दक्षिण भारत वाहन के कलपुर्जो के लिए अब एक प्रमुख उत्पादन केंद्र बन गया है। भारत की 728 कल-पुर्जे निर्माता कंपनियों में 250 चेन्नई-होसुर-बेंगलुरू क्षेत्र में हैं और 35 फीसदी कलपुर्जो का उत्पादन करती हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), जापान एक्स्टर्नल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (जेट्रो) और ऑटोमोटिव कम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) द्वारा वाहनों के कलपुजरें की खरीदारी पर एक सेमिनार में विशेषज्ञों ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जापानी कंपनियां लगातार वाहनों के सस्ते उत्पादन केंद्रों की खोज करती रहती हैं और जापानी मुद्रा का अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मूल्य भी बढ़ रहा है। चेन्नई में जेट्रो के महानिदेशक शिन्या फुजी ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि उनके सर्वेक्षण के मुताबिक 86 फीसदी जापानी कंपनियां भारत में अपने कारोबार का विस्तार कर सकती हैं। उनमें 83.5 फीसदी कंपनियां दक्षिण भारत से खरीदारी बढ़ाएंगी। भारतीय कारोबारियों के लिए यह एक बेहतरीन अवसर होगा। उकाल ऑटो की प्रबंध निदेशक गायत्री श्रीराम ने कहा कि अभी सस्ता उत्पादन करने वाले देशों से लगभग 65 अरब डॉलर के कलपुजरें की खरीदारी हो रही है, जिसके वर्ष 2015 तक बढ़कर 375 अरब डॉलर हो जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि भारत में तैयार होने वाले वाहन के कलपुर्जो में 20 फीसदी का उत्पादन तीन कंपनियों द्वारा किया जाता है। इनमें टीवीएस, राने और अमलगेमेशन शामिल हैं। इन तीनों का मुख्यालय चेन्नई में है। एसीएमए के दक्षिणी क्षेत्र के अध्यक्ष हरीश लखमन ने कहा कि भारत में वाहनों का उत्पादन 2009 की तुलना में 2020 में बढ़कर तीन गुना हो जाएगा। भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्री कंपनियां अपना विस्तार कर रही हैं। यह भारत के 22 अरब डॉलर के वाहन संबंधी कलपुर्जो के बाजार के लिए एक अच्छी खबर है। उन्होंने कहा कि 2020 तक यह उद्योग बढ़कर 110 अरब डॉलर का हो जाएगा। उस समय तक इस क्षेत्र का निर्यात बढ़कर 26 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। बकौल लखमन टाटा मोटर्स की नैनो कार बनने के कारण कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों ने 37 पेटेंट के लिए आवेदन किया है। इंडिया पिस्टंस के समूह प्रौद्योगिकी निदेशक आर. महादेवन ने कहा कि दक्षिण में ये कंपनियां तेजी से विस्तार कर रही हैं।
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