Saturday, February 26, 2011

कर बढ़े पर बोझ नहीं


लीबिया में मारकाट, बाकी अरब जगत में अस्थिरता, कच्चे तेल के भावों को लेकर अनिश्चितता, उद्योगों में मंडराता मंदी का संकट, बढ़ती महंगाई, डूबता स्टाक बाजार, काले धन को लेकर दिखायी जा रही अतिरिक्त संवेदनशीलता, बजट के ठीक पहले इस सबसे ज्यादा चुनौतियां आम तौर पर वित्त मंत्री के सामने नहीं होतीं। वित्त मंत्रियों के लिए बजट का मतलब होता है, ऐसा हिसाब-किताब, जिसमें, आय की बढ़ोत्तरी की जुगाड़ की जाये और खचोर्ं में कमी का जुगाड़ जमाया जाये। ये दोनों काम बहुत मुश्किल हो जाते हैं। खास कर तब, जब सरकार गठबंधन की हो। यों गठबंधन की सरकार से पैदा होने वाली कमजोरी का रोना प्रधानमंत्री बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके रो चुके हैं। पर वित्त मंत्री के सामने भी वही मजबूरियां पेश हैं। रेल मंत्री ममता बनर्जी मोटे तौर पर रेलवे के किराये बढ़ाने के मूड में नहीं हैं। रेलवे को जिन संसाधनों की दरकार है, उसका भी बड़ा हिस्सा वित्त मंत्री को जुटाना होगा। यह जुटाने की आर्थिक वजह तो है ही, साथ में राजनीतिक वजह यह है कि कांग्रेस और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को कुछ समय बाद पश्चिम बंगाल में साथ-साथ चुनाव लड़ना है। ऐसी सूरत में पब्लिक को परेशान करने वाली कोई घोषणा न रेल बजट में होनी चाहिए, न आम बजट में होनी चाहिए। वित्त मंत्री और रेल मंत्री दोनों की कोशिशें कुछ इस तरह की होंगी। एक महत्वपूर्ण राज्य में चुनावी माहौल में बजट के सामने चुनौतियां दोगुनी हो जाती हैं। सबसे पहली चुनौती तो बजट के सामने यह है कि कैसे ऐसा हिसाब-किताब बनाया जाये, जिससे महंगाई का बोझ जनता पर न पड़े। गौरतलब है कि एक्साइज शुल्क सरकार की कमाई का एक खास जरिया है। एक्साइज में शुल्क में किसी भी बढ़ोतरी का मतलब है कि तमाम वस्तुएं महंगी हो जायेंगी। जैसे साबुन, वाशिंग पाऊडर, कार, जीप वगैरह पर अगर एक्साइज बढ़ाया जाता है, तो इसका मतलब है कि ये सारी चीजें महंगी हो जायेंगी। आटोमोबाइल सेक्टर में तो तेजी का माहौल है, वह तो थोड़ी महंगाई झेल सकता है। पर और तमाम सेक्टर यह महंगाई नहीं झेल सकते। प्याज टमाटर की महंगाई ने पहले ही आम आदमी का बजट बिगाड़ रखा है। वह और अधिक महंगाई किसी भी स्रेत से झेलने के मूड में नहीं है। तब सवाल उठता है कि साधन जुटाये कहां से जायेंगे? कर का एक महत्वपूर्ण स्रेत है सर्विस टैक्स, जो तमाम तरह की सेवाओं पर लगता है। ड्राइक्लीनिंग से लेकर ब्यूटी पार्लर और रेस्टोरेंट से लेकर कोचिंग सेंटरों पर यह कर लगता है और तमाम सेवाओं को महंगा बनाता है। इस समय अर्थव्यवस्था यानी सकल घरेलू उत्पाद का करीब साठ प्रतिशत सेवा क्षेत्र से ही आ रहा है। इसमें कर की बढ़ोतरी का मतलब है कि तमाम सेवाओं के भाव बढ़ेंगे। इसका मतलब भी वही है- बढ़ती हुई महंगाई। अर्थात् सरकार को उन रास्तों से संसाधन जुटाने की जरूरत है, जिन रास्तों से करदाताओं के ऊपर बोझ न पड़ता हो