Wednesday, February 2, 2011

ब्लैक मनी के ब्लैकहोल को कैसे भरें


वीडीआईएस की तर्ज पर एक और स्कीम लाने का फायदा होगा। सरकारी खजाना भर जाएगा और काली कमाई करने वालों को एक आखिरी मौका मिल जाएगा। लेकिन वह आखिरी मौका ही होना चाहिए, यह सुनिश्चित करना होगा
हमें पता है कि किस सरकारी, गैर-सरकारी महकमें में किन-किन आधारों पर काली कमाई होती है। उनपर शिंकजा कसने से काली कमाई रोकी जा सकती है। ले किन इस सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि कानून का सरलीकरण कर लूपहोल्स को खत्म किया जाए
ब्लैक मनी का अब रंग बदल रहा है। उसका लाइसेंस-परमिट से कोई लेनादेना नहीं है। उसकी जड़ में अब टैक्स चोरी ही नहीं है। कैश के रूप में अब उसे बिस्तर के नीचे नहीं रखा जाता है। भारत का काला धन अब ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम का हिस्सा है। कुछ पैसे वापस लौटकर शेयर बाजार में लग रहे हैं तो कोई ड्रग ट्रेड का फाइनेंस कर रहा है। कुछ पैसे दूसरे गैरकानूनी धंधों में भी लग रहे हैं। वैसे भी गैर कानूनी पैसा गैर कानूनी धंधे में ही लगेगा ना!
ब्लैक मनी का रंग बदल रहा है। यह मैं इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि सरकार को यह जानकारी है कि किसकी काली कमाई कहां जमा है। कैबिनेट के फेरबदल के बाद प्रधानमंत्री ने खुद कहा था कि विदेशों में जमा काले धन के बारे में सरकार को जानकारी है। अब वित्तमंत्री ने भी यह बात दुहराई है। वित्तमंत्री ने सरकार की ओर से सफाई दी कि काले धन की जानकारी है लेकिन उन सूचनाओं को जनता के सामने फिलहाल नहीं रखा जा सकता है। मामला दूसरे देशों के साथ संधियों का है। कई देशों ने ब्लैक मनी की जानकारी हमें इस शर्त के साथ दी है कि उनका खुलासा पब्लिक डोमेन में हो। वित्तमंत्री ने इस बात का भी खुलासा किया कि जैसे ही उन जानकारियों के आधार पर लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी सबको पता चल जाएगा। डबल टैक्सेशन की बात होती है। मतलब यह कि अगर कोई व्यक्ति एक देश में अपनी आमदनी पर टैक्स दे देता है तो फिर उसे दूसरे देश में उसी आमदनी पर टैक्स देना पड़े। सरकार की मजबूरी सिर आंखों पर। जानकारी को गोपनीय रखने की मजबूरी है तो हमें उससे परहेज नहीं है। जानकारी बांट दी जाए लेकिन काली कमाई करने वालों पर कोई कार्रवाई हो यह तो कोई नहीं चाहता। हम तो बस यही चाहते हैं कि काली कमाई पर रोक लगे और ऐसी कमाई करने वालों पर सख्त से सख्त एक्शन हो। लेकिन मेरी एक और शंका है। काली कमाई करने वालों के बारे में चूंकि जानकारी कुछ ही लोगों के पास है इसलिए खतरा बढ़ जाता है कि कार्रवाई में भेदभाव हो। किसी की काली कमाई सफेद हो जाए और वह किसी जांच के दायरे में भी नहीं आए क्योंकि वह किसी शक्तिशाली < आदमी का पसंदीदा है। लेकिन कोई दूसरा बिना किसी जांच के ही नप जाए, एक्शन लेते वक्त इस तरह की सोच से परहेज रखना होगा। इसका मतलब यह कतई नहीं कि मुझे सरकारी तंत्र पर भरोसा नहीं है। मैं कोई निहिलिस्ट नहीं हूं। तंत्र पर पूरा भरोसा है लेकिन तंत्र चलाने वालों के अपने चहेते हो सकते हैं जिनको बचाने की अतिरिक्त कोशिश हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो ब्लैक मनी ट्रैक करना तो दूर, आगे से काला धन जमा हो इसकी भी कोशिश कभी भी सार्थक नहीं हो पाएगी। वैसे उम्मीद की किरण यह है कि सुप्रीम कोर्ट मामले पर नजर रखे हुए है। गुरुवार को भी उच्चतम न्यायालय ने सरकार को इस मामले में फटकार लगाई है। कोर्ट का कहना है कि जानकारी के बावजूद लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। और पूरा देश भी यही जानना चाहता है। जानकारी के अभाव में आरोपी बचते रहें यह तो समझा जा सकता है, लेकिन पूरी फाइल तैयार हो और फिर भी लोग खुलेआम घूमते रहें, यह बात तो बिल्कुल हजम नहीं होती है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों का करीब 462 अरब डॉलर विदेशी बैंकों में जमा है। दूसरे अनुमानों के मुताबिक यह रकम एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। मतलब यह कि अलग-अलग अनुमानों के मुताबिक ब्लैक मनी देश की जीडीपी का एक तिहाई से लेकर उसके बराबर तक है। इतना ही नहीं, देश के कुल काले धन का 72 फीसद विदेशी बैंकों में ही जमा है। मतलब यह कि बाकी 28 फीसद कैश या बेनामी प्रॉपर्टी के रूप में देश में है। चौंकाने वाली बात यह है कि सिस्टम में ब्लैक मनी का बोलबाला आर्थिक उदारीकरण के बाद बढ़ा है। अनुमान है कि 61 साल में इकट्ठा हुए काले धन का करीब 70 परसेंट पिछले 20 सालों की देन है। मतलब यह कि 1991 के बाद लाइसेंस-परमिट राज तो खत्म हो गया लेकिन इसी के साथ भ्रष्ट लोगों की काली कमाई भी बढ़ गई। गौरतलब है कि 1991 के बाद टैक्स दरों में भारी कमी आई है। जो इनकम टैक्स की पीक दर कभी 98 फीसद हुआ करती थी वह अब घटकर महज 30 फीसद रह गई है। इसलिए यह कहना कि टैक्स की ऊंची दर की वजह से सिस्टम में काला धन इकट्ठा हुआ, सही नहीं है। उदारीकरण से ब्लैक मनी का क्या लेना-देना है? लेना-देना है। 1991 के बाद आयात-निर्यात के नियमों में ढील दी गई। इसी के साथ शुरू हुआ एक्सपोर्ट- इंपोर्ट की कीमतों को घटा-बढ़ाकर बताने का खेल। और आज ब्लैक मनी का यह सबसे बड़ा जरिया बन गया है। सवाल यह है कि ब्लैक मनी के आतंक से छुटकारा कैसे पाया जाए। एक थ्योरी है कि 1997 की तर्ज पर एक और एमनेस्टी स्कीम लाई जाए। करीब तेरह साल पहले वीडीआईएस के जरिए करीब पौने पांच लाख लोगों ने अपना काला धन सफेद बनाया। सरकार को टैक्स के रूप में करीब 10,500 करोड़ रुपये मिले भी। लेकिन फिर क्या हुआ? क्या काली कमाई करने वालों पर रोक लगी? उल्टे समय से टैक्स भरने वालों को कोफ्त हुई। अगर समय से टैक्स भरने वाले भी कानूनी शकिं जे से बच जाते हैं तो फिर समय से टैक्स भरने का फायदा ही क्या। लेकिन मेरा मानना है कि वीडीआईएस की तर्ज पर एक और स्कीम लाने का फायदा होगा। सरकारी खजाना भर जाएगा और काली कमाई करने वालों को एक आखिरी मौका मिल जाएगा। लेकिन वह आखिरी मौका ही होना चाहिए, यह सुनिश्चित करना होगा। इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि ब्लैक मनी पैदा करने वाली फैक्ट्री की पहचान हो और उसे खत्म किया जाए। हमें सालों से पता है कि आयात-निर्यात में घपला होता है। पहले कस्टम की दर ज्यादा थी तो टैक्स की चोरी होती थी। और कस्टम अधिकारियों के पास करोड़ों की काली कमाई होती थी। कस्टम की दरें कम हुई तो आयात-निर्यात की वैल्यू बताने में घपला शुरू हो गया। अब इसपर लगाम लगाने की जरूरत है। इसी तरह हमें पता है कि किस सरकारी, गैर-सरकारी महकमें में किन-किन आधारों पर काली कमाई होती है। उनपर शिंकजा कसने से काली कमाई रोकी जा सकती है। लेकिन इस सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि कानून का सरलीकरण कर लूपहोल्स को खत्म किया जाए। हमें यह याद रखना होगा कि काली कमाई सही कमाई करने वालों के सामने स्पीड ब्रेकर खड़ा करती है। तेजी से तरक्की करने के लिए स्पीड ब्रेकर को खत्म करना ही होगा।



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