Friday, January 7, 2011

घट रही विदेशी बैंकों की साख

 गुड़गांव स्थित सिटी बैंक की एक शाखा में ग्राहकों के साथ की गई धोखाधड़ी के बाद विदेशी बैंकों के लिए आम ग्राहकों के बीच छवि बनाना और मुश्किल हो जाएगा। आंकड़े गवाह हैं कि वर्ष 2008-09 की ग्लोबल मंदी के बाद भारतीय ग्राहकों ने विदेशी बैंकों से मुंह फेरना शुरू कर दिया है। बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख नियामक आरबीआइ की नजर में भी विदेशी बैंकों की साख कम हुई है। बैंकों के जमा व कर्ज पर आरबीआइ की ताजा रिपोर्ट से साफ है कि तमाम तामझाम के बावजूद विदेशी बैंकों के प्रति आम जनता का भरोसा कम हुआ है। अगर ऐसा नहीं होता तो इन बैंको की जमा राशि की वृद्धि दर लगातार कम नहीं हो रही होती। जून, 2009 को समाप्त तिमाही में इन बैंकों की जमा राशि में 18.6 फीसदी की वृद्धि हुई थी जो मार्च, 2010 को समाप्त तिमाही में 11.3 फीसदी हो गई। जून, 2010 में तो यह महज 3.5 फीसदी रह गई। इस अवधि में सरकारी बैंकों की जमा राशि में वृद्धि दर 18.7 फीसदी और निजी बैंकों में 15.9 फीसदी की रही है। बैंकिंग क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि मंदी के बाद जिस तरह से अमेरिका और यूरोप के बैंक दीवालिया हुए थे उससे इन बैंकों की साख भारत में भी गिरी है। दिसंबर, 09 तक जमा राशि की वृद्धि दर के मामले में विदेशी बैंक सरकारी या निजी बैंकों से बहुत पीछे नहीं थे। राशि जमा करने में ही नहीं बल्कि कर्ज लेने के मामले में भी विदेशी बैंकों पर भरोसा कम होता दिख रहा है। जून, 2009 से मार्च, 2010 तक लगातार चार तिमाहियों में इन बैंकों की कर्ज वृद्धि दर नकारात्मक रही है। आम ग्राहकों की बेरुखी का अंदाज विदेशी बैंकों के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों से भी लगाया जा सकता है। पिछले वित्त वर्ष 2009-10 में विदेशी बैंकों के खिलाफ प्रति शाखा 37 से ज्यादा शिकायतें आरबीआइ को मिली थीं। दूसरी तरफ सरकारी बैंकों के खिलाफ प्रति शाखा औसतन एक और निजी बैंकों के खिलाफ दो शिकायतें मिली हैं। विदेशी बैंकों के फंसे कर्जे (एनपीए) को लेकर भी रिजर्व बैंक बहुत खुश नहीं है। तीन दिन पहले आरबीआइ की तरफ से दूसरी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें भारत के वित्तीय ढांचे में विदेशी बैंकों को सबसे कमजोर कड़ी के तौर पर देखा गया है। सितंबर, 2010 तक के आंकड़े बताते हैं कि विदेशी बैंकों के शुद्ध एनपीए में लगभग 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। जबकि राष्ट्रीयकृत बैंकों के शुद्ध एनपीए में महज 50 फीसदी और निजी बैंकों में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। देश में इस समय कुल 32 विदेशी बैंक कार्यरत है। इनकी देश में 310 शाखाएं हैं। सरकार इन्हें सिर्फ सब्सिडियरी के जरिए काम करने की अनुमति देती है।

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