लेखक आमदनी बढ़ने पर महंगाई के बुराई से अच्छाई में तब्दील होने की उम्मीद जता रहे हैं ….
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने देश के समक्ष तीन चुनौतियां बताई हैं। ईंधन तेल व खाद्य पदाथरें के बढ़ते दाम तथा विदेशी निवेश का अति प्रवाह। वित्त मंत्री के अनुसार वर्तमान महंगाई के ये प्रमुख कारण हैं। इस महंगाई को अधिकतर विद्वान समस्या के रूप में देख रहे हैं, परंतु मैं इन तीनों श्चोतों से बढ़ रही महंगाई का स्वागत करता हूं। ईंधन तेल के दाम में वृद्धि का कारण विकासशील देशों की बढ़ती विकास दर है। पश्चिमी देश पिछले तीन वषरें से मंदी से घिरे हुए हैं। इनकी तेल की खपत धीमी है। इस धीमेपन के बावजूद तेल के दाम में वृद्धि हो रही है चूंकि विकासशील देशों की मांग बढ़ रही है। यह वृद्धि भारत के लिए खासतौर पर लाभदायक है। तेल के प्रमुख निर्यातक देश पश्चिम एशिया में हैं। तेल से अधिक आय होने से इन देशों से भारतीय श्रमिकों की मांग बढ़ रही है। इनको हुई आय का एक हिस्सा विदेशी निवेश के रूप में हमें मिल रहा है। समग्र रूप से विकसित देश तेल के आयातक हैं जबकि विकासशील देश निर्यातक हैं। अत: तेल की मूल्य वृद्धि से विकासशील देशों का पलड़ा भारी होता है। इन कारणों से तेल के ऊंचे मूल्य का स्वागत करना चाहिए। पिछले वर्ष में हमारे शेयर बाजार में विदेशी निवेश भारी मात्रा में आया है। महंगाई बढ़ने का यह भी एक कारण है। विदेशी निवेश से मिली रकम का उपयोग भारतीय कंपनियों द्वारा निवेश करने के लिए किया जाता है। भारतीय कंपनी अपने शेयर को ऊंचे दाम पर जारी करती है, चूंकि विदेशी निवेशक इन शेयरों को खरीदने को तत्पर हैं। इस रकम का उपयोग कंपनी द्वारा नई फैक्ट्री आदि स्थापित करने में किया जाता है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था में सीमेंट, स्टील, मशीनरी एवं श्रम की मांग बढ़ती है। साथ ही दाम और महंगाई भी बढ़ती है। यह महंगाई भी सुखद है चूंकि इसकी जड़ में बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे स्थापित होना है। विदेशी निवेश के इस सार्थक पहलू के बावजूद सतर्क रहने की जरूरत है। विदेशी निवेशक शेयर बाजार में बिकवाली करके हमारी अर्थव्यवस्था को डगमगा सकते हैं। 2008 में वैश्विक संकट के समय विदेशी निवेशकों ने ऐसा ही किया था। सेंसेक्स 21,000 के शीर्ष से टूटकर 8,000 पर जा गिरा था। 2008 की तरह 2011-12 में पुन: संकट उत्पन्न होने की पूरी आशंका है। इस दुष्परिणाम से बचने के लिए विदेशी निवेश की वापसी पर अंकुश लगाना चाहिए। जो पूंजी तीन वर्ष से कम अवधि में वापस जाए उस पर भारी टैक्स लगाना चाहिए। वर्तमान महंगाई का तीसरा एवं प्रमुख श्चोत कृषि उत्पादों जैसे प्याज एवं चीनी के दाम में तीव्र वृद्धि है। यह वृद्धि विस्मित करने वाली है चूंकि इस वर्ष मानसून अच्छा रहा है, गेहूं का भंडार जरूरत से ज्यादा हैं और देश में कृषि उत्पादन पर्याप्त है। फिर भी मूल्यों में वृद्धि का कारण वैश्विक कमी दिखती है। संपूर्ण विश्व में कृषि भूमि का क्षरण हो रहा है। स्पेशल इकोनामिक जोन, रिहायशी इमारतों, हाइवे तथा एयरपोर्ट आदि बनाने के लिए बड़े पैमाने पर भूमि का अधिग्रहण हो रहा है। बायोडीजल के उत्पादन के लिए भी भूमि का उपयोग हो रहा है। अमेरिका में मक्का, ब्राजील में गन्ना एवं भारत में जटरोपा से बायोडीजल बनाया जा रहा है। इससे खाद्य सामग्री के मूल्य बढ़ रहे हैं। साथ-साथ कृषि उत्पादों की खपत का विविधिकरण हो रहा है। पूर्व में अधिकतर जनता केवल दाल-रोटी से अपना पेट भरती थी। अब