देश की भारत की अर्थव्यवस्था को दस का दम दिखाने में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है। संभावनाएं अनंत हैं, मगर माहौल अभी पूरी तरह माफिक नहीं है। महंगाई सताती रहेगी, क्योंकि दुनिया के बाजार में कच्चे तेल सहित जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं और ब्याज दरें कम नहीं होंगी। अलबत्ता, मंदी से निबटने के लिए मिली रियायतें बजट में वापस हो जाएंगी यानी उत्पाद शुल्क की दर कुछ बढ़ सकती है। शुक्रवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा पिछली समीक्षाओं से ज्यादा बेलाग लपेट और व्यावहारिक है। यह बड़ी साफगोई के साथ दस फीसदी विकास दर की उम्मीदों को जमीन पर लाती है और महंगाई कम होने के कोई बड़े वादे नहीं करती। आर्थिक समीक्षा ने खुलकर यह माना है कि भारत में महंगाई भले ही कुछ समृद्ध लोगों पर असर न कर रही हो, लेकिन निर्धनों के लिए यह विपत्ति है। पिछले साल की तरह सुधारों के परिदृश्य पर समीक्षा में एक पूरा अध्याय है, जो नए सुधारों की जरूरतों और सैद्धांतिक विषयों की पड़ताल करता है। समीक्षा कृषि, बुनियादी ढांचे से जुड़े कानूनों, सरकारी स्कीमों, विदेशी मुद्रा प्रवाह, सरकारी निजी भागीदारी के क्षेत्र में नए सुधारों का प्रस्ताव करती है। यही, आने वाले दिनों में सरकार के सुधार एजेंडे का हिस्सा होंगे। आर्थिक समीक्षा खुलकर कहती है कि पर्यावरण नियमों को विकास में बाधा नहीं बनना चाहिए। समीक्षा ने पर्यटन, उच्च शिक्षा को विकास की नई संभावनाओं के तौर पर रेखांकित किया है और सब्सिडी प्रणाली में सुधार के लिए गरीबों को सीधे सब्सिडी देने की वकालत की है। सरकार इसके लिए नंदन नीलेकणि (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अध्यक्ष) की अगुआई में एक समिति बना चुकी है। समीक्षा में बजट के कुछ संकेत मिलते हैं। यह स्पष्ट है कि मंदी के दौरान उद्योगों को मिला प्रोत्साहन बजट में वापस हो जाएगा यानी कि उत्पाद शुल्क की दर में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन जीएसटी का टलना तय है। केंद्र सरकार इस बजट में लोगों को सीधे सब्सिडी देने की दिशा में कुछ अहम घोषणाएं कर सकती है। इसी क्रम में माइक्रोफाइनेंस नियामक, बुनियादी ढांचे में निवेश को सहज बनाने के रास्ते, केंद्रीय स्कीमों का एकीकरण, राजकोषीय संतुलन की रणनीति, कौशल विकास और उच्च शिक्षा में शोध व विकास को प्रोत्साहन जैसे कुछ कदम बजट में नजर आएंगे। अर्थव्यव्यवस्था का विस्तृत आकलन करते हुए समीक्षा में कहा गया है कि भारत आर्थिक शक्ति के लिहाज से दुनिया में पांचवें स्थान पर आ गया है। इसे और ऊपर ले जाने के लिए कृषि क्षेत्र को दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है, जो नई तकनीक के इस्तेमाल के साथ आएगी। औद्योगिक उत्पादन उतार-चढ़ाव से गुजरेगा, क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं स्थिर हैं। बुनियादी ढांचे में सुधार भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता की बुनियाद होगा और सेवा क्षेत्र आने वाले दिनो में विकास का इंजन बनेगा। सरकार को चालू खाते के घाटे पर ध्यान देना होगा। अलबत्ता, शेयर बाजार में विदेशी पूंजी को लेकर कोई चिंता की बात नहीं है। राजकोषीय पुनर्गठन पटरी पर है, लेकिन सामाजिक विकास कार्यक्रमों में क्रियान्वयन पर गंभीरता से ध्यान देना होगा|
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