Sunday, January 23, 2011

छोटे व्यापारियों की चिंता


नियामक एजेंसियों की भूमिका पर लेखक की टिप्पणी...
आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ हो रहे एशिया महाद्वीप से अमेरिका के एकक्षत्र आर्थिक साम्राज्य को चुनौती मिलने लगी है। गैर-नौकरीपेशा भारतीय लोगों ने तमाम परेशानियों को झेलते हुए गैर निर्यात आधारित मॉडल अपनाने के बाद भी प्रजातांत्रिक चरित्र व आर्थिक प्रगति को बनाए रखा। भारतीय बाजार के विशाल आकार एवं बाजार मांग के कारण विकसित देश संभावनाओं से भरे भारत की ओर आकर्षित हो रहे है। भारत को आर्थिक रूप से ताकतवर बनने के लिए, भारतीय उद्यमियों को आर्थिक क्षेत्र को और अधिक उदार बनाना होगा। आर्थिक क्षेत्र का अर्थ सिर्फ शेयर मार्केट अथवा बैकिंग तंत्र नहीं है, बल्कि सभी प्रकार की व्यापारिक गतिविधियां हैं, जिसमें खेती भी शामिल है। विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों में काले धन का प्रचलन है, इन क्षेत्रों के व्यापारियों को विश्वास में लेकर संबंधित क्षेत्र का गहन जानकारी रखने वाले पेशेवरों को साथ संबंधित व्यापारिक क्षेत्र के लिए नीतियों का निर्धारण करना चाहिए। बैंकिग तंत्र यदि काले धन के प्रचलन वाले व्यापारिक क्षेत्रों में आक्रामक तरीके से सामान्य ब्याज दरों पर, आसानी से ऋण सुलभ कराएं तो संबंधित व्यापारियों को काफी फायदा हो सकता है। छोटे व्यापारियों को कई बार अपना व्यवसाय चलाने के लिए पर्याप्त ऋण नहीं मिल पाता। कई बार छोटे व्यापारी नया कारोबार प्रयोग के तौर पर प्रारंभ करते हैं और असफल हो जाने पर व्यापार को बंद करते हैं। व्यापार बंद करने से संबंधित कदमों की जानकारी न होने एवं गैर पारदर्शिता के कारण भी व्यापारियों को सफेद धन से प्रारंभ किए गए व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद करने में दिक्कतें आती हैं। व्यापारिक संगठनों एवं सरकार को लघु व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद करने के सरल तरीकों की जानकारी विभिन्न माध्यमों से देनी चाहिए एवं इस प्रक्रिया में नौकरशाहों से सामना नही होना चाहिए, जिससे कि संबंधित व्याापारी को किसी भी प्रकार की रिश्वत न देनी पड़े। व्यापार के क्षेत्र को उदार व पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया में नीतिगत निर्णय भी लेने होते है एवं ंसंबंधित क्षेत्र की निगरानी एवं स्वच्छ तरीके से विकास हेतु रेगुलेटरी एजेंसीज नियुक्त की जाती हैं। बड़े व्यापारी, नौकरशाह एवं राजतीनिज्ञ लोग इसी नीति निर्धारण एवं रेगुलेटरी एजेंसीज की प्रारंभिक संरचना में अपना खेल खेलते हैं। फिक्की, सीआइआइ, एसोचैम जैसे व्यापारिक संगठन भी अधिकतर बड़े व्यापारियों का हित साधने वाली नीतियों की वकालत करते हैं। व्यापारिक घरानों के पास संभावित नीतियों के प्रभाव का तर्कसंगत अध्ययन करने हेतु पेशेवर लोगों की फौज है। उनके पास संबंधित नीतियों को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए पब्लिक रिलेशंस एजेंसीज होती हैं और वह व्यापारिक नीतियों को अपने सरिय सहयोग से अपने मनमाफिक बनवाने में सक्षम होते हैं। छोटे व्यापारियों एवं लघु उद्यमियों को यह सोचकर निष्कि्रय नहीं रहना चाहिए कि हमारी सुनवाई नहीं होगी या व्यापारिक नीतियों के निर्धारण में उनके हितों का ध्यान नहीं रखा जाएगा। लघु उद्यमियों को भी नीति निर्धारण में भागीदारी हेतु सक्रियता बढ़ानी चाहिए। सहभागिता बढ़ने से नौकरशाहों की रिश्तखोरी पर लगाम लगेगी और व्यापारिक उदारीकरण का फायदा भी नीचे तक पहंुचेगा। उदारीकरण के कारण कई तरह के एवं कई क्षेत्रों में नए घोटाले सामने आएंगे। इन्हीं घोटालों के कारण समाज जागरूक बनेगा और हमारी सरकार उदारीकरण की प्ररिया को पारदर्शी बनाने के लिए मजबूर होगी। उदारीकरण के माहौल में कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों की देखरेख व संतुलित विकास की जिम्मेदारी रेगुलेटरी एजेंसीज पर होती है। यह रेगुलेटरी एजेंसीज स्वतंत्र रूप से काम करती हैं और माना जाता है कि विकास के इस तरीके से संबंधित क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप कम होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)



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