Wednesday, February 9, 2011

जरूरी है इन बिंदुओं पर विचार


प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून (एफएसए) को लेकर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) में मतभेद हैं:
पीएम की आर्थिक सलाहकार समिति (ईएसी) की सी. रंगराजन की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनएसी के उस प्रस्ताव पर असहमति जतायी है, जिसके तहत 75 फीसद आबादी को अनाज पर कानूनी रूप से सब्सिडी दिये जाने की बात है। इसके चलते प्रस्तावित एफएसए के तहत देश की करीब 75 फीसद गरीब आबादी को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराये जाने की उम्मीदें धूमिल हुई।
रंगराजन कमेटी ने कहा क्या- देश के वास्तविक रूप से जरूरतमंद परिवारों को ही 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल मुहैया करना चाहिए।
एनएसी का सुझाव : 1(अ) सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिए बनाएं दो श्रेणियां- (क) प्राथमिकता वाली और (ख) सामान्य श्रेणी1(ब) इसके तहत ग्रामीण इलाकों की 90 फीसद व शहरी इलाकों में 50 फीसद आबादी को सब्सिडी वाला खाद्यान्न मुहैया कराया जाए। सरकार प्राथमिकता वाली (पहली) श्रेणी के परिवारों को प्रतिमाह 35 किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराए। इसमें मोटा अनाज Rs1/- प्रति किलोग्राम के भाव पर, गेहूं Rs2/- प्रति किलो और चावल Rs3/-प्रति किलो में मुहैया कराया जाए। सामान्य श्रेणी के चिह्नित परिवारों को हर माह 20 किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सिफारिश और उनके लिए कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से आधी रखने की ख्वाहिश। यानी मूल्य गेहूं Rs 5.50 और चावल Rs7.70 प्रति किलो में दिये जाने का विचार।और फिर से बाजार में अनाज की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो जाएगी। (सवाल यह है कि क्या किसी अनाज या खाद्यान्न की बढ़ी कीमत में कोई उल्लेखनीय कमी आया है?)
मौजूदा स्थिति : सरकार पीडीएस के जरिये देश के 18.04 करोड़ परिवारों को सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराती है। इनमें गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवार 6.52 करोड़ और गरीबी रेखा के ऊपर (एपीएल) 11.5 करोड़ हैं। इन परिवारों को गेहूं Rs4.15 प्रति किलो और चावल Rs5.65 प्रति किलो की दर से दिया जाता है। 2009-2010 में पीडीएस के तहत 4.24 करोड़ टन खाद्यान्न का वितरण हुआ था।
रंगराजन का मत : एनएसी के सभी सुझाव मान लिये जाएं तो सरकार का सब्सिडी बिल Rs92 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगा। सरकारी घाटे को कम करने की कोशिश में जुटी सरकार के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह सब्सिडी का बोझ इतना बढ़ाये।
ढोल में पोल : एफएसबी को अंतिम रूप देने के लिए सरकार की तरफ से अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी।
जवाब है गोल : महंगाई और खाद्यान्न की कमी से जिंदगी जी रहे लोगों को कैसे दी जा सकेगी खाद्य सुरक्षा ?
मानें या न मानें, यह भी तो जानें : मानवाधिकारों की वैश्विक घोषणा (1948) के अनुच्छेद 25 (1) के मुताबिक प्रत्येक व्यक्ति को अपने तथा परिवार के लिए बेहतर जीवन स्तर बनाने व स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने का हक है जिसमें भोजन, कपड़ा व आवास की सुरक्षा शामिल है। इसी तरह खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी 1965 में अपने संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की थी कि मानवीय समाज की भूख से मुक्ति सुनिश्चित करना इसके बुनियादी उद्देश्यों में से एक है।
इनका क्या हुआ? यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में खाद्य सुरक्षा को कानूनी रूप देने के लिए पहले 100 दिन के एजेंडे में रखा था। सरकार बनने के 100 दिनों के भीतर एफएसी को न तो कानूनी रूप दिया गया व न ही गरीबों को भोजन की गारंटी का अधिकार।
अब भी है पेच : इस साल जून में होगी बीपीएल परिवारों की गणना। जनगणना होने तक सरकार एफएबी को डाल सकती है ठंडे बस्ते में। इसके चलते गरीबों को सस्ते अनाज का कानूनी हक पाने के लिए कुछ और समय तक करना होगा इंतजार।
