Monday, February 14, 2011

क्षमता घटने से कम हो रही माल ढुलाई


क्या आपको मालूम है कि माल परिवहन में सड़क के मुकाबले रेलवे की हिस्सेदारी क्यों घटती जा रही है। दरअसल रेलवे लगातार वैगनों की कमी से जूझ रही है। पिछले नौ सालों में रेलवे में वैगनों की संख्या बढ़ने के बजाय घटी है। इस दौरान 11 हजार से ज्यादा वैगन कम हुए हैं। इसके बावजूद हर साल माल ढुलाई का लक्ष्य बढ़ा दिया जाता है। वर्ष 2000-01 में रेलवे के पास कुल 2,22,193 वैगन थे। वर्ष 2008-09 में इनकी संख्या घटकर 2,11,763 रह गई। दूसरी ओर ढुलाई का लक्ष्य 47.5 करोड़ टन से 83.3 करोड़ टन कर दिया गया। जाहिर है कि ढुलाई में वृद्धि प्रति वैगन लदान क्षमता (एक्सल लोड) बढ़ाकर की जा रही है। इससे संरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। इसके बावजूद माल वहन में भारतीय रेल की हिस्सेदारी सड़क के मुकाबले बहुत कम है। 1951 में रेलवे की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत और सड़क की 35 प्रतिशत थी। जबकि आज सड़क की हिस्सेदारी 70 फीसदी है, जबकि रेलवे की महज 30 फीसदी। इसकी वजह वैगनों की कमी तो है ही, सीमित लाइन क्षमता ने भी रेलवे के हाथ बांध रखे हैं। रेलवे से सामान ढोने में ग्राहकों की भी रुचि कम है क्योंकि उन्हें माल समय से पहंुचने का भरोसा नहीं है। जबकि विकसित देशों में मालगाडि़यां भी यात्री गाडि़यों की तरह समय सारणी के हिसाब से चलती हैं। भारत में मालगाडि़यों की रफ्तार कम है। यात्री गाडि़यों को प्राथमिकता दी जाती है। कंटेनर ढुलाई का प्रतिशत भी बहुत नहीं बढ़ा है। रेलवे स्टेशनों के नजदीक माल एकत्र करने और चढ़ाने-उतारने की सुविधाओं वाले लॉजिस्टिक पार्को का अभाव है। भारतीय रेल अभी भी कोयला, सीमेंट, स्टील और उर्वरक जैसी चंद परंपरागत वस्तुओं की ढुलाई पर निर्भर है। ऊपरी लागत ज्यादा होने से मालभाड़ा विदेशों के मुकाबले काफी ऊंची रहती हैं। लाइन क्षमता बढ़ाने के लिए लालू प्रसाद के समय में मालगाडि़यों के लिए अलग से फ्रेट कॉरीडोर बनाने का एलान हुआ। लेकिन इस पर काम बहुत देर से शुरू हुआ है। इसके पहले चरण में दिल्ली-मुंबई और लुधियाना-कोलकाता के बीच नई दोहरी लाइन बिछाई जाएगी। इसे पूरा होने में अभी कम से कम चार-पांच साल लगेंगे। इससे पहले वैगनों का उत्पादन बढ़ाने के उपाय करने होंगे। इसके लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की सख्त जरूरत है।


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