Monday, February 7, 2011

काले धन पर नीति


काले धन की संभावित स्वैच्छिक योजना पर लेखक की टिप्पणी

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के अनुसार भारत का 20.79 लाख करोड़ से 63 लाख करोड़ रुपयों के बीच काला धन विदेशों में जमा है। विदेशों में जमा काले धन को भारत में वापस लाने के मुददे पर वित्त मंत्री का बयान एक और माफी योजना की ओर संकेत दे रहा है। एक अनुमान के अनुसार 1997 में देश की आधी जीडीपी के बराबर यानी करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये का काला धन था। वीडीआइएस 1997 में लगभग 4,66,000 भारतीयों ने 33,000 करोड़ रुपये के काले धन की स्वेच्छिक घोषणा की, जिससे सरकार को 10,050 करोड़ रुपये मिले। वर्तमान में देश की जीडीपी लगभग 63 लाख करोड़ रुपये है। काले धन का विस्तार भी जीडीपी के अनुरूप मान लें तो देश में लगभग 24.57 लाख करोड़ रुपये काला धन मौजूदा है। देश में सैकड़ों करोड़ रुपये का घपला विदेशी बैंक का एक अधिकारी करता है, आइएएस अधिकारी के पास से सैकड़ों करोड़ की अघोषित संपत्तियां मिली हैं। भारत में प्रचलित काले धन एवं विदेशों में जमा काले धन के मध्य अंतर करना होगा। देश में मौजूद काले धन के प्रचलन के कारण भारत में मकान खरीदने को लिए गए ऋण में तमाम अनियमितताएं होने के बाद भी अमेरिका की भांति सब प्राइम लोन के कारण मंदी का सामना नहीं किया है। काले धन को सफेद धन में बदलने से भारतीय सरकार को पूरा हिसाब-किताब एवं पूरा कर मिलेगा। भारत में प्रचलित काले धन को बाहर लाने के लिए वीडीआइएस की तर्ज पर कार्ययोजना लाई जा सकती है। विदेशों मे जमा काले धन से भारत को कुछ नहीं मिलता। सफेदपोश घोटालेबाज अर्जित धन को विदेशों में जमा करके भारतीय अर्थव्यवस्था को अजगर की तरह लील रहे हैं। विदेशों में जमा काला धन गैर भारतीय देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाता है। अत: देश की अर्थव्यवस्था को घुन की तरह खोखली कर रहे भारतीय व्यापारियों एवं विदेशों में काले धन को जमा करने वाले लुटेरों को एक स्तर पर नहीं रखा जा सकता। आपराधिक व्यापारिक गतिविधियों से अर्जित धन डीटीएए के अंतर्गत नहीं आ सकता। विदेशों में काला धन जमा करके भारतीय अर्थव्यवस्था को लीलने वाले आर्थिक आतंकवादी से कम नहीं हैं। संदेह है कि विदेशों मे जमा काले धन के कई खातेदार भारतीय राजनीति एवं व्यापारिक समूहों से निकट संबंध रखने वाले और सरकार को प्रभावित करने वाले भी हो सकते हैं। अत: अभी से कई लोग कहने लगे हैं कि लगभग 76 प्रतिशत धन ट्रांसफर प्राइसिंग द्वारा व्यापारिक गतिविधियों से विदेशों में पहुंचा है। विदेशों में जमा धन को घोषित करने वालों से एकमुश्त आयकर आदि के रूप में लेने से सरकार को बजटीय घाटा कम करने में सहायता मिलेगी। आयकर देने के बाद सफेद धन की शक्ल-सूरत ले चुके धन का उपयोग किस तरह होगा, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। भारत सरकार को विदेशी काले धन के खातेदारों के लिए वीडीआइएस योजना लागू करते समय नामों को उजागर करना चाहिए और इसके बाद विदेशों मे जमा धन की गतिविधियों को जांचने के लिए लगभग 6-12 महीने तक सघन जांच करनी चाहिए। सघन जांच तय समयसीमा के अंदर पूरी होनी चाहिए। विदेशों में जमा काला धन आपराधिक गतिविधियों द्वारा अर्जित निकलता है तो उसे जब्त कर लेना चाहिए। विदेशों में काला धन घोषित करने वाले राजनेताओं पर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, दल के अध्यक्ष आदि बनने पर रोक अवश्य लगा देनी चाहिए। व्यापारियों एवं नौकरीपेशा लोगों पर भी रोक लगनी चाहिए कि वे किसी भी प्रकार की संस्था में पूर्णकालिक निदेशक, अध्यक्ष नहीं बन सकेंगे और किसी भी सरकारी महकमें में सचिव स्तर के अधिकारी नहीं बन सकेंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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