Friday, February 25, 2011

हमारी मुद्रा के साथ भेदभाव


जुलाई, 2010 में देवनागरी लिपि और अंग्रेजी अक्षर के अदभुत मिश्रण वाले रुपये के प्रतीक चिह्न को अपनाकर भारत प्रमुख मुद्राओं वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। भारतीय रुपये का प्रतीक चिह्न हमारी अर्थव्यवस्था की बढ़ती ताकत के लिए वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। वैसे तो रुपया पूरी तरह से वैध मुद्रा के रूप में पूरे देश में प्रचलित है, परंतु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के ड्यूटी फ्री शॉप जैसी कुछ जगहों में रुपये में खरीदारी नहीं की जा सकती। वहां एक यादगार उक्ति शो मी द मनी लिखी रहती है जो पूर्णत: नए अर्थ का आभास कराती है। आप जो चाहते हैं वह खरीद सकते हैं। भारतीय होने के नाते आप पर भी अवश्य शतर्ें एवं निबंधन लागू हैं-आप अधिकतम 500 रुपये मूल्य की भारतीय मुद्रा खर्च कर सकते हैं, परंतु यदि आप विदेशी हैं तो बिलिंग सहायक आपसे रोकड़ या कार्ड की मांग करता है। भारतीय मुद्रा स्वीकार्य नहीं हैं। आप खरीदारी कर सकते हैं, मगर भुगतान करने के लिए अपने पास क्रेडिट कार्ड या विदेशी मुद्रा अवश्य रखें। क्या ऐसा कोई दूसरा देश है जो अपनी मुद्रा का इतना तिरस्कार करता है जितना हम अपने रुपये का अपने ही देश में करते हैं? मेरे विचार से नहीं। बड़े और छोटे देशों में केवल एक हमारा देश ही ऐसा देश है जो अपनी मुद्रा को पूरा सम्मान नहीं देता और भुगतान के रूप में रुपये को स्वीकार करने से इनकार कर देता है। विदेशी पर्यटकों के लिए अतुल्य भारत उस समय हास्यास्पद भारत बन जाता है जब वे भारत में अपने यादगार प्रवास से वापस लौटने पर कहते हैं कि जिस रुपये का उन्होंने पूरे प्रवास के दौरान जमकर उपयोग किया वही एयरपोर्ट डयूटी फ्री शॉप में अमान्य हो गया। कुछ ऐसे यात्रियों की कल्पना कीजिए जिनके पास रुपये हैं, किंतु वे खरीदे गए सामान के लिए अपने पास रखी भारतीय मुद्रा में भुगतान नहीं कर सकते हैं। उन्हें कमीशन देकर भारतीय मुद्रा को विदेशी मुद्रा में बदलना पड़ता है। इस प्रकार उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ती है, क्योंकि भारत में आने पर भी उन्हें विदेशी मुद्रा को भारतीय मुद्रा में बदलवाने के लिए कमीशन का भुगतान करना पड़ा था। प्रस्थान के समय डयूटी फ्री शॉप में रुपयों को खर्च करने की उन्हें आजादी नहीं है। ऐसे नियमों के पीछे क्या नीतिगत विवशताएं हैं? जब विदेशी पर्यटक या कारोबारी यात्री भारत में अपने प्रवास के दौरान, खाने और खरीदारी पर पैसा खर्च करता है तो यह पैसा हमारी अर्थव्यवस्था में प्रवाहित होता है। फिर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर किसी विदेशी नागरिक के पास मौजूद पैसे का रंग समस्या कैसे बन जाता है? भारत में खर्च किए जा रहे रुपये को लेने में क्या नुकसान है? आज जब हम विश्व की सर्वोत्तम सुविधाओं की तुलना में अत्याधुनिक सुविधाओं और सेवाओं से सुसज्जित हवाई अड्डे का निर्माण कर रहे हैं तो यह नियम अप्रासंगिक और पुराना सा लगता है। भारत एक महत्वपूर्ण हब के रूप में उभर रहा है और उसे पर्यटकों और कारोबारी यात्रियों के लिए उनकी संपूर्ण यात्रा को यादगार बनाने के लिए इस नियम को बदलकर व्यापक आर्थिक समझ का परिचय देना चाहिए। ऐसे कई अंतरराष्ट्रीय अवाई अड्डे हैं जो यात्रियों के लिए सर्वश्रेष्ठ खरीदारी गंतव्यों के रूप में जाने जाते हैं। यदि हम उनकी श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं तो हमें अपनी नीतियों की समीक्षा करनी होगी। यदि हम अपनी सोच में बदलाव नहीं लाएंगे तो हम आय के एक महत्वपूर्ण श्चोत को खो देंगे, क्योंकि कुछ सर्वोतम ड्यूटी फ्री शॉप में बिक्री अरबों डॉलरों में होती है। इस नियम से भारत को हजारों करोड़ रुपये का हर साल नुकसान होता है। भारत एक विशाल अर्थव्यवस्था है, जिसकी विकास दर लगभग 9 प्रतिशत है और इसका आरक्षित विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 300 अरब डॉलर है। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को हर जगह देखा और अनुभव किया जा सकता है। आर्थिक साम‌र्थ्य और वित्तीय ताकत के रूप में देश के आत्मविश्वास के लिए हमें डयूटी फ्री शॉप में हमेशा भारतीय मुद्रा का उपयोग करना चाहिए।
यह कदम हाल ही में हमारे द्वारा अपनाए गए रुपये के प्रतीक चिह्न के क्रम में होगा; यह हमारी मुद्रा की स्वीकार्यता को और व्यापक बनाएगा और इसकी विशिष्ट पहचान में वृद्धि करेगा। जब शेरशाह सूरी ने 16वीं शताब्दी में प्रथम रुपये की शुरुआत की थी तो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि पांच सौ साल बाद हमारी मुद्रा हमारे ही देश के कुछ हिस्सों में अस्वीकार्य हो जाएगी। एयरपोर्ट डयूटी फ्री शॉप में भारतीय नागरिकों को भारतीय मुद्रा का उपयोग करने देने के लिए मैं नीति निर्माताओं-वित्त मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक को लगातार पांच वषरें से लिख रहा हूं। नीति में उक्त बदलाव को सितंबर, 2005 में अधिसूचित किया गया था। मुझे आशा है कि इस पक्षपाती नीति को नियम पुस्तिका से हटाने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। रुपये का नया प्रतीक चिह्न समानता का प्रतीक भी है। वक्त आ गया है, जब हम मेरे और उसके रुपये में भेद करना बंद करें। (लेखक संसद सदस्य हैं)

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