वर्ष 2010 आम जनता के लिए महंगाई के लिए याद किया जाएगा तो चालू वर्ष 2011 महंगाई की सौगात लेकर आया है। बीती जुलाई से दिसम्बर के बीच ही केंद्र सरकार ने चार बार पेट्रोल/डीजल के दाम में बढ़ोतरी की जिसका सीधा असर माल ढुलाई पर पड़ा और उत्तर प्रदेश में हर वस्तु औसतन 5 से 10 प्रतिशत महंगी हो गयी। इस बीच उत्पादन लागत में बढ़ोतरी, खाद्य वस्तुओं का अभाव तथा बढ़ती मांग व केंद्रीय एवं राज्य करों में बढ़ोतरी ने भी महंगाई को बढ़ाने में महती भूमिका अदा की। राजधानी लखनऊ, नोएडा, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, मेरठ, आगरा, झांसी, बरेली, मुरादाबाद तथा अलीगढ़ आदि सभी महानगरों में खाद्य वस्तुओं के साथ भवन निर्माण सामग्री में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हो चुकी है। केंद्र के आंकड़े के अनुसार 2010 के आखिरी 6 माह में महंगाई दर 15 से 32 प्रतिशत रही है। इस दौरान पेट्रो मूल्यों में 22 से 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। खाद्य पदाथरे के मूल्य 15 से 20 फीसद व दूध एवं दुग्ध उत्पादोें के दाम 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ गये। गत वर्ष उत्तर प्रदेश में गेहूं, धान, अरहर, उड़द तथा गन्ने का उत्पादन औसतन 15 से 30 प्रतिशत कम रहा। आलू का उत्पादन ज्यादा अवश्य हुआ परंतु उसके रख-रखाव का समुचित प्रबंध न होने और सरकारी उपेक्षा के कारण उन्हें अपना उत्पादन सस्ते में बेचना पड़ा। गत वर्ष जनवरी 2010 में जो आलू Rs 250 से 300 प्रति विक्ंटल था वह जुलाई-अगस्त में Rs1200 से 1500 हो गया। दिसम्बर के अंत तक नयी फसल के आने के बाद भी महंगाई के अन्य प्रभावों से आलू Rs 1000 से 1200 प्रति क्विंटल बना रहा। प्रदेश के गरीबों के लिए आलू भोजन का मुख्य स्रेत है। मध्यम एवं निम्न वर्ग सब्जी के रूप में विभिन्न ढंग से 70 प्रतिशत आलू का ही उपयोग करता है। इसके विपरीत प्याज ने भी गरीबों का जायका बिगाड़ दिया। जुलाई में Rs 5 किलो बिकने वाला प्याज दिसम्बर में Rs100 किलो पर पहुंच गया तो Rs20 किलो बिकने वाला लहसुन Rs 400 किलो हो गया। इसी प्रकार टमाटर Rs 2 प्रति किलो से बढ़कर Rs 45 से 50 प्रति किलो तक पहुंच गया। इसी प्रकार, अन्य सब्जियों के दामों में दोगुनी से तिगुनी बढ़ोतरी हुई जबकि इससे किसानों को उतना लाभ नहीं हुआ जितना कि आढ़तियों की जमाखोरी, मंडियों की बेतहाशा लूट, नगर निगमों एवं पुलिस द्वारा अवैध वसूली तथा प्रशासन की लापरवाही से शहर में स्थानीय स्तर पर चल रही गुंडा वसूली के कारण महंगाई बढ़ी। इन स्थितियों पर राज्य सरकार तथा स्थानीय स्तर पर प्रशासन सख्ती कर महंगाई को नियंत्रित करने का प्रयास कर सकता था परंतु अपने राजनीतिक दांवपेंच में फंसी सरकारों को जनता की इन तकलीफों पर ध्यान देने का समय नहीं रहा। केंद्रीय कृषिमंत्री का रोल भी देशव्यापी महंगाई के लिए काफी जिम्मेदार रहा। चीनी के दामों में बढ़ोतरी के साथ खाद्य पदाथरे, गेहूं के आयात, प्याज की कमी एवं जमाखोरी आदि मुद्दों पर कृषि मंत्री के बयानों ने सटोरियों एवं जमाखोरों को संरक्षण दिया। कृषि उत्पादन लागत लगातार बढ़ती जा रही है परंतु किसानों को उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। खाद्य उत्पादन कम होने का यह मुख्य कारण है। गत वर्ष गन्ने की कमी से किसानों को प्रति क्विंटल Rs 300 से भी ज्यादा मूल्य मिला परंतु चालू वर्ष में उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें Rs160-165 