Thursday, February 10, 2011

तस्वीर बदल सकती है विदेशी मुद्रा


वह समय बीत गया है, जब भारत को प्रवासियों और निवेशकों से विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए पसीना बहाना पड़ता था। अब तो विदेशी मुद्रा भारत की ओर दौड़ लगाती दिख रही है। भारतीय बाजार को अब निवेशकों और प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। तेजी से बढ़ती विकास दर और अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों की वजह से विदेशी निवेशक और प्रवासी भारतीय खुद भारतीय बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं
सचमुच इस समय विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का निवेश और दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के धन का प्रवाह भारत की ओर तेजी से बढ़ रहा है। विदेशी पूंजी के ऐसे तेज प्रवाह से इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व) लबालब भरा है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। रिजर्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2011 के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 300 अरब डॉलर की नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। वास्तव में उन लोगों के लिए वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अति उत्साहवर्धक है जिन्हें वर्ष 1991 की भयानक स्थिति याद है, जब हमारा विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ दो सप्ताह के आयात के लायक रह गया था और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए हमें अपना सोना ब्रिटेन के पास गिरवी रखना पड़ा था। निसंदेह अब वह समय बीत गया है, जब भारत को प्रवासियों और निवेशकों से विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए पसीना बहाना पड़ता था। अब तो विदेशी मुद्रा भारत की ओर दौड़ लगाती दिखाई दे रही है। भारतीय बाजार को अब निवेशकों और प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। भारत की तेजी से बढ़ती विकास दर और अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों की वजह से विदेशी निवेशक और प्रवासी भारतीय खुद भारतीय बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय प्रवासी भारतीय अपने देश को भेजे गए धन (रेमिटेंस) के मामले में अन्य प्रवासियों के मुकाबले सबसे आगे हैं। र्वल्ड बैंक द्वारा हाल में प्रकाशित माइग्रेशन एंड रेमिटेंसेस फेस बुक- 2011 के अनुसार यद्यपि दुनिया में प्रवासियों की दृष्टि से मैक्सिको के बाद भारत का दूसरा स्थान है लेकिन प्रवासियों द्वारा धन भेजने की दृष्टि से दुनिया में भारत पहले क्रम पर है। जहां वर्ष 2009 में प्रवासी भारतीयों ने 49.6 बिलियन डॉलर भारत भेजे थे, वहीं 2010 में इनके द्वारा 55 बिलियन डॉलर भारत भेजे गए। अपने देश को धन भेजने के मामले में दूसरा स्थान प्रवासी चीनियों का रहा। उन्होंने अपने देश को 51 बिलियन डॉलर भेजे। मैक्सिको का स्थान तीसरा रहा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अब दुनिया में भारतीय प्रवासियों की संख्या 1.14 करोड़ पार कर गई है। यद्यपि प्रवासियों के तौर पर मैक्सिको के लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। मैक्सिको के लोगों की संख्या 1.19 करोड़ पहुंच गई है। रूसी प्रवासियों की संख्या 1.10 करोड़ और चीनी प्रवासियों की 83 लाख हो गई है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ग्लोबल बाजार में भारतीय प्रवासियों के श्रम का अच्छी तरह से इस्तेमाल हो रहा है। इससे संबंधित देशों और भारत दोनों को फायदा हो रहा है। इन दिनों दुनिया के विकसित देशों के आर्थिक विकास की जो रिपोर्टे प्रकाशित हो रही हैं, उनमें बताया जा रहा है कि प्रवासी भारतीय विकसित देशों के सबसे महत्वपूर्ण विकास सहभागी बन