़ूनीशिया और मिस्र की देखादेखी अनेक अरब और अफ्रीकी देशों में भी क्रांति की चिंगारियां सुलग चुकी हैं। ओमान, इस्रइल और जॉर्डन में भी महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। यमन और अल्जीरिया में राजनीतिक विद्रोह का बिगुल बज चुका है। इराक ने अमेरिका से तीन लाख टन गेहूं मंगाने का आर्डर दिया जिसमें एक लाख टन अतिरिक्त की मांग की गई। इसी तरह जॉर्डन, लेबनान, अल्जीरिया और सऊदी अरब ने हाल में गेहूं मंगाने के बड़े आर्डर दिये। लेकिन खाद्यान्न संकट को देखते हुए बहुत से देशों ने निर्यात रोक दिया है। इनमें रूस सबसे पहला देश है। वैश्विक स्तर पर चीनी के दाम तीस वर्षों के रिकार्ड दामों तक चढ़ गये हैं। चीन में आटे के दाम एक वर्ष में 16 फीसद तक बढ़ चुके हैं। वहां की सरकार ने सूखे से निपटने के लिए एक अरब 96 करोड़ डालर के राहत पैकेज की घोषणा की है। यहां तक कि अप्राकृतिक बारिश करने की कोशिश की जा चुकी है। खाद्यान्नों की निरंतर कम होती मात्रा को देखते हुए पश्चिम एशिया के देशों की सरकारों ने खाद्यान्न भंडारण के जतन शुरू कर दिये हैं। इराक का कृषि उत्पादन लगातार घटता जा रहा है। चिंतित विश्व भूख से निपटने के लिए परेशान है। सरकारों ने समय पर कदम नहीं उठाये तो उन्हें जनता बर्दाश्त करने वाली नहीं है। दूसरी ओर हमारे देश का आलम यह है कि सरकार अपने अनाज के गोदामों को निर्यात के लिए खोलने को बेकरार दिख रही है। चाहे प्याज हो या चीनी या अन्य चीजें, वह मुक्त हस्त से रह-रहकर उनके निर्यात की कोशिश करती रही है। जब इसकी चौतरफा निंदा होती है तब कहीं जाकर वह चेतती है। प्याज के मामले में पिछले दिनों यही देखने में आया। देश में खाद्यान्न का बफर स्टाक तो होना ही चाहिए। लेकिन इसमें नियोजन का अभाव बार-बार दिखता है। जब संकट गले-गले तक आ जाता है, तब ही सरकार चेतती है और इस संकट और होश संभलने के बीच बिचौलिए मालामाल हो जाते हैं। बेचारा उत्पादक और उपभोक्ता हाथ ही मलता रहता है। इन कमियों पर सरकार को सचेत होने की जरूरत है। जनता यदि परेशानी ही झेलती रहेगी तो कैसे उस सरकार को बर्दाश्त करेगी, जिसे वह अपना संरक्षक मानती है। बहरहाल, महंगाई और खासकर खाद्य पदार्थो की महंगाई के खिलाफ मध्य-पूर्व के देश मिस्र से प्रेरित होकर आंदोलन की राह चलने की तैयारी में जुट गये हैं। दुनिया के और देश भी इस रास्ते को अख्तियार कर सकते हैं। कारण हर देश की आम जनता रोजमर्रा की परेशानियों से बुरी तरह घिरी हुई है और दुनिया भर के लोग खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं।

     
खाद्यान्न को लेकर वैश्विक स्तर पर संकट की स्थिति पैदा होने जा रही है। विश्व खाद्य संगठन ने इस मामले में खतरे की घंटी बजा दी है। बताया जा रहा है कि इस वर्ष चीन में गेहूं की दो तिहाई फसल प्रभावित होगी। वहां इस शीत ऋतु में बारिश कम होने की वजह से गेहूं की पैदावार कम होने की संभावना है। उत्तरी चीन के मैदानी भाग में पिछले वर्ष सात करोड़ पचास लाख टन गेहूं की पैदावार हुई जबकि पूरे चीन में कुल गेहूं का उत्पादन 11 करोड़ 12 लाख टन था। अनुमान है कि चीन में फसल की पैदावार कम होगी क्योंकि उत्पादक क्षेत्र पानी की कमी से प्रभावित है। इसका सीधा असर दुनिया के खाद्यान्न भंडारों पर पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर पिछले छह महीनों में खाद्य पदार्थो के दाम बहुत तेजी से बढ़े हैं। हालांकि इसके बावजूद उत्पादन और खपत की स्थिति अब तक संतुलन में रही है लेकिन भविष्य में हल्के से अभाव का दबाव भी समस्या को उग्र रूप दे सकता है। और कीमतों के नियंतण्रमें परेशानी आ सकती है। वैसे भी खाद्यान्नों के भाव वैश्विक स्तर पर अपने चरम पर 2008 में ही पहुंच चुके थे। इस वक्त पश्चिम एशिया इस समस्या से बहुत प्रभावित है। मिस्र की जनक्रांति का एक बहुत बड़ा मुद्दा खाद्य पदार्थो की महंगाई भी रहा है। वहां खाद्यान्नों के दाम 18.5 प्रतिशत बढ़ने के विरोधस्वरूप जनता सड़कों पर उतर आई थी। टय़ूनीशिया और मिस्र की देखादेखी अनेक अरब और अफ्रीकी देशों में भी क्रांति की चिंगारियां सुलग चुकी हैं। ओमान, इस्रइल और जॉर्डन में भी महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। यमन और अल्जीरिया में राजनीतिक विद्रोह का बिगुल बज चुका है। इराक ने अमेरिका से तीन लाख टन गेहूं मंगाने का आर्डर दिया जिसमें एक लाख टन अतिरिक्त की मांग की गई। इसी तरह जॉर्डन, लेबनान, अल्जीरिया और सऊदी अरब ने हाल में गेहूं मंगाने के बड़े आर्डर दिये। लेकिन खाद्यान्न संकट को देखते हुए बहुत से देशों ने निर्यात रोक दिया है। इनमें रूस सबसे पहला देश है। वैश्विक स्तर पर चीनी के दाम तीस वर्षों के रिकार्ड दामों तक चढ़ गये हैं। चीन में आटे के दाम एक वर्ष में 16 फीसद तक बढ़ चुके हैं। वहां की सरकार ने सूखे से निपटने के लिए एक अरब 96 करोड़ डालर के राहत पैकेज की घोषणा की है। यहां तक कि अप्राकृतिक बारिश करने की कोशिश की जा चुकी है। खाद्यान्नों की निरंतर कम होती मात्रा को देखते हुए पश्चिम एशिया के देशों की सरकारों ने खाद्यान्न भंडारण के जतन शुरू कर दिये हैं। इराक का कृषि उत्पादन लगातार घटता जा रहा है। चिंतित विश्व भूख से निपटने के लिए परेशान है। सरकारों ने समय पर कदम नहीं उठाये तो उन्हें जनता बर्दाश्त करने वाली नहीं है। दूसरी ओर हमारे देश का आलम यह है कि सरकार अपने अनाज के गोदामों को निर्यात के लिए खोलने को बेकरार दिख रही है। चाहे प्याज हो या चीनी या अन्य चीजें, वह मुक्त हस्त से रह-रहकर उनके निर्यात की कोशिश करती रही है। जब इसकी चौतरफा निंदा होती है तब कहीं जाकर वह चेतती है। प्याज के मामले में पिछले दिनों यही देखने में आया। देश में खाद्यान्न का बफर स्टाक तो होना ही चाहिए। लेकिन इसमें नियोजन का अभाव बार-बार दिखता है। जब संकट गले-गले तक आ जाता है, तब ही सरकार चेतती है और इस संकट और होश संभलने के बीच बिचौलिए मालामाल हो जाते हैं। बेचारा उत्पादक और उपभोक्ता हाथ ही मलता रहता है। इन कमियों पर सरकार को सचेत होने की जरूरत है। जनता यदि परेशानी ही झेलती रहेगी तो कैसे उस सरकार को बर्दाश्त करेगी, जिसे वह अपना संरक्षक मानती है। बहरहाल, महंगाई और खासकर खाद्य पदार्थो की महंगाई के खिलाफ मध्य-पूर्व के देश मिस्र से प्रेरित होकर आंदोलन की राह चलने की तैयारी में जुट गये हैं। दुनिया के और देश भी इस रास्ते को अख्तियार कर सकते हैं। कारण हर देश की आम जनता रोजमर्रा की परेशानियों से बुरी तरह घिरी हुई है और दुनिया भर के लोग खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं।
    

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