Sunday, January 16, 2011
महंगाई पर अंकुश में सरकार नाकाम
पिछले तीन साल में इकॉनामी से जुड़ी सबसे बड़ी खबर यही है कि आम आदमी का जीना दूभर होता जा रहा है। खाने पीने के अनाज और अन्य वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। महंगाई पर रोकथाम के लिए सरकार की तमाम कोशिशों का कोई सार्थक असर नहीं दिखा है, उल्टे सरकार की नीतियों के चलते महंगाई बढ़ती जा रही है। मसलन, पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों को सरकार ने जब डिरेगुलेट करने की कोशिश की तब महंगाई बढ़ी ही। बीते एक साल से वित्तमंत्री से लेकर नीचे के तमाम विशेषज्ञ और सरकार के प्रवक्ता कह रहे हैं कि खाद्यान्न की कीमतों की वृद्धि दर कुछ ही महीने में 6 फीसद के नीचे आ जाएगी। लेकिन नियमित समयांतराल पर खाद्यान्न की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। बढ़ती हुई अनाज की कीमतों के चलते महंगाई एक सशक्त राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है, और इससे सरकार की सेहत पर भी असर पड़ने लगा है। अब तक सरकार महंगाई से अंकुश पाने के लिए अपनी मौजूदा आर्थिक नीतियों पर ज्यादा भरोसा करती दिखी थी, जिसके चलते रोजगार पर भी असर पड़ा है। मौजूदा हालात के चलते रिजर्व बैंक को अपनी ब्याज दर बढ़ानी पड़ी ताकि महंगाई पर अंकुश लगाना सम्भव हो सके। लेकिन ऐसी कई वजहें हैं जो बताती हैं कि महंगाई परंकुश पाने का यह उपयुक्त तरीका नहीं है। पिछले एक साल से अनाज की कीमतें लगातार बढ़ी हैं और महंगाई दर 20 फीसद के आसपास पहुंच गयी थी। नवम्बर, 2009 से जब महंगाई ने तेजी से बढ़ना शुरू किया था तब कहा जा रहा कि खरीफ फसल की कम पैदावार और औसत मानसून के चलते महंगाई बढ़ रही है। इसके बाद महंगाई की दर लगातार बढ़ती रही और औसतन 15 फीसद के आसपास रही। इस बार खरीफ की फसल अच्छी भी हुई, लेकिन उससे भी महंगाई पर काबू पाने में मदद नहीं मिली है। देश के तटीय इलाकों में अच्छी बरसात भी हुई है लेकिन लेकिन पूर्वी क्षेत्र में कम बारिश से कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ। यह तो तय है कि बरसात और खेती से अनाज की कीमतों पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए 2007 का साल देखें, जब खरीफ और रबी फसल बहुत अच्छी हुई थी तब महंगाई की दर काबू में थी। 2009 में खरीफ की फसल अच्छी नहीं हुई और रबी की फसल भी औसत ही थी, इसकी वजह से महंगाई लगातार बढ़ी है। इससे मौजूदा साल में महंगाई दर के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। पहले चार महीने में तो तस्वीर में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। अभी मिल रहे संकेतों के मुताबिक इस साल खरीफ की फसल बेहतर होगी, इससे अनुमान लगाया जा सकता है महंगाई दर कम कम होगी। एक मात्र खरीफ फसल की पैदावार ही बता सकती है कि महंगाई की दर 6 फीसद से कम होगी या नहीं। इसका मतलब यह है कि सरकार की मौद्रिक नीतियों से महंगाई पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सरकार अपनी कोशिशें कम कर दे, या फिर खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने में देर करे। क्योंकि मौजूदा समय में आम लोगों के लिए पेट भरना काफी मुश्किल हो गया है। दिहाड़ी मजदूरों को जो मजदूरी मिलती है, उसमें महंगाई दर की रफ्तार से बढ़ोतरी नहीं हुई है। यानी सरकार जो गरीबों की मदद के लिए आर्थिक अनुदान मुहैया करा रही है, उसे जारी रखना होगा। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत एक बड़े दायरे को भोजन की परवाह भी उसे ही करनी होगी। इन सबके अलावा एक और बात ध्यान देने की है। भारतीय खाद्यान्न बाजार पर अंतरराष्ट्रीय कीमतों का असर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य बाजार में इस बात की पूरी आशंका है कि आने वाले दिनों में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ेंगी। उदाहरण के लिए गेहूं के शिकागो बाजार पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले तीन महीने में शिकागो में गेहूं की कीमत में 70 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इसके अलावा स्पेकुलेटिव एक्टिविटी (वायदा कारोबार) के चलते भी जरूरत की चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। यह काफी हद तक व्यापारियों की मिलीभगत से होता है। मसलन, गेहूं में सरकार ने वायदा कारोबार को मंजूरी दे दी है, जिसके चलते भी कीमतों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। महंगाई बढ़ाने में एक अहम योगदान पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों का भी है। एक तो अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत, दूसरी स्थानीय स्तर पर वायदा कारोबार और तीसरी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से महंगाई की दर नियंतण्रमें नहीं आ रही है। इसके लिए निश्चित तौर पर सरकार को कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने पर जोर देना होगा। वायदा कारोबार को नियंत्रित करना होगा और पैसे के प्रवाह पर भी अंकुश लगाने वाली नीतियां बनानी होंगी।
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