प्रति विक्ंटल का ही भुगतान कर रही हैं। यह स्थिति तब है जब गन्ना उत्पादन की लागत 25 से 30 प्रतिशत बढ़ गयी है। इस बीच, चीनी के दाम में Rs एक हजार विक्ंटल की बढ़ोतरी रही। इसमें बिजली,पानी, खाद, बीज, कीटनाशक तथा श्रम मूल्य में भी बड़े स्तर पर बढ़ोतरी हुई। यही स्थिति गेहूं, धान, अरहर तथा चने के दामों की भी रही। गेहूं Rs 900 से 1000 प्रति विक्ंटल बिका परंतु आटा आजकल Rs1800 से 2300 प्रति विक्ंटल बिक रहा है। डेढ़ साल पहले तक औसतन Rs 3000 से 3500 प्रति क्विंटल बिकने वाली दाल अरहर के मूल्य तो अक्टूबर-नवम्बर में Rs 100 प्रति क्विंटल तक पहुंच गये। महंगाई ने कृषि उत्पादन एवं भवन निर्माण जैसे क्षेत्र को काफी प्रभावित किया। राज्य कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी से भी महंगाई को बल मिला। वेतन बढ़ने की घोषणा के साथ ही आवश्यक वस्तुओं के दाम बाजार में अचानक बढ़े ही, मकानों का किराया 20 से 25 प्रतिशत महंगा हो गया। इससे गरीब एवं मध्यम वर्ग का आदमी ज्यादा परेशान हुआ क्योंकि उसकी आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। फुटकर बाजार में महंगाई का असर 200 से 500 प्रतिशत तक ऊपर जा पहुंचा। भवन निर्माण सामग्री के दामों में वृद्धि केंद्र सरकार की नीतियों के चलते हुई। सीमेंट एवं लोहे के मूल्य में Rs15 से 25 प्रतिशत रही तो माल भाड़े के कारण इसकी लागत और बढ़ गयी। उत्तर प्रदेश में सीमेंट की सरकारी निर्माण कायरे में ज्यादा मांग होने के कारण इसके दाम में प्रति बोरी Rs 100 से 125 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी रही। इसके साथ ही बालू, मौरंग तथा ईट पर राज्य सरकार के करों में बढ़ोतरी, खनन ठेकों पर माफियों के कब्जे तथा अवैध वसूली से भी इनके दामों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई। इसकी तुलना में श्रमिकों की मजदूरी में उस गति से तेजी नहीं आयी परंतु आम आदमी के लिए आवास निर्माण कार्य को 25 से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी की मार झेलनी पड़ रही है। इस अवधि में केंद्र एवं राज्य सरकार ने बयानबाजी के अलावा कोई ठोस पहल नहीं किया। जमाखोरी तथा मूल्य नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गयी। उत्तर प्रदेश में आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए धारा 3/7 हटा दी गई है। वोट बैंक की राजनीति के कारण तथा व्यापारी संगठनों के दबाव से राज्य सरकार जमाखोरी रोकने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया।
मूल्य वृद्धि की रफ्तार का नहीं कोई पारावार
जुलाई से दिसम्बर 2010 के बीच चार बार बढ़े पेट्रोल/डीजल के दाम माल ढुलाई पर सीधा असर। 2010 में औसत वृद्धि रही 7.5 फीसद केंद्र के अनुसार गत छह महीनों में 23.5 प्रतिशत तक बढ़ी महंगाई जनवरी में Rs 250 से 300 विक्ंटल का आलू जुलाई-अगस्त में Rs 12 से 15 सौ पर पहुंचा जुलाई में Rs 5 रुपये किलो बिकने वाला प्याज दिसम्बर में Rs 100 रुपये किलो में बिका इसी समय Rs 20 किलो का लहसुन पिछले माह Rs 400 रुपये किलो पहुंच गया Rs दो किलो का टमाटर Rs 45 से 50 प्रति किलो तक पहुंचा वेतन बढ़ने की घोषणा के साथ ही 20 से 25 फीसद तक बढ़ गये मकान किराये प्रमुख वस्तुएं बढ़ी कीमतें पेट्रोलियम पदार्थ 22 से 25 प्रतिशत खाद्य पदार्थ 15 से 20 प्रतिशत दूध व दुग्ध उत्पाद 30 से 35 प्रतिशत भवन निर्माण सामग्री 15 से 25 प्रतिशत
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