Saturday, February 26, 2011

महंगाई और बजट की मुश्किल


अर्थव्यवस्था किन लोगों पर निर्भर करती है? इसका जवाब बजट से पहले जानना चाहिए। समाज का एक तबका है जो देश के चमकदार विकास में शामिल हैं। लगातार बढ़ रही महंगाई के बावजूद वह फूल-फल रहा है। मिडल क्लास इन दिनों लगातार उत्पाद और सेवा के लिए खर्च कर रहा है। इसके उलट एक इलिट क्लास है जिसके लिए अर्थव्यवस्था सबसे बेहतर दौर में पहुंच चुकी है। इन दिनों देश में कई आर्थिक घोटाले देखने को मिले हैं। इसके साथ आधुनिक सर्विस सेक्टर में उच्च वृद्धि दर से विकास देखने को मिल रहा है। यही वजह है कि स्थानीय ही नहीं बल्कि विदेशी प्राइवेट निवेशक भी भविष्य को लेकर काफी उम्मीद लगाए हुए हैं। यह चमकते हुए भारत की तस्वीर है लेकिन जब आप आबादी के छोटे से हिस्से से बाहर निकलते हैं तो आपको वास्तविकता का अंदाजा होता है। पिछले एक दशक के दौरान जीडीपी में विकास में उच्च दर के बावजूद इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है जिससे यह अंदाजा लगाया जाता कि देश के आम लोगों तक विकास पहुंचा है। न तो स्थायी रोजगार में इजाफा हुआ है और न ही आमलोगों की जीवनशैली बेहतर हुई है, न ही भुखमरी कम हुई है और न ही आधारभूत मानवीय जरूरतों के पैमानों पर संतोषजनक सुधार हुआ है। विश्व में सबसे ज्यादा भूखे लोगों की संख्या भारत में हैं। उप सहारा अफ्रीकी देशों की तुलना में भारत में पोषण और शिक्षा का स्तर भी कमतर ही है। आर्थिक विकास के बाद भी देश में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित नहीं किये जा सके हैं। ज्यादातर नौकरियों में स्थायित्व नहीं है। मजदूरी की दर नहीं बढ़ी है। काम का प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद आम लोगों को वह जगह छोड़नी पड़ती है, लिहाजा उनकी जिंदगी में कोई बेहतर बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। इन सबसे देश के युवाओं में गुस्सा और क्षोभ बढ़ रहा है। वे सामाजिक नजरिए से कहीं ज्यादा हिंसक रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। समाज में असमानता की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। बहरहाल, मौजूदा समय में महंगाई, खासकर खाद्यानों की बढ़ती कीमत सबसे बड़ा मुद्दा है। देश की 90 फीसद के करीब आबादी इस समस्या का सामना मुश्किल ढंग से कर रही है। इसके अलावा एक दूसरा मुद्दा रोजगार का भी है। तो मेरे ख्याल से सरकार के सामने मौजूदा बजट में यही दो बड़ी चुनौती होगी। सरकार इन मुद्दों को किस तरह से नियंत्रित करने में दिलचस्पी ले रही है, यह इस बजट की रूप रेखा से तय होगा। हालांकि अब तक सरकार के रवैए से यह जाहिर नहीं हो रहा है कि वह इस मामले में गंभीरता से कुछ करने जा रही है। महंगाई पर अंकुश पाने के लिहाज से देखें तो यह साफ होता है कि हमारे मुख्य आर्थिक नीति निर्माताओं के पास कोई उपाय नहीं हैं। हाल में जिस तरह से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं, उनका स्वागत ऐसे किया गया जैसे देश में आर्थिक संपन्नता बढ़ी है और सरकार की गरीबों के लिए बनाई गई योजनाएं कामयाब हो रही हैं। मौजूदा समय में महंगाई का सबसे ज्यादा असर अनाजों पर दिख रहा है। सरकार को चाहिए कि वह खाद्यान्नों की आपूर्ति और वितरण की सही व्यवस्था करे। अनाज की कीमतें स्थिर हों, इनके लिए सरकार को जन वितरण पण्राली को दुरु स्त करने पर जोर देना होगा। सरकार की कोशिश इस पण्राली को बाजार की बेहतर पण्राली के तौर पर बदलने की होगी, तभी जाकर इसका लाभ आम लोगों को मिल पाएगा। बजट के दौरान सरकार को कृषि जगत पर ध्यान देना होगा। अनाज का उत्पादन बढ़ा कर ही हम अपने यहां की बढ़ती मांगों को पूरी कर सकते हैं। यह बजट सरकार के लिए प्रभावी ढंग से संदेश देने का एक मौका होगा कि वह अनाज की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा सरकार को उन योजनाओं में अपना अनुदान बढ़ाने की जरूरत है जिनसे आम लोगों के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। मसलन रोजगार गारंटी योजना हो या फिर स्वास्थ्य, शिक्षा और साफ-सफाई से जुड़ी योजनाएं। इनमें से किसी के अनुदान में अगर सरकार बढ़ोतरी नहीं कर पाती है, तो उसे कोई कटौती भी नहीं करनी चाहिए। अगर सरकार महंगाई पर अंकुश पाने की सचमुच कोशिश करेगी तो उसे पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों का भी ख्याल रखना होगा। सरकार ने इसकी कीमतों को तब बाजार की कीमतों पर छोड़ा जब बाजार काफी अस्थिर दौर से गुजर रहा था। लिहाजा, यह बेतुका कदम था। सरकार को इसे वापस लेना चाहिए। नहीं तो कम से कम सरकार को अपनी एक्साइज ड्यूटी को नियंत्रित करना होगा तभी पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें स्थिर हो पाएंगी। मेरे ख्याल से सरकार को इस बजट में महंगाई पर अंकुश पाने के उपायों पर हरसंभव जोर देना चाहिए।


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