Saturday, February 26, 2011

प्रोत्साहन, राहत और सख्त उपाय नया बजट


बजट में क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों के बीच सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क घटाने की डगर पर आगे बढ़ सकती है। कच्चे तेल पर सीमा शुल्क अभी 7.5 फीसद है, जिसे 2.5 फीसद घटाकर पांच फीसद किया जा सकता है। पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क प्रति लीटर दो रुपये और डीजल पर प्रति लीटर तीन रुपये कटौती की सम्भावना है
इस महीने की आखिरी तरीख को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी वर्ष 2011-12 का आम बजट प्रस्तुत करेंगे। इस बजट में वित्तमंत्री को कई चुनौतियों का सामना करते हुए समाज एवं अर्थतंत्र के विभिन्न वगरे की उम्मीदों को पूरा करना होगा। वित्तमंत्री के समक्ष महंगाई नियंत्रण, राजकोषीय घाटा कम करने, सार्वजनिक वितरण पण्राली, विदेशी निवेश, करारोपण और सब्सिडी सम्बंधी बड़ी चुनौतियां हैं। आर्थिक एवं प्रशासनिक सुधारों को गतिशील बनाने की भी चुनौती है। सबसे बड़ी चुनौती लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति की है। खासतौर से खाद्य वस्तुओं के ऊंचे दाम चिंता का कारण बने हुए हैं। कई वर्षो बाद यह स्थिति बन आई है कि लगातार दो वर्षो तक खाद्य मुद्रास्फीति दहाई अंकों में बनी हुई है। सरकार ने महंगाई से लड़ने का मुख्य जिम्मा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सौंप रखा है। आरबीआई मौद्रिक दरों में छोटे-छोटे इजाफे के माध्यम से इस चुनौती से जूझ रहा है। लेकिन यह स्पष्टतया समझा जा रहा है कि इस समस्या से निजात पाने का असरदार तरीका ढांचागत सुधार लाकर बढ़िया निवेश से उत्पादकता में इजाफा करना ही है। इसी तरह, राजकोषीय और चालू खाता घाटे की दोहरी समस्या मुंह बाए खड़ी है।अनिश्चित वैश्विक परिस्थितियां और आयात की बढ़ती मांग ने चालू खाता घाटे को बढ़ाकर जीडीपी के 3.7 फीसद तक पहुंचा दिया है। इस संदर्भ में वित्तमंत्री को 13वें वित्त आयोग द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करना होगा। आयोग ने वर्ष 2011-12 के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 4.8 फीसद करने का लक्ष्य तय किया था। हालांकि उसे हासिल करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। बहरहाल, आगामी बजट में राजकोषीय घाटे और राजस्व घाटे को नियंत्रित करने के लक्ष्य पर खास ध्यान केंद्रित करना होगा। इससे अधिक संतुलित मौद्रिक नीतियों का मार्ग प्रशस्त होगा और महंगाई पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक पर भी ज्यादा दबाव नहीं होगा। नये बजट में सार्वजनिक वितरण पण्राली की सक्षमता के लिए भी वित्तमंत्री के मजबू़त कदम जरूरी होंगे। सार्वजनिक वितरण पण्राली का सम्बंध नये खाद्य सुरक्षा कानून से भी जुड़ा हुआ है। आम आदमी तक खाद्यान्न पहुंचाने की हमारी राह में कमजोर सार्वजनिक वितरण पण्राली एक बड़ी बाधा है। वर्ष 2011-12 के बजट से कृषि, उद्योग, रोजगार, निर्यात तथा करदाता वर्ग की अलग-अलग उम्मीदें हैं। बुनियादी ढांचा क्षेत्र के साथ- साथ कृषि व ग्रामीण क्षेत्र प्राथमिकता चाहता है। आने वाले आम बजट में कृषि गतिविधियों के निमित्त कर प्रोत्साहन अपेक्षित बताए जा रहे हैं ताकि निजी भागीदारी तथा इस क्षेत्र में नई प्रोद्यौगिकी को बढ़ावा दिया जा सके। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत कामगारों के वेतन-भत्तों में 20 फीसद का इजाफा किए जाने की मांग की गई है। खाद्य सुरक्षा के लिए नकदी आवंटन बढ़ाने की मांग है। तेल सब्सिडी में इजाफे को भी टाला नहीं जा सकता। नये बजट से शेयर बाजार को अनुकूल उम्मीदें हैं। चूंकि नये बजट में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचा क्षेत्र को निवेश के लिए खोलने और उद्योगों के लिए राहत की संभावनाएं हैं। ये सभी शेयर बाजारों में अच्छी खासी तेजी के लिए जरूरी घटक हैं। नये बजट में उद्यमियों के लिए सेनवैट क्रेडिट को लाभप्रद बनाया जा सकता है। सेनवैट क्रेडिट के तहत उद्योगों को विनिर्माण प्रक्रिया में शामिल कच्चे माल और सेवाओं पर चुकाए गए उत्पाद एवं सेवा कर को तैयार उत्पाद पर लगने वाले अंतिम शुल्क में से कम करने की छूट दी जाती है। इससे देश के विनिर्माण क्षेत्र को और प्रतिस्पद्र्धी बनाया जा सकेगा। कई हिस्सों में स्थित एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन (ईपीजेड) में कार्यरत मैन्युफैक्चरिंग यूनिटें आने वाले समय में भी कुछ टैक्स रियायतें पाने की उम्मीद कर रही हैं। दरअसल, निर्यातोन्मुख इकाइयों (ईओयू) को मिलने वाली कर रियायतों की अवधि समाप्त हो जाने के बाद सरकार अब इनसे जुड़ी तीन दशक पुरानी स्कीम में बदलाव