पर ऐसे रास्ते तलाशना आसान नहीं है। थ्रीजी स्पेक्ट्रम से हर साल रकम नहीं वसूली जा सकती। टू जी स्पेक्ट्रम में करीब एक लाख पिचहत्तर करोड़ रुपये का घाटा कैसे वसूला जायेगा, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं। राजा और तमाम अफसरों से अगर यह रकम वसूली जा सके, तो बजट में एक योगदान उनका भी हो सकता है। काले धन को लेकर बहुत हल्ला-बावेला है। कांग्रेस और बाबा रामदेव जी में बजट से ठीक पहले इस मसले पर बहस हो रही है। रामदेव जी काले धन को सामने लाना चाहते हैं। कांग्रेस का मानना है कि सिर्फ रामदेव ही देशभक्त नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी भी काले धन के मामले में संवेदनशील है। इस संवेदनशीलता को अगर ठोस प्रयासों में परिवर्तित किया जा सके, तो यह देश के लिए बहुत अच्छा होगा। एक अध्ययन के मुताबिक हर चौबीस घंटों में करीब 240 करोड़ रुपये गैर कानूनी तरीके से देश से बाहर जा रहे हैं। इसे रोकना आसान नहीं है। काले धन को बाहर कैसे लाया जाये, उन्हें किस तरह का प्रोत्साहन या दंड दिया जाये, यह सवाल वित्त मंत्री के लिए महत्वपूर्ण है। काला धन सिर्फ बहस का नहीं, कर्म का विषय भी है, इस किस्म का संदेश इस बजट में दिया जाना चाहिए। उधर, इनकम टैक्स देने वाले मांग रहे हैं कि करों में छूट बढ़नी चाहिए। छूट बढ़ने का मतलब है कि कर संग्रह में कमी। यह भी आसान नहीं है। वैसे अब तक का अनुभव यह रहा है कि ईमानदारी से कर देने वालों के मुकाबले काले धन वालों के लिए स्थितियां ज्यादा मुफीद रही हैं। समय-समय पर तमाम ऐसी योजनाएं आती हैं, जिनसे काले धन को बाहर निकालने की कोशिश की जाती है। यानी काले धन को बाहर निकलने के लिए तमाम रियायतों की घोषणा होती है। इस बजट में ऐसी रियायतें कैसे घोषित हों कि ईमानदार करदाता पर चोट न हो, यह चुनौती वित्त मंत्री के सामने खासी बड़ी चुनौती है। एक बहुत बड़ा मसला बजट से ऐन पहले कच्चे तेल के भावों का है। लीबिया समेत कई अरब देशों के संकट के चलते कच्चे तेल के भाव सौ डालर प्रति बैरल से ऊपर चले गये हैं। ये भाव कहां तक जायेंगे, किसी को नहीं पता। किसी को नहीं पता कि अरब जगत में अशांति और असंतोष के स्तर कहां तक जायेंगे। अगर सऊदी अरब में अशांति और असंतोष व्यापक तौर पर फैल जाते हैं, तो फिर तेल के भाव कहां जाकर रुकेंगे, कोई नहीं कह सकता। कच्चे तेल के भावों में बढ़ोत्तरी का मतलब है कि देर सबेर भारत में भी पेट्रोल औऱ डीजल के भाव बढ़ेंगे। इनके भाव बढ़ने का मतलब है कि लगभग हर वस्तु और सेवा के भाव ऊपर जायेंगे। ऐसे समय में जब कच्चे तेल के भाव आम आदमी को पहले ही डरा रहे हों, तब बजट बनाने वालों के लिए किसी और आइटम पर कर दर बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।इसलिए आगामी बजट में वित्त मंत्री की रचनात्मकता की परीक्षा होगी। कर बढ़ जाये, पर बोझ न बढ़े, इस चुनौती का समुचित हल वित्त मंत्री को ढूंढना ही होगा।

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