Friday, February 11, 2011

पश्चिमी दुनिया में बढ़ा भारत का रुतबा


मशहूर बाजार सर्वेक्षण और वित्तीय एवं बैंकिंग सेवाएं देनेवाली कंपनी मॉर्गन स्टैनली के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेम्स गोरमैन ने दो वर्षो की मंदी के बाद विकसित अर्थव्यवस्थाओं की हालत में सुधार होने से पूंजी निवेश का प्रवाह पश्चिमी देशों की ओर लौटने के बावजूद भारत का आकर्षण बरकरार रहने का विश्वास जताया है। साथ ही यह चमक बरकरार रखने के लिए भारत को बढ़ती कीमतों पर काबू में रखने की सलाह दी है। गौरतलब है कि वर्ष2008 में वैश्विकवित्तीय संकट से पैदा हुई मंदी के जख्म सहला रही पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार का दौर फिलहाल जारी है। चिंता जताई जाने लगी है कि भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं इससे नुकसान उठा सकती हैं, क्योंकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर उोगजगत का भरोसा लौटने लगा है। हाल में भारत के दौरे पर आए गोरमैन ने कहा कि जिन कारणों से भारत 2009 और 2010 में सभी निवेशकों का पसंदीदा बाजार रहा, वे अब भी अपनी जगह कायम हैं। अब भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने पर गौर करने की जरूरत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी कंपनी के लिए भारत शीर्ष प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।

जानकारी के मुताबिक, मॉर्गन स्टैनली भारत में होलसेल बैंकिंग लाइसेंस हासिल करने की योजना बना रही है। इस लाइसेंस के मिल जाने से कंपनी कॉरपोरेट ग्राहकों को बेहतरीन सेवाएं मुहैया करा सकेगी। भारत में कंपनी ने अपने कर्मचारियों की तादाद बढ़ाने की तैयारी भी की है। फिलहाल इसमें 1,600 कर्मचारी काम कर रहे हैं। वर्ष 2010 की शुरुआत में मॉर्गन स्टैनली का जिम्मा संभालने वाले ऑस्ट्रेलियाई मूल के गोरमैन ने कहा कि भारत सरकार के बजट को घाटे के फंदे से बाहर निकालना महत्वपूर्ण है और मुद्रास्फीति की औसत दर पर भी ध्यान देने की जरूरत है जो फिलहाल काफी ज्यादा है। इससे बेहतर होता कि आर्थिक विकास की दर कुछ नीचे रहती और मुद्रास्फीति दर काबू में रहती। पिछले साल 8.6 फीसदी के आर्थिक विकास के बल पर भारत ने 29 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी पोर्टफोलियो निवेश आकर्षित किया, लेकिन अब उस पर कीमतों की बढ़ती आंच का असर होने लगा है। थोक मूल्य सूचकांक से आंकी जाने वाली मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष के दिसम्बर महीने के लिए 8.4 फीसदी दर्ज की गई थी, जो रिजर्व बैंक के संशोधित 7 फीसदी मुद्रास्फीति लक्ष्य से ज्यादा है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी पिछले सप्ताह देश के अर्थतंत्र के लिए इसे एक गंभीर खतरा माना। रिजर्व बैंक बीते 12 महीने में सात बार नीतिगत दरों में इजाफा कर चुका है। अनुमान जताया जा रहा है कि इस साल नीतिगत दरों में एक फीसदी का इजाफा और किया जाएगा।

चीन ने भी इसी हफ्ते नीतिगत दरें बढ़ाने का फैसला किया, जो अक्टूबर के बाद से तीसरी बढ़ोतरी है। काफी समय तक वकालत कर चुके गोरमैन मैकेंजी एंड कंपनी के वित्तीय सलाहकार भी रहे हैं। उनके कार्यकाल में मॉर्गन स्टैनली दुनिया का सबसे बड़ा ब्रोकरेज हाउस बन कर उभरा है, जिसने वर्ष 2009 में सिटी बैंक समूह के स्मिथ बारने ब्रोकरेज बिजनेस के अधिग्रहण में बड़ी भूमिका निभाई थी। पिछले साल गोल्डमैन सैक्स को पीछे छोड़ते हुए मॉर्गन दुनिया की शीर्ष विलय एवं अधिग्रहण सलाहकार बन गई, क्योंकि कंपनियों के बीच आर्थिक भरोसा लौटने से सौदे संबंधी गतिविधियों में इजाफा हुआ। गोरमैन ने अनुमान जताया कि इस वर्ष विलय एवं अधिग्रहण गतिविधियों में और तेजी आएगी, क्योंकि वैश्विक अर्थतंत्र में हो रहे तेज विकास की वजह से माहौल सकारात्मक बन रहा है और कंपनियों के पास मंदी के समय सहेजकर रखी गई नकदी मौजूद है। उनकी यह मान्यता पिछले महीने सही भी साबित हो चुकी है। इस वर्ष के पहले ही महीने में विलय एवं अधिग्रहण गतिविधियों ने बीते 11 में सबसे व्यस्त महीना रहा था। इसके बावजूद लोगों के मन की शंकाएं खत्म नहीं हुई हैं। वे पूछ रहे हैं कि कहीं वैश्विक सुधार का भरोसा मृगमरीचिका तो नहीं है? जल्द ही कहीं गुब्बारा फूट तो नहीं जाएगा? गोरमैन ने दावा किया कि मंदी के दूध से जिनका मुंह जल चुका है उनका अतिरिक्त सावधानी बरतना स्वाभाविक है लेकिन पिछले साल आर्थिक परिदृश्य पर निराशा जताने वाले लोग गलत साबित हुए थे। यूनान, पुर्तगाल या स्पेन के हालात ने लोगों को डरा तो दिया था लेकिन उनसे अमेरिका की तरह सब-प्राइम संकट की स्थिति नहीं बनी और उन तीनों देशों को राहत पैकेज देकर संकट से उबार लिया गया। यह उतना बुरा नहीं रहा, जितना कि लोगों ने सोचा था। इन तीनों देशों में से कोई भी बुरे वक्त की शुरुआत का कारण हो सकता था, लेकिन तीनों ने आशंकाओं को झुठलाते हुए बेहतर स्थिति हासिल कर ली। इसके साथ ही वित्तीय सेक्टर में विश्वास बढ़ाने के लिए इन देशों की सरकारों ने सक्रिय दखलअंदाजी की। नए नियमों तथा ज्यादा पूंजी के साथ उन्हें मजबूत बनाने से सुधार प्रक्रिया में मदद मिलेगी।

बहरहाल, गॉरमैन कुछ खतरे सामने आने की संभावना से इन्कार नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि मंदी के झटके बाद वित्तीय तंत्र को शुद्घ और बेहतर बनाने में मदद मिली है। कई चीजें दुरुस्त हुई हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से स्थिर है। इसके बावजूद मिd तथा अन्य खाड़ी देशों में चल रहा राजनीतिक बवंडर इस सफर की दिशा बदलने का माद्दा रखते हैं। यह एक संयोग ही है कि सबसे मध्य-पूर्व के ज्यादा स्थिर मुल्कों में से एक मिd में इन दिनों सत्ता बदलने की उठा-पटक चल रही है।
  

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