Saturday, January 15, 2011

अर्थनीति पर हावी राजनीति

देश के शेयर बाजारों का व्यवहार अच्छे-अच्छे जानकारों को भी समझ नहीं आ रहा। नवंबर के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े ही नहीं, कई सारी ऐसी चीजें अब एक-एक कर बाहर आ रही हैं, जो बाजार के डर को सही साबित करती हैं। अचानक मांग गिरने से औद्योगिक उत्पादन की विकास दर पिछले साल की इसी अवधि के 11.3 की तुलना में 2.7 फीसदी ही रह गई। खनन क्षेत्र में भी बड़ी गिरावट है-वह 10.7 फीसदी से गिरकर छह फीसदी पर आ गई है। उधर रिजर्व बैंक अपनी नई समीक्षा के बाद महत्वपूर्ण दरें बढ़ाने जा रहा है-यह भी तय-सा है। पर संभवत: सबसे ज्यादा फर्क विदेशी निवेशकों के अचानक हाथ झाड़ लेने की प्रवृत्ति से आया है। विदेशी निवेश आज की हमारी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी सचाई ही नहीं, एक बल भी है। विदेशी निवेशकों के लिए भी मंदी से जूझती दुनिया में भारत का न्यूनतम प्रभाव झेलना और आराम से ऊंची विकास दर पाना वह आकर्षण है, जिसके चलते वे बड़ी मात्रा में निवेश करते जा रहे थे। माना जाता है कि 2 जी स्पेक्ट्रम समेत कई घोटालों का सच सामने आने और रोज-रोज छापे-पूछताछ से यह सवाल सबके मन में उठने लगा है कि भारत में कितना कुछ वास्तविक है, कितना गलत। और अगर एक घोटाला पौने दो लाख करोड़ का है, खरबों डॉलर स्विस बैंक में रखे हैं, तो यह अर्थव्यवस्था चल कैसे रही है? जहां आम आदमी के लिए ये चीजें थोड़ा विश्वास, थोड़ा अविश्वास लिए हो सकती हैं, वहीं निवेशक चीजें साफ हुए बगैर पैसा लगाने से डरें, तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं। लेकिन विश्व व्यापार, शेयर बाजार, ई-ट्रेडिंग जैसी मायावी चीजों और वास्तविक अर्थव्यवस्था में सीधा रिश्ता तो है ही। निवेश रुके, तो मांग भी कम हो जाए और उत्पादन गिर जाए, यह वास्तविकता है। अब ऐसे में अगर सरकार और रिजर्व बैंक मौद्रिक नीतियों में सख्ती लाकर मुद्रास्फीति और महंगाई पर अंकुश लगाने का प्रयास करेंगे, तो जाहिर तौर पर मांग व उत्पादन और भी ज्यादा प्रभावित होगा। निश्चित रूप से आर्थिक प्रशासन में जुटे लोगों के लिए ये मुश्किल भरे फैसले होंगे और उन्हें राजनीतिक लाभ-हानि की परवाह छोड़कर फैसले करने चाहिए। सौभाग्य से अब भी हमारी अर्थव्यवस्था के लगभग सारे बुनियादी संकेत अच्छे हैं। निर्यात, कृषि, उत्पादन, सेवा क्षेत्र का विकास और औद्योगिक उत्पादन में भी पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन की रफ्तार पर्याप्त तेज है। इसलिए उन्हें स्वस्थ ढंग से सोचते हुए प्रभावी और उचित निर्णय लेने में दिक्कत नहीं आनी चाहिए। उद्योग जगत और शेयर बाजार की चिंताएं अपनी जगह सही होंगी, पर उन्हें सही फैसलों से आश्वस्त किया जा सकता है।


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