आम आदमी पर महंगाई मापने का पैमाना सरकार ने बदल दिया है। नए पैमाने में गांव के लोगों के खान-पान पर होने वाले खर्च और शहरी क्षेत्रों में आवास व सेवा क्षेत्र पर होने वाले खर्च को अधिक तवज्जो दी गई है। पहली बार मकान किराया, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन जैसे मद में हुए खर्च को महंगाई के पैमाने में जगह मिली है। यानी महंगाई के आकलन में इन मदों में हुए खर्च को आधार बनाया जाएगा। इस नए पैमाने यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर इस साल जनवरी में महंगाई दर 6 फीसदी रही। सरकार के इस नए पैमाने में उन क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिनमें उपभोक्ताओं की आय का बड़ा हिस्सा खर्च होता है। खान-पान और रहन-सहन के बदलते पैटर्न के मद्देनजर सेवा क्षेत्र को प्रमुखता से इसमें जगह दी गई है। इसके तहत चिकित्सा व शिक्षा के साथ परिवहन, संचार व सूचना क्षेत्र को पहली बार इसमें रखा गया है। घरेलू जरूरतों को भी स्थान मिला है। महंगाई मापने के पैमाने में सेवा क्षेत्र की पहली बार शामिल किया गया है, जिसकी हिस्सेदारी महंगाई मापने में 26.31 फीसदी निर्धारित की गई है। शहरी क्षेत्रों में आवास एक बड़ी समस्या है। किराए में लगातार वृद्धि और कर्ज पर खरीदे गए मकान की किश्त देने में आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। महंगाई मापने वाले इस पैमाने में इसे भी पहली बार शामिल किया गया है। शहरी क्षेत्रों के सूचकांक में इसकी हिस्सेदारी 22 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय सूचकांक में यह 9.77 फीसदी होगी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) में राष्ट्रीय स्तर पर जहां पहले खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी 35 फीसदी थी, अब उसे बढ़ाकर 49.71 फीसदी कर दिया गया है। ईंधन व लाइट जैसे मदों में बढ़ते खर्च को महंगाई में अधिक तरजीह दी गई है। इसमें भी ग्रामीण क्षेत्रों की 10.42 फीसदी और शहरी क्षेत्रों की 8.50 फीसदी की हिस्सेदारी होगी। खुदरा मूल्यों के आधार पर ग्रामीण, शहरी और संयुक्त (राष्ट्रीय) तीन पैमाने बनाए गए हैं। इसके लिए पांच बड़े समूह बनाए गए हैं। इसमें पहला समूह खाद्यान्न, पेय उत्पाद और तंबाकू है। दूसरा समूह ईंधन व प्रकाश, तीसरा आवास (हाउसिंग), चौथा कपड़ा, बेडिंग व फुटवियर है। जबकि पांचवां समूह अन्य वस्तुओं के लिए बनाया गया है।
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