आशंका की वजह : सरकार के पास हैं गरीबों के बारे में कई भ्रामक आंकड़े। किसी पर नहीं है सर्वानुमति। वाधवा समिति के अनुसार बीपीएल परिवारों की संख्या- 20 करोड़। विश्व बैंक के अनुसार- सिर्फ 7.5 करोड़। अजरुन सेनगुप्ता समिति के अनुसार- 20 करोड़। योजना आयोग के अनुसार 7 करोड़ से ज्यादा।
बहस का विषय : गरीबी की परिभाषा क्या है?देश में कौन-कौन गरीब हैं?गरीबों की वास्तविक संख्या कुल कितनी है?
हकीकत : देश में हर साल अकाल मरते हैं लगभग 25 लाख शिशु। 42 प्रतिशत बच्चे हैं गम्भीर कुपोषण के शिकार। केंद्रीय बाल एवं महिला कल्याण मंत्रालयों और विभागों के बावजूद गर्भवती महिलाओं को न्यूनतम भोजन देने की नहीं है कोई समन्वित योजना। अनाज गोदामों के अभाव और भंडारागारों के कुप्रबंधन के चलते अनाज सड़ने के बावजूद सरकार उसे भूखे-नंगों को मुफ्त बांटने को नहीं है तैयार। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न और आजीविका के लिए रोजगार के अभावों के चलते बड़ी संख्या में शहरों-कस्बों की ओर हो रहा है पलायन। सरकार नहीं समझना चाहती कि किसानों के लिए खेतिहर मजदूरों या गांव से कस्बों-महानगरों तक पहुंचे श्रमिकों के बल पर ही बढ़ सकता है उत्पादन। लम्बी प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार के मद्देनजर किसानों को सीधे, और अधिक सब्सिडी देने की योजना क्यों नहीं क्रियान्वित करती सरकार?
बाहर भी तो देखें : अमेरिका और यूरोप में अनाज सस्ता होने के बावजूद सरकारी प्रश्रय के कारण किसानों को नहीं होती कोई शिकायत। वहां किसानों को ऋण और बीमा की हैं बेहतर, व्यापक और बिल्कुल न उलझाने वाली योजनाएं।
यह सोचें : ऐसा नहीं है कि देश में गरीबों को पेटभर खाना देने के लिए हमारे पास खाद्यान्न की कमी है। यह ठीक है कि जितने गरीब हैं उन्हें देखते हुए अनाज उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा और इसकी बर्बादी रोकने के लिए उचित भंडारण की व्यवस्था करनी पड़ेगी।
बर्बाद होता है अनाज : एक अनुमान के अनुसार अपने यहां फसल की कटाई से लेकर उसको गोदाम में पहुंचाने तक जितना अनाज बर्बाद हो जाता है, वह आस्ट्रेलिया में खाद्यान्न की उपज के बराबर है।
न्याय का दृष्टिकोण : सुप्रीम कोर्ट सरकार से बार-बार कह रहा है कि अनाज को सड़ने के लिए छोड़ने से बेहतर है कि गरीब का पेट भरा जाए। चूहों के हवाले करने से बेहतर है कि इसका वितरण गरीबों के बीच किया जाए। सिर्फ नीति बनाने से नहीं चलेगा काम। उन्हें जमीनी स्तर पर लागू करने की भी है जरूरत। किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को ही करनी होगी खाद्यान्न की खरीद। अनाज का सुरक्षित भंडारण भी उतना ही है आवश्यक। उचित भंडारण की जगह नहीं है तो इसे सीधे पीडीएस के जरिये गरीबों तक भेजा जा सकता है।
निष्कर्ष : एनएसी मानती है कि आर्थिक विकास के लाभों से देश का व्यापक वर्ग वंचित है। मगर नौकरशाह इसे झुठलाते हैं। कारण, र्दुव्‍यवस्था में होती है व्यापक भ्रष्टाचार की सम्भावना। उत्तर प्रदेश में (न्यायिक विचाराधीन) लाखों करोड़ रुपये का अनाज घोटाला है इसका जीता-जागता सबूत। गरीबों को खाने का अनाज मिले, यह दायित्व सरकार का नहीं है तो किसका है? इस पर सोचने की जरूरत है। एनएसी की सिफारिशों को लागू कराने के लिए यूपीए अध्यक्ष को ही सरकार पर डालना होगा जोर। प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि देश के गरीबों के बारे में ज्यादा संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए। यह भी ध्यान देना होगा कि महज खाद्यान्न की उपलब्धता से लोगों को संतुलित भोजन नहीं मिल पाएगा। ़अन्न को जरूरतमंद लोगों तक समय रहते पहुंचा सके। इसके लिए सरकार अपने तंत्र और व्यवस्था को तर्कसंगत तथा प्रभावी बनाए। यह तभी हो पाएगा जब सरकार इसे अपनी प्राथमिकताओं में करेगी शामिल। (आंकड़ा स्रेत: सीईएफएस व कृषि मंत्रालय)
कृषि एवं खाद्य मंत्री शरद प्रवार का मत : एनएसी की सिफारिशों को लागू करने के लिए हर साल 6.2 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी ईएसी अध्यक्ष सी.रंगराजन का मत : एनएसी के सभी सुझाव मान लिये जाएं तो सरकार का सब्सिडी बिल 92 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा

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