कर संग्रह के मोर्चे पर अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बढ़ता कर्ज सरकार के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। 2010 के मार्च में जहां विदेशी कर्ज 262.3 अरब डॉलर था वहीं यह सितम्बर तक बढ़कर 295.8 अरब डॉलर हो गया
अब जबकि केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी वित्त वर्ष 2011-12 का आम बजट पेश करने वाले हैं तो ऐसे में इस बात की पड़ताल जरूरी जान पड़ती है कि पिछले बजट में उन्होंने जो घोषणाएं की थीं, उनका क्या हुआ? हालांकि, इस बारे में अंतिम आंकड़ों को आने में कुछ वक्त लग जाता है और कुछ आंकड़े नये बजट में दिए जाते हैं। पर मोटे तौर पर उन घोषणाओं के क्रियान्वयन का जायजा लेने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जारी किए गए ताजे आंकड़ों का सहारा लिया जा सकता है। इससे स्पष्ट तस्वीर भले न दिखे लेकिन इसका कुछ अंदाजा जरूर हो सकता है। तमाम खामियों के बावजूद जीडीपी को ही भारत में विकास का पैमाना माना जा रहा है। इसलिए सबसे पहले इसीकी बात। चालू वित्त वर्ष का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा था कि नौ फीसद की विकास दर हासिल करने की कोशिश की जाएगी। पर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 31 जनवरी 2011 तक एकत्रित किए गए आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2010-11 में जीडीपी की दर 8.6 फीसद रहेगी। हालांकि, यह 2009-10 की आठ फीसद विकास दर से अधिक है। 2009-10 के 44.93 लाख करोड़ रुपए की तुलना में चालू वित्त वर्ष में जीडीपी का आकार बढ़कर 48.79 लाख करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है। पर इस वृद्धि को देखते वक्त खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि इस बढ़ोतरी के लिए बेलगाम बढ़ती महंगाई भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इस एक साल में महंगाई ने लोगों को सबसे ज्यादा परेशान किया है। वैसे, महंगाई बढ़ाने के जरूरी उपाय खुद वित्त मंत्री ने ही अपने बजट भाषण के जरिए कर दिए थे। उन्होंने कहा था, ‘मैं कच्चे तेल पर पांच फीसद, पेट्रोल और डीजल पर 7.5 फीसद और दूसरे रिफाइन उत्पादों पर 10 फीसदी शुल्क लगाने का प्रस्ताव करता हूं। इसके साथ मैं यह भी प्रस्ताव करता हूं कि पेट्रोल और डीजल पर एक रुपया प्रति लीटर केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगाया जाए।’ प्रणब मुखर्जी की इस घोषणा के बाद पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर 2.71 रुपए और डीजल की कीमतों में 2.55 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो गई। इसके कुछ महीने बाद ही पेट्रोल की कीमतों को बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया और महंगाई बेतहाशा बढ़ती रही। ईंधन की कीमतों में वृद्धि का सीधा मतलब यह है कि महंगाई बढ़ेगी क्योंकि इस सीधा असर परिवहन पर होने वाले खर्च और खेती की लागत पर पड़ता है।
कृषि की विकास दर बढ़ेगी
पिछले बजट में कृषि क्षेत्र की सेहत सुधारने के लिए वित्त मंत्री ने कई घोषणाएं की थीं। उन्होंने इस क्षेत्र के लिए चार सूत्री रणनीति की घोषणा की थी। ये हैं- उपज बढ़ाना, अनाज की बर्बादी रोकना, किसानों को कर्ज मुहैया कराना और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देना। हालांकि, उन्होंने खेती की लागत बढ़ाने के लिए ऊर्वरकों पर दी जाने वाली रियायत को 52,980 करोड़ रुपए से घटाकर 49,980 करोड़ रुपए कर दिया था। कृषि विभाग द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों पर यकीन करें तो चालू वित्त वर्ष में कृषि उत्पादन बढ़ने की संभावना है। विभाग का कहना है कि अनाजों के उत्पादन में 6.5 फीसद और तिलहन के उत्पादन में 11.9 फीसद बढ़ोतरी होगी। कपास और गन्ने के उत्पादन में भी क्रमश: 41.2 फीसद और 15.2 फीसद बढ़ोतरी की उम्मीद है। वहीं फलों के उत्पादन में 4.1 फीसद और सब्जियों के उत्पादन में 3.8 फीसद वृद्धि होने का अनुमान कृषि विभाग ने लगाए हैं। अगर विभाग के ये अनुमान सही निकलते हैं तो कृषि क्षेत्र की विकास दर पर इसका स्पष्ट असर दिखेगा। हालांकि, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की हालत पर जो रपट सौंपी हैं; उसमें कहा गया है कि कृषि क्षेत्र की विकास दर 5.4 फीसद रहेगी। पिछले वित्त वर्ष में यह महज 0.4 फीसद थी।
मगर अनाज सड़ ही रहा है