दूध, फल और सब्जी की मांग बढ़ रही है। इससे प्याज जैसी फसल के दाम बढ़ रहे हैं। वैश्विक दाम में वृद्धि के समानांतर घरेलू दामों में भी वृद्धि हो रही है। मसलन प्याज की फसल इस वर्ष अच्छी हुई है परंतु निर्यात होने से घरेलू दाम बढ़ रहे हैं। प्रतीत होता है कि देश के कृषि बाजार को विश्व बाजार से जोड़ना उचित है। यदि विश्व बाजार में प्याज के दाम 120 रुपये प्रति किलो हैं तो घरेलू बाजार में इसे सस्ता बेचने का औचित्य नहीं है। प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर हम अपने किसानों को विश्व बाजार के ऊंचे दामों का लाभ हासिल करने से वंचित कर रहे हैं। इस नीति का उद्देश्य शहरी मध्यवर्गीय परिवारों को सस्ता माल उपलब्ध कराना मात्र है। यह नीति देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी अहितकर है। किसान को ऊंचे दाम नहीं मिलेंगे तो वह उत्पादन बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखेगा। घटती कृषि भूमि के बावजूद कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि कृषि मूल्य ऊंचे रखे जाएं। कृषि उत्पाद के मूल्य में अनावश्यक उतार-चढ़ाव न हो, इसके लिए विभिन्न फसलों को समर्थन मूल्य देना चाहिए। प्याज का समर्थन मूल्य होता तो किसान उत्पादन अधिक करते और वर्तमान संकट उत्पन्न न होता। वर्तमान महंगाई सुखदायी है। तेल के ऊंचे दाम से विकासशील देशों का पलड़ा भारी हो रहा है। विदेशी निवेश के आगमन से देश में कल-कारखानों का विस्तार हो रहा है। कृषि उत्पादों के दामों में वृद्धि से किसान लाभान्वित हो रहे हैं और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित हो रही है। जिस प्रकार गाड़ी तेज चलाने पर इंजन कुछ गरम हो ही जाता है, उसी प्रकार तीव्र आर्थिक विकास से महंगाई बढ़ रही है। फिर भी स्वीकार करना होगा कि महंगाई से नुकसान तमाम जनता को होता है। आर्थिक विकास का उद्देश्य जनहित है। अत: जनता को हो रहे त्रास को नजरंदाज करना अनुचित है। देश की जनता को तीन भागों में विभक्त करके उन पर पड़ने वाले अलग-अलग प्रभाव के आधार पर इस समस्या का हल खोजा जा सकता है। किसानों के लिए यह महंगाई सुखद है चूंकि उनके माल के दाम बढ़ रहे हैं। शहरी मध्यम वर्ग के लिए महंगाई हानिप्रद है चूंकि इन्हें महंगा माल खरीदना पड़ रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वर्ग की आय आम आदमी की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, अत: इनकी खपत में कुछ कटौती उचित है। समस्या गरीब वेतनभोगी की है। इनके वेतन में वृद्धि कम और माल के दाम में वृद्धि ज्यादा हुई है। दिल्ली में कामवाली की पगार 300 से बढ़कर 350 हुई है, जबकि तुलना में महंगाई ज्यादा बढ़ी है। इस समस्या का हल महंगाई को थाम कर नहीं निकल सकता है। महंगाई को थामने से हम उन तमाम लाभों से वंचित हो जाएंगे जिनकी चर्चा ऊपर की गई है। अत: गरीब की पगार बढ़ाने के जतन करने चाहिए। कामवाली की पगार बढ़कर 500 रुपये हो जाए तो वह 50 रुपये किलो का प्याज खरीद सकेगी। सरकार को चाहिए कि उद्योगों को श्रम सब्सिडी दे, सरकारी ठेकों में ट्रैक्टर के स्थान पर श्रम के उपयोग की शर्त लगाई जाए, श्रम सघन उद्योगों को टैक्स में छूट दे, रोजगार गारंटी कार्यक्रम की पगार 200 रुपये प्रतिदिन करे, इत्यादि। विपक्ष को चाहिए कि वर्तमान महंगाई के सार्थक पक्ष को समझे और महंगाई कम करने के दबाव में देश की हानि न करे। (लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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