लाने की तैयारी में है। देश के निर्यात को प्रतिस्पद्र्धी बनाने के लिए निर्यात लागत को कम करने और उसे सुविधानजक बनाने के लिए भी वित्तमंत्री आगामी बजट में इस दिशा में कुछ नये कदम उठा सकते हैं। सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों के लिए आगामी बजट में कई प्रकार की रियायतें मिल सकती हैं। इनमें बैंकिंग रियायत से लेकर सरकारी खरीद में मिलने वाली छूट तक शामिल हो सकती है। उम्मीदों के क्रम में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के 2011-12 के बजट आवंटन में पिछले साल की तुलना में 30 फीसद से ज्यादा योजनाबद्ध राशि का आवंटन सम्भावित है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को 750 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि भी मिल सकती है जो औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों (आईटीआई) की अपग्रेडिंग के लिए व्यय किया जाएगा। इसी तरह, आईटी उद्योग के लिए नये बजट में अच्छी सम्भावनाएं हैं। रजिस्र्टड आईटी कम्पनियों को दी जाने वाली करों में छूट अगले वर्ष भी जारी रह सकती है। इसमें लाभ व निवेश के आधार पर कुछ नई रियायतें लागू की जा सकती हैं। वित्तमंत्री रोजमर्रा की वस्तुओं की महंगाई के बोझ तले दबी जनता को आगामी बजट में कुछ राहत देते हुए दिखाई दे सकते हैं। वित्तमंत्री बजट में व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा बढ़ाकर आम करदाताओं को यह राहत दे सकते हैं। छूट की सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये तक कर सकते हैं। नौकरी पेशा वर्ग के लिए मानक कटौती (स्टैंर्डड डिडक्शन) का लाभ फिर से शुरू किया जा सकता है। आगामी बजट में बैंकों में जमा पूंजी पर मिलने वाली ब्याज राशि पर कर छूट सीमा बढ़ाई जानी सम्भावित है ताकि अधिक से अधिक लोग बैंकों में धन रखने के लिए प्रोत्साहित हो सकें और बैंकों में नकदी की तंगी की समस्या के भी हल होने में मदद मिल सके। वर्तमान में बैंकों में जमा पूंजी पर सालाना 10,000 रुपये से अधिक ब्याज मिलने पर बढ़ी हुई राशि पर 10 प्रतिशत की दर से स्रेत पर कर (टीडीएस) काट लिया जाता है। इस सीमा को बढ़ाया जा सकता है। इस बार के बजट में हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए वित्तमंत्री कुछ फेरबदल कर सकते हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस बार के बजट में हेल्थ इंश्योरेंस पर मिलने वाली कर छूट की सीमा बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दी जाएगी। अभी तक इस पर 15,000 रुपये की कर छूट मिल रही है। नये बजट में कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की बेतहाशा बढ़ती कीमतों के बीच सरकार क्रूड ऑयल के साथ-साथ पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क घटाने की डगर पर आगे बढ़ सकती है। क्रूड ऑयल पर सीमा शुल्क अभी 7.5 फीसद है, जिसे 2.5 फीसद घटाकर पांच फीसद किया जा सकता है। इसी तरह पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में प्रति लीटर दो रुपये और डीजल पर प्रति लीटर तीन रुपये कटौती की सम्भावना है। इन सब के अलावा वित्तमंत्री देश में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की व्यवस्था लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जीएसटी के लिए संविधान संशोधन विधेयक आगामी बजट सत्र के दौरान संसद में पेश कर सकते हैं। जीएसटी उन मौजूदा परोक्ष करों की जगह लेगा जिनकी उगाही केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से की जाती है। वित्तमंत्री सेवा कर की दर को वर्ष 2008 के आर्थिक संकट से पहले वाली 12 फीसद पर लाने की घोषणा कर सकते हैं। इस तरह सेवाकर की मौजूदा 10 फीसद दर में दो फीसद की बढ़ोतरी कर सकते हैं। इस समय कुछ ही क्षेत्रों की सलाहकार सेवाओं पर सर्विस टैक्स लग रहा है। बजट में कॉरपोरेट फाइनेंस, एकाउंटिंग, ऑडिटिंग, टैक्सेशन जैसे प्रमुख क्षेत्र की अनुषंगी सलाहकार सेवाएं भी इस दायरे में आ सकती हैं। इसके अलावा इनकम टैक्स विभाग द्वारा आईटी रिटर्न दाखिल करने के लिए शुरू की गई सस्ती प्रोफेशनल सेवा ट्रिप्स भी इसका हिस्सा बन सकती है। इस तरह नये बजट के माध्यम से जहां वित्त मंत्री आम आदमी को राहत, कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे को प्रोत्साहन देने के लिए आगे बढ़ेंगे। वहीं वित्तमंत्री आर्थिक सुधारों की डगर पर आगे बढ़ते हुए प्रोत्साहन पैकेजों की वापसी, अनावश्यक रियायतों को नियंत्रित करने, राजस्व और राजकोषीय घाटे में कमी करने के पुरजोर प्रयासों से विकास के लिए जरूरी स्थायित्व की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देंगे।

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