काले धन के खिलाफ सरकार की मुहिम और रफ्तार पकड़ेगी, क्योंकि भारत जल्द ही आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) का सदस्य बन सकता है। इससे काला धन विदेश में छिपाने वालों का पता लगाने की कोशिशों में ओईसीडी के सदस्य देशों का भारत को और बेहतर सहयोग मिल सकेगा। दुनिया के प्रभावशाली देशों का यह संगठन काली काली कमाई वालों के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में शामिल होने के बाद भारत को ओईसीडी की सदस्यता मिलने की संभावना बढ़ गई है। पिछले साल मनीलॉन्डि्रंग (धन के अवैध लेनदेन) के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय तंत्र के रूप में एफटीएफ की स्थापना की गई थी। काली कमाई का पता लगाने के लिए ओईसीडी के नियम काफी हद तक भारत के नजरिए के माफिक हैं। दोहरे कराधान से बचने के लिए ओईसीडी द्वारा बनाए गए आदर्श कानून की धारा 26 के तहत सदस्य देशों के बीच कर संबंधी मामलों की जांच में सहयोग और कर विभागों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान का प्रावधान है। ओईसीडी के मुताबिक उसकी बैठकों में फिलहाल भारत को बड़ी भूमिका देने का प्रस्ताव किया गया है। इस आधार पर भारत के भविष्य में संगठन के पूर्ण सदस्य बनने की प्रबल संभावना है। इससे काले धन का पता लगाने के अभियान को तो गति मिलेगी ही, मनीलॉन्डि्रंग और कर चोरी रोकने में भी मदद मिलेगी। भारत ने इसके लिए कई देशों के साथ दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) और कर सूचना विनिमय समझौता (टीआइईए) किया है। क्या है ओईसीडी? पेरिस स्थित ओईसीडी का गठन वर्ष 1961 में हुआ था। दुनिया के प्रभावशाली देशों का संगठन यह संगठन एक ऐसा मंच उपलब्ध कराता है, जिसमें सदस्य देश अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं और साझा समस्याओं का हल तलाश सकते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली और स्विट्जरलैंड समेत 34 देश इस संगठन के सदस्य हैं। स्विस बैंकों में कितना काला धन एक अनुमान के मुताबिक भारतीयों की करीब 68,000 अरब रुपये (1500 अरब डॉलर) की काली कमाई अकेले स्विस बैंकों में जमा है। दुनिया के अन्य देशों के बैंकों में जमा काले धन को जोड़ने जोड़ने पर यह आंकड़ा और बड़ा हो जाता है। अभी तक इन काली कमाई वालों का नाम उजागर नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले ही सरकार से पूछा था कि विदेश में काला धन जमा करने वाले ऐसे लोगों का नाम बताने में क्या दिक्कत है।
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