Saturday, January 1, 2011

2जी लाइसेंस रद हुआ तो बैंकों की होगी दुर्गति

देश के वित्तीय ढांचे पर रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की ताजा रिपोर्ट ने ऐसे कई मुद्दों पर से पर्दा हटा दिया है, जिन पर वित्त मंत्रालय भी अभी खुलकर नहीं बोल रहा है। आरबीआइ ने साफ कर दिया है कि अगर 2जी लाइसेंस पाने वाली टेलीकॉम कंपनियों के लाइसेंस रद होते हैं तो उसका सीधा असर इन ऑपरेटरों को वित्त उपलब्ध कराने वाले बैंकों की सेहत पर पड़ेगा। केंद्रीय बैंक ने रियल एस्टेट क्षेत्र को आंख मूंदकर कर्ज देने वाले बैंकों को भी चेताया है। 2जी घोटाले को लेकर पहली बार राय जाहिर करते हुए आरबीआइ ने कहा है कि सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक स्पेक्ट्रम आवंटन से देश को काफी घाटा हुआ है। ऐसे में अगर सरकार स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद करती है तो इससे बैंकों के कर्ज भुगतान पर काफी असर पड़ेगा। सरकार ने ही इन कंपनियों को दूरसंचार विभाग से प्राप्त 2जी लाइसेंस के आधार पर बैंकों से कर्ज लेने का अधिकार दिया है। मोटे तौर पर इन कंपनियों को बैंकों की तरफ से 20 से 30 हजार करोड़ रुपये की राशि दी गई है। इस घोटाले की जांच फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआइ कर रही है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह उजागर किया है कि शेयर बाजार में सूचीबद्ध कुछ कंपनियों को कर्ज देने वाले बैंकों की स्थिति भी आने वाले दिनों में गड़बड़ा सकती है। रिपोर्ट में बीएसई में सूचीबद्ध 25 कंपनियों के एक समूह का उदाहरण दिया है। इस सूची में 20 कंपनियां ऐसी हैं, जिनका कर्ज-इक्विटी अनुपात सर्वाधिक है। शेष पांच कंपनियां ऐसी हैं जिनका नेटवर्थ 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा है। रिपोर्ट में माना गया है कि टेक्सटाइल और कॉटन कंपनियां कर्ज लौटाने के मामले में बैंकों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं। इन कंपनियों को 68 फीसदी कर्ज सरकारी बैंकों ने और 20 फीसदी निजी बैंकों ने दिए हैं। इन्हें कर्ज देने वाले बैंकों को सतर्क होने की सलाह दी गई है। आरबीआइ की रिपोर्ट रियल एस्टेट क्षेत्र को दिल खोलकर कर्ज देने वाले बैंकों के लिए भी चेतावनी है। दरअसल, रिजर्व बैंक ने यह चेतावनी बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए दी है। पुराने कर्जे को बट्टेखाते में डालने और पुनर्गठन के बावजूद फंसे कर्जे की स्थिति बदतर होती जा रही है। इससे बैंकों की शुद्ध गैरनिष्पादक परिसंपत्तियों यानी एनपीए का अनुपात सितंबर, 2010 तक मार्च, 2010 की तुलना में 2.39 से बढ़कर 2.58 फीसदी हो गया है। इस अवधि में विदेशी बैंकों के शुद्ध एनपीए में 225 और सरकारी व निजी बैंकों के फंसे कर्ज में 50-50 फीसदी की वृद्धि हुई है।

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