भारत वर्ष 2020 तक खाद्य संकट की स्थिति में पहुंच सकता है। भारतीय कृषि शोध परिषद का कहना है कि इससे बचने के लिए सरकार को तत्काल बड़े और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इंडिया इंटरनेशनल क्रॉप समिट 2011 के दौरान परिषद के उप महानिदेशक स्वप्न के दत्ता ने कहा कि देश को इस संकट से निपटने के लिए पहले से ही तैयारी कर लेनी चाहिए। वर्ष 2009 के दौरान देश में कुल 10 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था। परिषद के मुताबिक वर्ष 2020 में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए देश को 13 करोड़ टन चावल की जरूरत होगी। वहीं, दस साल बाद 11 करोड़ टन गेहूं की आवश्यकता पड़ेगी। वर्ष 2009 के दौरान देश में महज आठ करोड़ गेहूं की पैदावार हुई थी। इसके साथ ही देश में वर्ष 2020 तक दलहन और तिलहन की भी खासी कमी महसूस की जाएगी। दत्ता के मुताबिक इस दौरान दालों की मांग में 140 फीसदी और तिलहन की मांग में 243 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी। परिषद ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि वर्ष 2020 तक सूखा और दूसरे कारणों से चावल की खेती में 15-42 फीसदी तक की कमी हो सकती है। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र के कुल राजस्व में भी 12.3 फीसदी की गिरावट हो सकती है। वातावरणीय प्रभाव भी कृषि क्षेत्र पर बुरा असर डाल सकते हैं। परिषद के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2020 तक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी और वर्षा का प्रतिशत सात फीसदी कम हो सकता है। दत्ता का कहना है कि देश दलहन और तिलहन के उत्पादन में सक्षम नहीं है। इसलिए अगले संसद सत्र के दौरान बीज अधिनियम को पारित करने की जरूरत है। अधिनियम में सभी किस्मों के बीजों का अनिवार्य पंजीकरण प्रावधान, बीज प्रमाणन का परिचालन और नेशनल सीड बोर्ड की स्थापना जैसे कई प्रस्ताव रखे गए हैं।
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