Thursday, February 3, 2011

वैश्विक खुशहाली एशिया से


वर्ष 2011 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक वित्तीय खुशहाली संबंधी जो सव्रेक्षण प्रकाशित हुए हैं, उनमें कहा गया है कि एशियाई और लैटिन अमेरिकी देश विश्व की आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देते हुए विश्व को खुशहाली की तरफ आगे बढ़ाएंगे। यद्यपि दुनिया में आर्थिक मंदी का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है और कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के संकेत हैं लेकिन ग्रीस तथा यूरोपीय यूनियन क्षेत्र की अन्य अर्थव्यवस्थाओं में उभरे आर्थिक संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में लौट रही खुशहाली की डगर में आशंकाएं पैदा कर दी हैं। यह संकट यूरोप तक ही सीमित नहीं है। इससे एक बार फिर अमेरिका का आवासीय बाजार बुरी तरह लुढ़क गया है। पिछले छह महीनों में अमेरिका में नए मकानों की बिक्री में एक तिहाई गिरावट दर्ज हुई है। पिछले ढाई वर्षो से कई प्रोत्साहन पैकेज तथा रोजगार बढ़ाने के उपायों के बावजूद वहां बेरोजगारी बढ़ रही है। इससे भी खतरनाक यह है कि दुनिया के कई देशों के ऐसे वित्तीय क्षेत्र, जो वैश्विक वित्तीय संकट के समय भी तेज विकास दिखा रहे थे, अब चिंताजनक संकेत दिखा रहे हैं। कुछ देशों में बेरोजगारी और विकास दर चिंतनीय स्तर पर पहुंच गई है। यहां मंदी का प्रभाव अन्य सामाजिक क्षेत्रों में भी फैल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के कई बाजारों में भविष्य में बाहरी पूंजी के प्रवाह के कारण बहुत उतार- चढ़ाव देखा जा सकता है। स्पष्ट है कि वैश्विक वित्तीय संकट की धुंध बनी हुई है, साथ ही विश्व अर्थव्यवस्था के वर्तमान संकेत नए वित्तीय संकट से जुड़े हैं। लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बीच एशियाई देशों से संतोषजनक संकेत भी मिल रहे हैं। पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रकाशित हुआ है जिसमें कहा गया है कि जहां दुनिया के अधिकांश देश आर्थिक संकट से बाहर आने के लिए छटपटा रहे हैं, वहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशिया का महत्व बढ़ गया है। एशिया और लैटिन अमेरिकी देशों में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार तेज होने से इसकी संभावना नहीं है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था फिर से मंदी की गिरफ्त में आ जाए। आईएमएफ उन देशों में अच्छी विकास संभावनाएं देख रहा है जो 1997 के एशियाई संकट के दौरान निराशाजनक दिख रहे थे। खासतौर से चीन, भारत, इंडोनेशिया, सिंगापुर, ताइवान, दक्षिण कोरिया, मलयेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में सुधार सबसे बढ़िया है। कहा गया है कि इन एशियाई देशों ने पिछले दशक का समय वैश्विक वित्तीय तंत्र के अप्रत्याशित व्यवहार से बचने के लिए विदेशी मुद्रा जुटाने में बिताया है जिससे इन्हें वित्तीय मजबूती मिली है। यद्यपि वैश्विक अर्थव्यवस्था की अगुवाई करके एशिया विश्व को नई मंदी से बचाने का यथोचित प्रयास कर रहा है लेकिन इसके लिए ठोस उपाय जरूरी हैं। पिछला वैश्विक संकट बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं तक सीमित था। तब सरकारों के कदम पूरी तरह तरलता बरकरार रखने पर केंद्रित थे ताकि बैंकिंग पण्राली में मुद्रा की कमी न होने पाए लेकिन मौजूदा संकट में ऋण संबंधी समस्याओं के अलावा रोजगार की खराब स्थिति मुंह बाए खड़ी है। ऐसे में 2007-08 के वित्तीय संकट का यह सबक याद रखना होगा कि केंद्रीय बैंकों को वित्तीय स्थिरता और मुद्रास्फीति के प्रबंधन में तालमेल बनाकर चला जाए। नि:संदेह अनिश्चित वैश्विक हालात तथा घरेलू निजी पूंजी निवेश की ढीली रफ्तार देखते हुए राजकोषीय व मौद्रिक नीतियों में एक साथ कड़ाई करना खतरनाक कदम है। ध्यान रखना होगा कि पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान मंदी पीड़ित देशों ने राहत पैकेजों और मजबूत माइक्रो इकोनॉमिक प्रबंधन के जरिए वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में जिस तरह अहम भूमिका निभाई, वैसी कुछ समय तक और जरूरी है। नई संभावित मंदी से बचने के लिए वित्तीय क्षेत्र के सुधार पर ध्यान देकर ऐसी मजबूत व्यवस्था तैयार की जाए, जो विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं की आवश्यकताओं को भी ठीक से समझ सके। इस हेतु नियंत्रक संस्था, प्रभावी प्रबंधन और सभी तरह की वित्तीय समस्याओं से निपटने के लिए प्रभावी संस्थान की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को अधिक पारदर्शी, अधिक प्रभावी और अधिक खरा बनाया जाना जरूरी है। भ्रष्टाचार क्योंकि स्वस्थ बाजार के लिए बड़ा खतरा है और भ्रष्टाचार के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है अतएव भ्रष्टाचार नियंतण्रके वैश्विक प्रयास जरूरी हैं। इन सबके साथ-साथ वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को विकासशील देशों के अधिक अनुकूल बनाया जाना भी जरूरी है। इन विभिन्न सुझाओं के साथ-साथ पिछली जी-20 ग्रुप की टोरंटो बैठक में मंदी की समस्या से निपटने के लिए जिन अतिरिक्त प्रयासों पर सहमति बनी है उन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जी-20 ग्रुप की टोरंटो बैठक में आर्थिक मंदी के कारण पैदा हुई समस्याओं को 2013 तक खत्म करने और मंदी के कारण गड़बड़ाई वृद्धि दर को 2016 तक ठीक करने के लिए जो रणनीति बनी उसे दुनिया के सभी देशों में लागू किया जाना चाहिए।



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