बाजार नियामक सेबी और रिजर्व बैंक ने मॉरीशस से आने वाले निवेश पर निगरानी बढ़ा दी है। आशंका है कि भारतीयों के काले धन को मॉरीशस के रास्ते दोबारा देश में लाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक दूरसंचार और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में उद्यम पूंजी की मात्रा तेजी से बढ़ने के मद्देनजर नियामकों ने यह फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार नियामक वैसे तो सभी तरह के निवेश को लेकर चिंतित हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चिंता उन पांच विदेशी उद्यम पूंजी निवेशकों को लेकर है, जो मॉरीशस के रास्ते भारत में पैसा लगा रहे हैं और उनमें अधिकतर के पते एक ही हैं। सेबी के पास कुल 154 विदेशी उद्यम पूंजी निवेशक पंजीकृत हैं और उन्हें भारतीय कंपनियों में निवेश की मंजूरी है। इन कंपनियों में 149 मॉरीशस की हैं। शेष पांच में तीन सिंगापुर की और दो साइप्रस की हैं। इन कंपनियों से भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश पिछले एक साल में दोगुना होकर तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जबकि इसी अवधि के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में यह ढाई गुना बढ़कर 7,500 करोड़ रुपये रहा है। मॉरीशस में कर अनुकूल व्यवस्था के कारण भारत में निवेश की इच्छुक कंपनियां वहां अपने कार्यालय खोलती हैं। वहां की कर व्यवस्था उन लोगों के लिए भी अनुकूल है, जो काले धन को मॉरीशस के रास्ते भारत में लाना चाहते हैं। स्विट्जरलैंड जैसे देशों में जमा काले धन के खाताधारकों के नाम के खुलासे की आशंका के कारण भी कई कंपनियां गलत तरीके से कमाए गए धन को मॉरीशस ला रही हैं और फिर उसे भारत में निवेश कर रही हैं। सूत्रों ने बताया कि दोनों देशों के बीच कर चोरी और धोखाधड़ी में शामिल कंपनियों के बारे में सूचना देने का समझौता है, लेकिन मॉरीशस से इस संबंध में उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। भारत सरकार ने यह भी कहा है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए वह मॉरीशस के साथ कर संधि करने को लेकर गंभीर है।
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