गए हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा जारी वैश्विक प्रवासी रिपोर्ट में भारतीयों को दुनिया का सबसे योग्य प्रवासी बताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित देशों में जाने वाले विभिन्न देशों के प्रवासियों में सेवा भावना, परिश्रम और ईमानदारी के परिप्रेक्ष्य में सबसे ज्यादा योग्य भारतीय समुदाय ही है। निश्चित रूप से जहां विदेशी निवेशक तेजी से भारत में अपना धन निवेशित कर रहे हैं, वहीं प्रवासी भारतीय अन्य प्रवासियों की तुलना में देश में सबसे तेज गति से धन भेज रहे हैं। लेकिन इस धन के उपयोग की कोई चमकीली तस्वीर नहीं बन रही है। अधिकांश प्रवासियों द्वारा भेजा गया धन उपभोग कार्य और आरामदायक-विलासतामूलक वस्तुओं में ही व्यय हो रहा है। वस्तुत: भारत को विकसित देश बनाने में प्रवासियों की भूमिका महत्वपूर्ण होनी चाहिए। जिस तरह करीब ढाई दशक पहले जब प्रवासी चीनियों ने सारी दुनिया से कमाई हुई अपनी दौलत चीन में लगाकर अपने देश तकदीर बदल डाली उसी प्रकार भारत की तकदीर बदलने में प्रवासी भारतीयों द्वारा और अधिक कारगर सहयोग किया जाना चाहिए। देश के आर्थिक विकास के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रवासियों में गहरी रुचि जरूरी है। भारत में सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और रेलमागरे जैसी प्रमुख बुनियादी सुविधाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने के लिए अगले पांच वर्षो में 320 अरब डॉलर की आवश्यकता है। भारत में नए एक्सप्रेस-वे अर्थात द्रुत गति के हाइवे तथा देश में चल रहे विश्व के सबसे बड़े सड़क निर्माण प्रोजेक्ट के लिए भी प्रवासियों से बड़ी मात्रा में विदेशी धन की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि भारत में बुनियादी ढांचे के विकास की दर केवल 4.6 प्रतिशत है जबकि चीन में यह दर 11 प्रतिशत और मलयेशिया में 15 प्रतिशत है। दुनिया के कई देश अपने विदेशी मुद्रा कोष में संचित धन का अच्छा उपयोग कर रहे हैं। अन्य देशों की तरह यदि भारत में भी विदेशी मुद्रा भंडार में संचित प्रवासियों के धन का कुछ कुछ हिस्सा ढांचागत परियोजनाओं, औद्योगिक विकास तथा सेवा क्षेत्र के विकास के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो सरकार को अच्छी आय होगी और परियोजनाओं के लिए उचित दर पर संसाधन उपलब्ध हो जाएंगे। घरेलू ऋण दाताओं को भी इससे राहत मिलेगी और उनके संसाधन बढ़ेंगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस बात का डर हमेशा बना रहता है कि अगर विदेशी मुद्रा भंडार के उपयोग की चिंताओं के मद्देनजर जमाकर्ताओं ने अपनी पूंजी देश से बाहर ले जाना शुरू कर दिया तो अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में भारत की बढ़ती आर्थिक साख के कारण प्रवासियों द्वारा विदेशी मुद्रा की वापसी की संभावनाएं नगण्य हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत से विदेशी मुद्रा वापस ले जाने का दौर सिर्फ 1998-99 में दिखाई दिया था, जब पोखरण के आणविक परीक्षणों के कारण प्राय: सभी विकसित देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे और उन्हें लगा था कि देश की अर्थव्यवस्था अनिश्चितता का सामना करने वाली है। लेकिन अब भारत तेज गति से विकास कर रहा है तथा मजबूत अर्थव्यवस्था वाला ऐसा देश माना जा रहा है, जो किसी भी वैश्विक मंदी का डटकर सामना करने की ताकत रखता है। हम आशा करें कि सरकार विदेशी मुद्रा कोष में संचित धन के सार्थक उपयोग हेतु शीघ्र रोड मैप बनाएगी। ऐसे रोडमैप के तहत विदेशी मुद्राकोष में संचित धन के सुनियोजित निवेश से देश में बुनियादी ढांचे, औद्योगिक विकास, सेवा क्षेत्र और ग्रामीण विकास की नई दिशा देने के प्रयास रेखांकित किए जाएंगे।


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