Sunday, January 23, 2011

गरीबों का उपहास


महंगाई को लेकर देश में हाहाकार मचा है। आम जनता महंगी दाल, सब्जी, तेल, दूध, चीनी, पेट्रोल से हलकान है। खाने की थाली से सब्जियां गायब हो रही हैं। जिन राजनेताओं पर महंगाई से मुक्ति दिलाने की जिम्मेदारी है वे गरीबों की खिल्ली उड़ा रहे हैं। वे समस्या के प्रति उदासीन हैं और मात्र सत्ता में बने रहने अथवा सत्ता प्राप्त करने की चिंता में लगे हैं। राजनेताओं ने महंगाई को आपसी द्वंद्व का औजार बना दिया है। कैसी विडंबना है कि सरकार महंगाई से मुक्ति दिलाने के बजाय तीन वषरें से महंगाई के कारणों की खोज ही कर रही है। प्रधानमंत्री और कांग्रेस के युवराज के गरीबों के साथ भौंडे मजाक जारी हैं। कोई कह रहा है कि जनता की खुराक बढ़ने के कारण महंगाई बढ़ गई है तो कोई इसके लिए गठबंधन दलों को दोषी ठहरा रहा है। कृषि मंत्री सब्जियों की मूल्य वृद्धि को अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते। तो क्या मंत्रिमंडल में अब सब्जी, प्याज मंत्री भी हुआ करेंगे? महंगाई को लेकर राजनेताओं द्वारा चलाया जा रहा यह लाफ्टर शो बंद होना चाहिए। सत्ता पक्ष भुलावे में है। वह यह समझने की गलती न करे कि सरकार जिस लूट-खसौट और भ्रष्टाचार में लगी है, उसे देश देख नहीं रहा है। पहले तो सरकार ने माना ही नहीं कि महंगाई बढ़ रही है। अब जब सरकार ने महंगाई के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है तो कभी जनता और कभी राज्य सरकारों पर दोषारोपण करना शुरू कर दिया। विपक्ष हैरान है कि जब पहले प्याज पर सरकार गिर जाती थी तो फिर तेल, दाल, पेट्रोल, दवा, सब्जी के दामों में आग लगने पर भी वर्तमान सिहंासन क्यों नहीं हिल रहा? उसे अपनी अकर्मण्यता दिखाई नहीं देती। कितने आश्चर्य की बात है चरम महंगाई के बावजूद विपक्ष ने न तो देशव्यापी आंदोलन चलाकर मनमोहन सरकार से इस्तीफे की मांग की और न ही जेल भरो आंदोलन चलाया। महंगाई पर हंगामा कर लेने को ही किसी भी दृष्टि से विपक्ष की उत्तरदायी भूमिका नहीं माना जा सकता। सच्चाई यह है कि देश में सरकारों ने महंगाई से मुक्ति के लिए दीर्घकालिक या तात्कालिक प्रयास नहीं किए। उत्तरदायी राष्ट्र के नाते हमारा दायित्व है कि हम महंगाई खत्म करने के लिए गंभीरतापूर्वक योजना बनाएं। दीर्घकालिक योजना के तहत देश की पहली आवश्यकता है कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर पूर्ण ध्यान केंद्रित करें। इसके अलावा लाखों हेक्टेयर बंजर भूमि पर वृक्षारोपण, बड़े पैमाने पर तालाब, जलाशयों का निर्माण कराकर कमलगट्टा, सिंघाड़ा, मत्स्य पालन को प्रोत्साहन दे। सरकार को देश में श्वेत क्रांति को ग्रामीण जीविकोपार्जन का आधार बनाना चाहिए। वनों और पशुओं की अंधाधंुध कटाई पर रोक लगाकर मांस, चमड़ा निर्यात से डॉलर कमाने का लोभ घटाए। आलू, प्याज, हरी सब्जी, दूध उत्पादन की ठोस नीति एवं कार्यक्रम बनाए। इसी क्रम में 10 लाख की जनसंख्या वाले नगरों के आस-पास की कुछ किलोमीटर भूमि को अनिवार्य सब्जी क्षेत्र घोषित करे। इससे प्रचुर मात्रा में सब्जी उत्पादन होगा, ढ़ुलाई की दूरी न होने के कारण भाड़ा, पेट्रोल, समय की बचत होगी। किसान सब्जी बेचकर अच्छा लाभ कमाएंगे। शहरों के आस-पास की 8-10 किलोमीटर की भूमि सब्जी क्षेत्र घोषित होने से पर्यावरण भी शुद्ध होगा। सरकार वस्तुओं के मूल्य निर्धारित करे, मूल्य नियंत्रण के लिए विद्यमान कानूनों द्वारा जमाखोरों से सख्ती से निपटे। विपक्ष सहित देश भर के बुद्धिजीवियों से सुझाव आमंत्रित करे। सकारात्मक सुझावों पर अमल करे। लगता है कि सरकार में महंगाई घटाने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। इसीलिए यह महंगाई घटाने के लिए ठोस कदम उठाने के बजाए जनता को ही इसकी जिम्मेदार ठहराकर जैसे उसे चिढ़ा रही है। बार-बार महंगाई बढ़ाकर जनता को इसकी आदत डाली जा रही है। इसीलिए अब न तो महीने में दो बार पेट्रोल के दाम बढ़ने पर जनता आंदोलित होती है और न ही प्याज की कीमतों पर। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)


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