सरकार ने गुरुवार को जहाजरानी क्षेत्र के लिए नई नीति पेश की। इसके तहत सरकार अगले दस साल के दौरान इस क्षेत्र में पांच लाख करोड़ रुपये निवेश करेगी। यह रकम जहाजरानी क्षेत्र में सुधारों और बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने पर खर्च की जाएगी। जहाजरानी मंत्री जीके वासन ने नई नीति पेश करते हुए कहा कि मेरटाइम एजेंडा, 2020 एक दृष्टिकोण योजना है, जो 1.39 लाख करोड़ रुपये की मौजूदा राष्ट्रीय समुद्री विकास परियोजना (एनएमडीपी) का स्थान लेगी। यह परियोजना 31 मार्च, 2012 को समाप्त हो रही है। उन्होंने बताया कि 31 मार्च, 2010 तक हमारे बंदरगाहों की क्षमता 61.7 करोड़ टन थी, जिसे वर्ष 2020 तक 320 करोड़ टन तक करने का लक्ष्य है। जहाजरानी क्षेत्र में होने वाले पांच लाख करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश में तीन लाख करोड़ रुपये बंदरगाह क्षेत्र में और दो लाख करोड़ रुपये जहाजरानी क्षेत्र में लगाए जाएंगे। जहाजरानी सचिव के मोहनदास ने कहा कि ज्यादातर निवेश निजी क्षेत्र से आएगा और सरकार की हिस्सेदारी बहुत सीमित रहेगी। वासन ने कहा कि वैश्विक जहाज निर्माण क्षमता में भारत की हिस्सेदारी अभी एक फीसदी है। हम इसे बढ़ाकर पांच फीसदी तक पहुंचाना चाहते हैं। बकौल वासन इस क्षेत्र के लिए उठाए जाने वाले अन्य कदमों में नई ड्रेजिंग नीति, तटीय शिपिंग को प्रोत्साहन और देश के आयात-निर्यात कारोबार में भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी बढ़ाना शामिल है। वासन के मुताबिक मौजूदा एनएमडीपी में शामिल 276 परियोजनाएं सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत संचालित की जा रही हैं। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान 13,952 करोड़ रुपये की 21 परियोजनाएं आवंटित करने की योजना बनाई है। इनमें छह परियोजनाएं पहले ही आवंटित की जा चुकी हैं। इनके जरिए सभी बड़े बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने का काम किया जाएगा। जहाजरानी क्षेत्र के विकास के लिए सरकार की अन्य योजनाओं के बारे में पूछने पर वासन ने कहा कि हम देश में कुछ और बड़े बंदरगाह स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके तहत पूर्वी और पश्चिमी तट पर एक-एक बंदरगाह स्थापित किया जाएगा। इसके अलावा पूर्वी तट (विजाग और चेन्नई) के दो बंदरगाहों और दो पश्चिमी तट के बंदरगाहों को बड़े हब में तब्दील किया जाएगा। साथ ही सरकार बंदरगाहों के लिए नई भूमि नीति पर भी काम कर रही है। सरकार जल्दी ही बंदरगाहों के संचालन की निगरानी के लिए बंदरगाह नियामक नियुक्त करेगी।
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