आश्चर्यजक है कि बेतहाशा महंगी होने वाली चीजों की सूची से नमक गायब रहता है। कोई विपक्षी पार्टी भी शोर शराबा नहीं करती। नमक की कीमतों पर गौर करें तो महंगाई के मूल कारणों का पता चल सकता है। नमक की महंगाई में उसका उत्पादन, आपूर्ति और मांग के नियम लागू नहीं होते हैं। 1995 में 21 अगस्त को राज्यसभा में सरकार के जवाब के मुताबिक अप्रैल 1994 में दिल्ली में आयोडीनयुक्त नमक की कीमत Rs4 प्रति किलो थी। उस समय कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह उस सरकार के साथ थे। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की उसी सरकार ने नयी आर्थिक नीति लागू करने की घोषणा की थी। 1998 में 10 जुलाई को राज्य सभा में सरकार से कहा गया कि नमक की कीमत की तुलना में आयोडीनयुक्त नमक की कीमत दस गुना ज्यादा है तो सरकार ने सदन में बताया कि बाजार में नमक की कीमत Rs 2 से 4 प्रति किलो और आयोडीनयुक्त नमक की कीमत Rs6 प्रति किलो है। 2000 में 11 अगस्त को जब फिर पूछा गया कि ग्रामीण इलाकों में लोग आयोडीनयुक्त नमक की कीमत ज्यादा होने के कारण नमक का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं तो सरकार ने कहा कि आयोडीनयुक्त नमक की कीमत साधारण नमक से मामूली ज्यादा है। वह ग्रामीण इलाको में राशन की दूकानों से सस्ती दरों पर आयोडीनयुक्त नमक मुहैया कराने की व्यवस्था कर रही हैं। 2005 में 9 अगस्त को सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि आयोडीनयुक्त नमक प्रति किलो Rs ढाई से लेकर Rs साढ़े आठ प्रति किलो मिल रहा है। गौर करें कि नमक महंगा होता जा रहा है और सरकार महंगाई के ठोस कारण को स्पष्ट नहीं कर रही है। पहले नमक की महंगाई की शिकायत हुई तो आयोडीनयुक्त नमक और साधारण नमक की कीमत में मामूली अंतर बताया गया। फिर बताया गया कि Rs ढाई से Rs साढ़े आठ के बीच आयोडीन नमक की कीमतों में अंतर ब्रांड,पैकिंग और गुणवत्ता की वजह से है। सरकार ने कहा कि गरीबों के लिए वह सस्ती दरों पर आयोडीनयुक्त नमक की व्यवस्था राशन की दूकानों के जरिये कर रही हैं। नमक की कीमत में वृद्धि तब से शुरू हो गई जब सरकार ने देश के सात करोड़ लोगों को आयोडीनयुक्त नमक खाना जरूरी बताया। इसीलिए साधारण नमक खाने पर पाबंदी लगाकर सौ करोड़ को आयोडीनयुक्त नमक खिलाना जरूरी कर दिया। नमक को महंगा करने का एक तर्क तैयार करने और उसके पक्ष में मीडिया के सहयोग से जमनत तैयार करने के बाद उसकी कीमत निर्धारित करने का काम सरकार ने बाजार के हवाले छोड़ दिया। बाजार के अपने तर्क होते हैं। बड़ी पूंजी-बड़ा मुनाफा। आज नमक स्थायी तौर पर दो हजार फीसद ज्यादा महंगा हो गया है। 2003 में 7 अप्रैल को राज्यसभा में सरकार के एक जवाब से एक मजेदार पहलू सामने आता है। उसने बताया कि प्रति सौ किलो साधारण नमक के उत्पादन की लागत Rs11 से 40 के बीच आती है। यानी 11 पैसे से 40 पैसे प्रति किलो। उसे देशी बाजार में Rs20 से 30 प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाता है। विदेशी बाजार में Rs25 से 50 के बीच बेचा जाता है। आयोडीनयुक्त नमक की उत्पादन लागत Rs22 से Rs 51 प्रति क्विंटल है और उसे देशी बाजार में Rs27 से 37 के बीच बेचा जाता है। विदेशी बाजार में यही Rs32 से 57 के बीच बेचा जाता है। 2006 में 14 मार्च को लोकसभा में सरकार का जवाब था कि तटीय प्रदेशों में नमक की उत्पादन लागत Rs90 से Rs400 प्रति टन है और साधारण नमक को आयोडीनयुक्त बनाने में प्रति टन मात्र Rs 100 की लागत लगती है। उसी क्रम में सरकार ने यह भी कहा कि आयोडीनयुक्त नमक की कीमत बाजार में Rs3 प्रति किलो से लेकर Rs 9 प्रति किलो है। तब देश के 10 प्रदेशों में साधारण नमक की 10,347 यूनिटें काम करती थीं और 5 लाख, 45 हजार, 924 एकड़ इलाके में नमक उत्पादन किया जाता था। देश में 2005 में नमक की अनुमानित खपत 146.44 लाख टन थी और आयोडीनयुक्त नमक की जितनी खपत थी उसकी कीमत Rs2055 करोड़ थी। नमक का उत्पाद जैसे-जैसे बड़ी पूंजी के कब्जे में चलता गया इसकी कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी होती गयी। उत्पादन लागत और उपभोक्ता से ली जाने वाली कीमत में एक विशाल अंतर देखा जा सकता है। दिसम्बर 2002 में अमेरिका भी नमक निर्यात किया जाने लगा। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने अप्रैल 2010 में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ब्रांड वाले आयोडीनयुक्त नमक की कीमत बिना ब्रांड वाले नमक की तुलना में बहुत अधिक है जबकि सरकार द्वारा गठित टैरिफ आयोग से जून 2008 में ही कहा गया था कि वह ब्रांड युक्त एवं बिना ब्रांड युक्त नमक के मूल्य तय के सम्बंध में एक अध्ययन करें। अंग्रेजों ने सबसे पहले नमक पर कब्जा किया था और महात्मा गांधी ने आजादी के लिए नमक को मुद्दा बनाया था। अब नमक का अधिकार हाथों से निकल गया है और सभी तरफ खामोशी है।
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