प्रणब मुखर्जी ने अनाज की बर्बादी रोकने की बात भी अपने बजट भाषण में की थी। पर बीते बरसात में सबने देखा कि किस तरह से हजारों टन अनाज पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य कुछ राज्यों में सड़ते रहे। मामला इतना गर्म हो गया कि शीर्ष न्यायालय को दखल देना पड़ा लेकिन अनाजों की बर्बादी नहीं रूकी। कुछ दिनों पहले फिर खबर आई थी कि खुले में रखे जाने से फिर अनाज सड़ रहे हैं। जहां तक किसानों को दिए जाने वाले कर्ज का सवाल है तो जमीनी हालत को देखते हुए यह नहीं लगता कि उन्हें बहुत आसानी से कर्ज मिल रहा है। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में कई राज्यों में सुगबुगाहट दिख रही है और बिहार जैसे राज्य ने इस मामले में आगे बढ़कर कुछ ठोस कदम भी उठाए हैं।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार पर देखा जाए तो चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर सरकार को चिंता में डालने वाली है। हालांकि, पिछली दफा बजट पेश करते समय कांग्रेस के संकटमोचक प्रणब मुखर्जी ने इस क्षेत्र के विकास के लंबे-चौड़े वादे किए थे। अभी बीते दिसम्बर के आंकड़े जारी किए गए हैं और इस महीने औद्योगिक उत्पादन में महज 1.6 फीसद बढ़ोतरी हुई। यह पिछले 20 महीने में सबसे कम है। इसी साल नवम्बर में यह दर 2.7 फीसद थी। जबकि 2009 के दिसम्बर में यह वृद्धि दर 18 फीसद पर थी। औद्योगिक उत्पादन की दर जिन क्षेत्रों से आंकड़े एकत्रित कर निर्धारित की जाती है उसमें विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 79 फीसद है और इस क्षेत्र के खराब प्रदर्शन ने औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों को बिगाड़ दिया है। बीते दिसम्बर में इस क्षेत्र की विकास दर सिर्फ एक फीसद रही जबकि ठीक साल भर पहले उत्पादन में बढ़ोतरी के मामले में इस क्षेत्र की रफ्तार 19.6 फीसद की थी। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के मुताबिक इस साल औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 8.1 फीसद रहेगी।
सेवा क्षेत्र से उम्मीद
वैसे, इस साल सेवा क्षेत्र की विकास दर उत्साहजनक रहने की उम्मीद जताई जा रही है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक होटलों, परिवहन और संचार क्षेत्र की विकास दर 11 फीसद रहने की उम्मीद है। इसके लिए हवाई यात्रा करने वालों की बढ़ी संख्या और फोन कनेक्शनों में हुई 40.9 फीसद की बढ़ोतरी को जिम्मेदार माना जा रहा है। वहीं सरकार को प्राप्त होने वाले कर में भी बढ़ोतरी के अनुमान हैं। परिषद ने अनुमान लगाया है कि इस वित्त वर्ष में सेवा क्षेत्र की विकास दर 9.6 फीसद रहेगी। पिछले वित्त वर्ष में यह 9.1 फीसद थी। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी के बीच हुए प्रत्यक्ष कर संग्रह के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस दौरान कर संग्रह में 20.37 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
अच्छा राजस्व मिलेगा
पिछले वित्त वर्ष में इस दौरान प्रत्यक्ष कर के तौर पर 2.63 लाख करोड़ रुपए का संग्रह किया गया था। वहीं चालू वित्त वर्ष में इस दौरान 3.17 लाख करोड़ रुपए का कर संग्रह किया गया। चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दस महीनों में कॉरपोरेट आयकर संग्रह में 24.78 फीसद और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 11.87 फीसद वृद्धि दर्ज की गई। इन आंकड़ों से जो तस्वीर उभरती है, उससे पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में राजस्व प्राप्ति के मामले में अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी। कर संग्रह के मोर्चे पर अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बढ़ता कर्ज सरकार के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। 2010 के मार्च में जहां विदेशी कर्ज 262.3 अरब डॉलर था वहीं यह सितम्बर तक बढ़कर 295.8 अरब डॉलर हो गया। इसमें लंबी अवधि के कर्ज की हिस्सेदारी 77.7 फीसद है जबकि कम अवधि के कर्ज की हिस्सेदारी 22.3 फीसद है। चालू वित्त वर्ष में कुल राजस्व घाटा जीडीपी का 7.5 से 8 फीसद रहने का अनुमान प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने लगाया है जबकि बजट पेश करते समय प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि यह 4.8 फीसद रहेगी।
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