चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान घरेलू बैंकों की कुल जमा राशि में 14.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह वित्त वर्ष में 20 फीसदी वृद्धि के सरकारी लक्ष्य से काफी कम है। पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के दौरान कुल जमा में 21.1 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई थी। बैंकों की कर्ज और जमा पर आरबीआइ की तिमाही रिपोर्ट क्वाटरली स्टैटिक्स ऑन डिपॉजिट्स एंड क्रेडिट ऑफ शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक्स-जून 2010 में कहा गया है कि बैंकों का कर्ज उठाव अप्रैल-जून अवधि में 20.4 फीसदी बढ़ा, जो पिछले वर्ष की समान तिमाही में 14.3 फीसदी था। रिपोर्ट के मुताबिक जून के अंत में कुल जमा 45,40,130 करोड़ रुपये रहा, जबकि कर्ज 33,56,757 करोड़ रुपये था। व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के कारण कर्ज उठाव में वृद्धि दर्ज की गई है। अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 8.9 फीसदी रही, जो सरकार की उम्मीद से कहीं ज्यादा है। बहरहाल, समीक्षाधीन अवधि के दौरान मुद्रास्फीति दबाव और मुद्रास्फीति के दोहरे अंक में बने रहने के कारण केंद्रीय बैंक ने मुद्रा की लागत बढ़ाने के लिए रेपो और रिवर्स रेपो में वृद्धि की। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान कर्ज और जमा मामले में 20 फीसदी वृद्धि का लक्ष्य रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में अप्रैल-जून के दौरान कुल जमा वृद्धि 15.6 फीसदी रही जो, पूर्व वित्त वर्ष की समान अवधि में 18.9 फीसदी थी। वहीं, शहरी इलाकों में बैंक जमा में 15.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जो पूर्व वर्ष की समान अवधि में 22 फीसदी है। हालांकि, समीक्षाधीन तिमाही के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों द्वारा कर्ज वितरण 18.3 फीसदी बढ़ा, जबकि पूर्व वर्ष में यह 15.1 फीसदी था। शहरों के मामले में यह वृद्धि 20.6 फीसदी थी, जो पूर्व वर्ष की समान तिमाही में 19 फीसदी थी। देश का चालू खाते का घाटा (सीएडी) जुलाई-सितंबर में 72 प्रतिशत के इजाफे के साथ 15.8 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। पूंजीगत लेन-देन को छोड़कर दैनिक व्यवहार में देश से बाहर आमदनी के प्रवाह को चालू खाते का घाटा माना जाता है। जुलाई-सितंबर के दौरान ऊंचे आयात के कारण चालू खाते के घाटे में वृद्धि हुई। रिजर्व बैंक द्वारा भुगतान संतुलन (बीओपी) पर जारी आंकड़ों के अनुसार, आर्थिक स्थिति में सुधार और कुछ सेवाओं के लिए विदेशों में अधिक भुगतान से सीएडी में वृद्धि हुई है। इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में चालू खाते का घाटा 9.2 अरब डॉलर रहा था। पिछले वित्त वर्ष के दौरान चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 2.9 प्रतिशत रहा था। विशेषज्ञों का मानना है कि इस वित्त वर्ष के दौरान यह थोड़ा ज्यादा रहकर तीन प्रतिशत रह सकता है। अगर यही रुख आगे भी जारी रहता है, तो चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का तीन प्रतिशत से ज्यादा रह सकता है।
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